जिले भर में तेज़ रफ़्तार का कहर इस कदर जारी है जिसमें एनटीपीसी ऊंचाहार के राख भरे ओवरलोड टैंकर मौत के कुंआ का खेल खेल रहें हैं। एनटीपीसी ऊंचाहार से राख भरकर चल रहे ओवरलोड टैंकर जिस रफ़्तार से जिले की सीमेंट फैक्ट्रियों तक चलते हैं सड़क पर चलने वाले राहगीर परिवहन विभाग से अपनी जान की भीख मांगते फिर रहे हैं। लखनऊ-प्रयागराज राजमार्ग पर होने वाले सड़क हादसों में अधिकांश हादसे ऊंचाहार एनटीपीसी प्लांट के राख ढोने वाले टैंकरो से होते देखे गए हैं,साथ ही इन हादसों में दर्जनों लोगों ने जान भी गंवाई है। ऊंचाहार एनटीपीसी प्लांट के मेन गेट पर बने शैलो से ट्रासनपोर्टरो के टैंकर/बल्कर इत्यादि के द्वारा रायबरेली के कुंदनगंज स्थित सीमेंट फैक्ट्री में ढोकर ले जाया जाता है। जैसे ही यह टैंकर राख भरकर एनटीपीसी के प्लांट गेट से बाहर निकलकर मुख्य सड़कों पर दौड़ते हैं, तो यह फिर हवा से बातें करते हैं। इसके बाद इनकी तेज रफ्तार का कहर सड़क पर चलने वाले आम राहगीरों के लिए जानलेवा साबित होती है। ऊंचाहार के प्लांट से निकलकर जिले भर में दौड़ने वाले इन ओवरलोड टैंकरो के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए जितनी जिम्मेदारी परिवहन विभाग की है उतनी ही जिम्मेदारी जिले के ट्रैफिक पुलिस की भी है।
राख ढोने वाले कैप्सूल टैंकर से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में पुलिस का दोमुखी जवाब
सूत्र बताते हैं ट्रांसपोर्टरों और ठेकेदारों से मिली भगत होने के चलते इन पर विभागीय कार्रवाई नहीं की जाती है और होने वाले सड़क हादसों में स्थानीय पुलिस भी इसमें सीमा विवाद का मामला लाकर घटनाक्रम को उलझा देती है। पुलिस तो यहां तक कहने लगती है कि सड़क दुर्घटना जिस स्थान पर होगी ,उससे संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट भी वहीं दर्ज कराना पड़ेगा। जिसके बाद ट्रांसपोर्टर और मालिक दोनों पीड़ित राहगीरों को नियमों पाठ पढ़ाने लगते हैं और बाद में देख लेने तक की धमकी भी देने लगते हैं। अपनी जानमाल की सुरक्षा के दृष्टिगत पीड़ित इन बड़े वाहन मालिकों से उलझने के बजाय मजबूरी में समझौता करने को राजी हो जाता है। जिले की ट्रैफिक पुलिस भी इन ओवरलोड वाहनों पर कार्रवाई करने के बजाय नगर और शहर में चालान काटने में जुटी रहती है। जिले के अंदर खास तौर पर एनटीपीसी ऊंचाहार के प्लांट की राख को ढोने वाले ओवरलोड कैप्सूल टैंकरो पर प्रतिबंध लगाने के लिए पुलिस प्रशासन दावे तो करता है लेकिन हकीकत कुछ और ही है।