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‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ कार्यक्रम कई बच्चो को मुक्त कराया गया

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कोडरमा में हुए एक भव्य समारोह में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने एलान किया कि झारखंड की अभ्रक खदानें अब ‘बाल श्रम मुक्त’ हो चुकी हैं। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के साथ ही राज्य की अभ्रक खदानों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने की 20 साल की समर्पित यात्रा अब अपने मुकाम पर पहुंचने वाली है क्योंकि एनसीपीसीआर ने यह भी एलान किया कि सभी बाल मजदूरों को अभ्रक खदानों से न सिर्फ मुक्ति दिलाई गई है बल्कि इन सभी का स्कूलों में दाखिला भी कराया गया है। एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने राज्य, जिले, स्थानीय सरकारी निकायों, ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ कार्यक्रम, बच्चों और समुदाय के साझा प्रयासों से अभ्रक खदान आपूर्ति श्रृंखला से बाल मजदूरी के खात्मे के लिए अपनी तरह के इस पहले अनूठे प्रयास के सफल होने की घोषणा की। इस मौके पर एनसीपीसीआर के अध्यक्ष के अलावा इस मुद्दे पर 20 साल तक काम करने वाले प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु, पूर्व बाल मजदूर, बाल पंचायतों के बाल नेता और सदस्य, सामुदायिक सदस्य, पंचायती राज संस्थाओं के सदस्य और शिक्षा, महिला एवं बाल विकास और श्रम विभाग के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। 

यह पीढ़ीगत बदलावों के साक्षी बने पूर्व बाल मजदूरों के लिए एक भावनात्मक पल था। अब वयस्क होकर माता-पिता बन चुके ये पूर्व बाल मजदूर जब फिर आज इकट्ठा हुए तो उन्होंने इस संकल्प को दोहराया कि कि वे अपने बच्चों को अभ्रक खदानों में या कहीं भी बाल मजदूरी नहीं करने देंगे, उनके बच्चे स्कूल जाएंगे।

एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ की घोषणा करते हुए कहा, “आज मैं एलान करता हूं कि सभी बच्चे अभ्रक खदानों में शोषण से मुक्त हो चुके हैं। मुझे यह बताते हुए हर्ष और गर्व हो रहा है कि अब ये बच्चे खदानों में नहीं, बल्कि स्कूल जा रहे हैं। बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान, ग्राम पंचायतों, राज्य सरकार और जिला प्रशासन के साझा प्रयासों और इच्छाशक्ति से इन गांवों में जो उपलब्धियां हासिल की गई हैं, वह इस बात का सबूत है कि किस तरह लक्ष्य के प्रति समर्पण और सतत प्रयासों से बच्चों के लिए न्याय और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। यह अभ्रक खदानों से बाल मजदूरी के अंत की शुरुआत है और हमें सफलता को बनाए रखना है।”

बचपन बचाओ आंदोलन ने वर्ष 2004 में एक अध्ययन में पाया कि 5000 से ज्यादा बच्चे अभ्रक खनन में या अभ्रक चुनने में शामिल हैं। 2019 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 20,000 हो गई। लेकिन यह बच्चों, समुदायों, नागरिक समाज संगठनों और सरकार के साझा प्रयासों का नतीजा है जिससे ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ संभव हो सका। स्कूल नहीं जाने वाले प्रत्येक बच्चे की शिनाख्त की गई, उनका दाखिला कराया गया और उनकी पढ़ाई जारी रखने के उपाय किए गए।

बाल मजदूरों की शिनाख्त के लिए 2004 में इस अध्ययन की शुरुआत करने वाले प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भुवन ऋभु ने अभ्रक खदानों को बाल श्रम मुक्त बनाने की इस लंबी और कठिन यात्रा को याद करते हुए कहा, “अभ्रक चुनने और खदानों में काम करने वाले 22,000 बच्चों की पहचान करना और उनका सफलतापूर्वक विद्यालयों में दाखिला कराना बाल श्रम मुक्त अभ्रक के लक्ष्य को हासिल करने में जुटी सरकार और नागरिक संगठनों के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाल मजदूरी के पूरी तरह खात्मे के लिए असंगठित क्षेत्र में पूरी दुनिया में सभी जगह अपनाया जा सकता है।” उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी के निर्वाचन क्षेत्र में यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है जिन्होंने पिछले कई वर्षों से इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है।

2004 में जब इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई तब यह इलाका नक्सली हिंसा से जूझ रहा था जिससे सरकारी विभागों और एजेंसियों के सामने भी चुनौती थी। इसके बावजूद बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान के रणनीतिक, सतत और सम्मिलित प्रयासों से अभ्रक खनन पर निर्भर सभी 684 गांवों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया जा चुका है। इन गांवों के  20,854 बच्चों को जहां अभ्रक चुनने के काम से बाहर निकाला जा चुका है, वहीं 30,364 बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया गया है। नियमित रूप से निगरानी के माध्यम से यह जानकारी दिया गया।

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