विस्थापित नेता काशीनाथ केवट ने बजट को निराशाजनक बताया। कहा कि बेरोजगारी, महंगाई और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों जैसे मुद्दों पर कोई सटीक बातें नहीं कही गई, हर परिवार का बजट घर की रसोई पर निर्भर करता है। इसलिए सरकार को इस बात का ख्याल रखना चाहिए था कि सोना -चांदी को सस्ता करने के बजाय खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी की जाती, राज्यों के साथ भेदभाव किया गया है। बिहार और आंध्र प्रदेश को धन दिया गया है, जबकि आदिवासी राज्य झारखंड की अनदेखी की गई। झारखंड से पलायन रोकने के कोई प्रावधान नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि बजट में 4 करोड़ नौकरी देने की बातें कही गई। लेकिन डर इस बात की है कि निकट भविष्य में गृह मंत्री अमित शाह कहीं यह ना कह दें कि वह तो महज बजट का जुमला था। जैसा कि दो करोड़ प्रति वर्ष रोजगार देने के वायदे पर अमित शाह ने कहा था। इस बजट में सरकार नीतीश कुमार के बिहार और चंद्रबाबू नायडू के आंध्रप्रदेश के पर ज्यादा मेहरबान दिखा। करीब एक लाख करोड़ रुपए की सीधी मदद दो गठबंधन वाले राज्यों बिहार और आंध्रप्रदेश को दी गई। राजनीतिक चश्में से देंखें तो बजट के कई मायने है लेकिन आर्थिक चश्में से ढूंढें तो बजट में कुछ नहीं मिलता है।
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