संस्कृत भाषा देववाणी तो, देशवाणी भी है : कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल
संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना पूर्ण सम्भव नही है : मुख्य अतिथि
भारत के प्रतिष्ठा के दो स्तम्भ है प्रथम संस्कृत व द्वितीय संस्कृति। संस्कृत भाषा देववाणी है तो, देशवाणी भी है। हर राष्ट्रवादी को संस्कृत पढ़ना चाहिये। कुलाधिपति ने 31 मेधावियों को विभिन्न प्रकार 56 मेडल (पदक) देकर सम्मानित किया। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 42वें दीक्षांत में पहली बार आठ छात्राओं को 23 स्वर्ण पदक मिले। यह पहला मौका था जब सबसे अधिक मेडल भी आचार्य की छात्रा टुंपा राय को दिया गया। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्य भवन में आयोजित 42वें दीक्षान्त समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने व्यक्त किया। उन्होंने संस्कृत एवं संस्कृति के महत्व पर विस्तार से चर्चा करते हुये कहा कि आदर्श जीवन शैली संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है, जिसका हिन्दी अनुवाद कर आम जनमानस तक पहुँचाया जाये। जिससे ऋषिमुनियों के प्राचीन ज्ञान से वे भी लाभान्वित हो सकें।
पांडुलिपियों के अनमोल ज्ञान राशि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों के बारे बताया कि यह हजार या उससे पूर्व की पांडुलिपियों को संरक्षित किया गया है। जिसमें अनमोल ज्ञान राशि निहित हैं, उसके संरक्षण का कार्य भी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के द्वारा बहुत सुन्दर प्रयास के साथ किया जा रहा है, जिसको गति देने के लिए कंप्यूटर क्रय करने का भी निर्देश दिया गया है। पांडुलिपियों का प्रकाशन कराकर व्यापक प्रचार प्रसार भी किया जाना चाहिए। उन्होंने बच्च्चों को भारत का भविष्य बताते हुये कहा कि आठ साल तक के बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहिये, जिससे उनका भविष्य उज्ज्वल हो सके। उनकी स्मृतियाँ उस समय तीव्र होती हैं। वहीं भावी पीढ़ी के भविष्य हैं।
संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिये संस्कृत की छोटी किताब प्रकाशित होने की चर्चा करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय के आचार्यों से आग्रह करते हुये कहा कि संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये संस्कृत के शब्दों की छोटी किताब प्रकाशित की जाय जिससे संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार और विकास तीब्र गति से हो सके। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम एवं राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद के अध्यक्ष प्रो० अनिल डी० सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा ही नहीं अपितु भारत के एक गौरवपूर्ण इतिहास को समेटने वाली अमूल्य नीधि है जो समस्त भारतीयों के लिये उर्जा का स्रोत है। संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना पूर्ण सम्भव नही है। उन्होंने विश्वविद्यालय के ऐतिहासिकता पर चर्चा करते हुये कहा कि इस विश्वविद्यालय में प्रारम्भ काल से ही देश विदेश के छात्र अध्ययन एवं अनुसंधान के लिये आते रहे है आज भी दर्जनों विदेशी छात्र शोध कार्य में संलग्न है।
विशिष्ट अतिथि गृह का शिलान्यास
इस अवसर पर कुलाधिपति द्वारा विशिष्ट अतिथि गृह का शिलान्यास किया गया है, इस अतिथि गृह के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा अनुदान प्राप्त है। इसके साथ ही डिजी लॉकर के माध्यम से कुलाधिपति के समक्ष उपाधियों का प्रदर्शन किया गया। डिजी लॉकर में सभी 13733 (मध्यमा से लेकर आचार्य, विद्यावारिधि) उपाधियों को ऑनलाइन अपलोड किया गया है, अब घर बैठे अपने समस्त अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र ऑनलाइन माध्यमों से प्राप्त कर सकते हैं। दीक्षांत समारोह के अवसर पर कुलाधिपति के द्वारा 31 मेधावियों को विभिन्न प्रकार 56 मेडल (पदक) देकर सम्मानित किया गया। कुलाधिपति के हाथों से पदक प्राप्त कर मेधावियों (छात्र- छात्राओं) में अतिउत्साहित होकर हर्षित हुये।
कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा के द्वारा मंच पर आसीन अतिथियों का एकल पुष्प,अंगअस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत और अभिनंदन करते हुए अपने स्वागत भाषण में कहा कि यह संस्थान भारतीय ज्ञान-परम्परा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।