लापरवाही व मनमानी से बीते कई माह में 60 से 65 मरीजों की हो चुकी है मौत, फिर हो रही डायलिसिस
रायबरेली में स्वास्थ्य विभाग इस कदर मनमानी पर उतारू है कि उसकी नाक के नीचे ऐसी ऐसी घटनाएं हो रही है कि उससे वह अनजान बना हुआ है। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन रायबरेली जिला अस्पताल के डायलिसिस डीसीडीसी किडनी सेंटर में जमकर मनमानी और धंधागर्दी तथा भ्रष्टाचार को अंजाम देकर मरे हुए लोगों का भी डायलिसिस किया जा रहा है।
जानिए कैसे होता है मृतकों के इलाज के नाम पर खेल
अगर आप जिला अस्पताल के इस डायलिसिस सेंटर के हकीकत की निष्पक्षता से जांच हो जाए तो कई सच सामने आ सकते है। सूत्रों की माने तो यहां अवैध रूप से बिना डिग्री के डायलिसिस सेंटर में काम कर रहे। डॉक्टर व मैनेजर के हाथों में जांच के बाद हथकड़ियां लग सकती हैं। शासन ने बीते करीब 3 सालों पहले रायबरेली जिला अस्पताल को डायलिसिस की एक बड़ी सौगात दी थी। जिसको चलाने के एक प्राइवेट कंपनी के माध्यम से सुविधा को पटरी पर लाया गया। लेकिन यहां इस कदर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है कि आप भी सुनकर चौंक जाएंगे। जिला अस्पताल के डायलिसिस डीसीडीसी किडनी केयर सेंटर में रजिस्ट्रेशन के नाम पर जो पैसा लिया जा रहा है। उससे भी कहीं ज्यादा घिनौना काम मृतक हुए पेशेंट को भी नही बक्सा जा रहा है। यहां शेड्यूल के हिसाब से सरकार से पैसा ऐंठने के लिए डायलिसिस का होना सिस्टम में चढ़ा दिया जाता है। किसी पेशेंट का अगर तीन बार का नियमानुसार शेड्यूल चढ़ाया जाता है और डायलिसिस के नियमों की माने तो तीन दिन का शेड्यूल होता है। इसके हिसाब से एक सप्ताह में किसी को एक बार अगर डायलिसिस की जरूरत होती है, तो किसी को तीन बार डायलिसिस की जरूरत होती है। जिसको एक बार जरूर होती है। उसका भी तीन बार चढाकर लगभग पर पेशेंट से 1350 रुपए एक बार का सरकार के हिसाब से उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है। यही नहीं डायलिसिस में आने वाले तीमारदारों से जमकर वसूली भी होती है। शासन से जो पैसा मिलता है। वह तो मिलता ही है। आने वाले मरीजों को फर्जी तरीके से अपने कंप्यूटर में चढाकर शासन से पैसा ले लेते हैं और यही नहीं मरीज से भी ले लेते हैं, जो तीमारदारों पैसा नहीं देता है, तो उसे डराया और धमकाया जाता है और फिर बाद में उसे कहीं और ले जाने की सलाह दे दी जाती है।

यहां अवैध रूप से बिना डिग्री के डायलिसिस सेंटर में तैनात कायनात व मैनेजर राम प्रकाश कभी भी समय पर ड्यूटी नही करते हैं, जो डॉक्टर तैनात किए गए हैं उनके पास भी किसी तरह की कोई डिग्री नहीं है ना ही एमसीआई का रजिस्ट्रेशन है। फिर भी तैनात जितने भी डॉक्टर व स्टाफ है सब मनमानी पर उतारू है। आंकड़ों की माने तो करीब तीन माह में 60 से 65 मरीजों की, इसी लापरवाही व मनमानी के चलते मौते हो गई है। ऐसा हम नही यहां के लोग कह रहे हैं। MCI संरक्षण में यह डॉक्टर व स्टाफ बिना डिग्री के काम कर रहे हैं। हडीसी डीसी किडनी सेंटर के उत्तर प्रदेश प्रभारी नोमान है, जो अक्सर यहां चेक करने के लिए सीएमएस के साथ जाते हैं। लेकिन क्या उन्हें यहां की लापरवाही और मनमानी का पता नहीं चलता है।आखिर कैसे मरे हुए पेशेंट की शेड्यूलिंग की जाती है, जैसे किसी पेशेंट को सोमवार को आना है, तो उसके लिए पेशेंट से उसका आधार कार्ड और कुछ जरूरी दस्तावेज रख लेते हैं। अगर वह नहीं भी आया तब भी उसका तीन दिनों का शेड्यूल चढ़ा लेते हैं, क्योंकि यहां पर पेशेंट के इलाज के लिए 350 रुपए के करीब सरकार की तरफ से मिलता है। अगर पूरे माह की बात की जाए तो 12 से 13 हजार रुपए पर पर मरीज शासन के द्वारा दिया जाता है और यहां आने वाले मरीजों से भी जमकर वसूली की जाती है। आखिर जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक क्या जांच करने जाते हैं। यहां यही नहीं सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं को भी जिला अस्पताल के सीएमएस प्रदीप अग्रवाल धता बता रहे है। सीएमएस के तुगलकी फरमान का एक और मामला सामना आया है। डायलसिस में स्थानीय खरीद पर सीएमएस प्रदील अग्रवाल ने रोक लगाई है। सरकार की कारगर व जनोपयोगी योजनाओं में शामिल है दवाओं की स्थानीय खरीद पर रोक से गरीब तीमारदारों की जेब पर पड़ रहा है। लाखों का डाका पीड़ित तीमारदारों ने डीएम से की मुलाकात जिला अधिकारी से लगाई न्याय व सहायता की गुहार।