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आज छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य देव को दिया गया पहला अर्घ्य, जानें सूर्यास्त का समय

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रिपोर्ट : अविनाश कुमार

छठ पूजा एक त्यौहार नहीं बल्कि लोगों का इस पर्व से एक गहरी आस्था और भावनाएं जुड़ी हुई हैं। पूरे साल छठ पूजा का इंतजार लोग बड़ी बेसब्री के साथ करते हैं।

एक यही वो मौका होता है जब पूरा परिवार एक साथ आता है। इस त्यौहार को मनाने के लिए सालभर दूर रहने वाले परिवार के अन्य सदस्य भी अपने घर आते हैं। छठ महापर्व की असली छठा झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत नेपाल के मधेश क्षेत्र में भी देखने को मिलती है।

ऐसा ही एक नजारा आज बेरमो काँयलांचल के कथारा दो नंबर आई.बी.एम कॉलोनी में देखने को मिला। गुरुवार को छठ व्रतियों ने बोकारो थर्मल डैम में अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य दिया एंव शुक्रवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा।

एक छठ पूजा ही है जिसमें ढलते सूर्य की उपासना की जाती है

गुरुवार को छठ का तीसरा दिन है। व्रती महिलाएं नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं। व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

छठ के तीसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य देने का समय

सूर्यास्त का समय 07 नवंबर 2024 दिन गुरुवार को शाम 5 बजकर 04 मिनट पर था। इस समय पर छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्य भगवान को पहला अर्घ्य दिया गया। इसे अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य कहा जाता है, जिसका अर्थ है ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देना।

छठ पूजा का महत्व

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ का त्यौहार मनाया जाता है। छठ का व्रत संतान की लंबी आयु और समृद्धि की लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से परिवार में सदैव खुशहाली बनी रहती है। वहीं अगर जिनकी गोद सूनी और वे छठ का व्रत करती हैं तो छठी मईया की कृपा से जल्द उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। बता दें कि छठ पूजा में डाला का विशेष महत्व होता है। डाला का अर्थ है बांस का डलिया। इस डाला को कोई पुरुष या महिला अपने सिर पर रखकर तालाब या नदी किनारे बने छठ घाट तक ले जाता है। इस डाला में छठ पूजा से जुड़ी सभी पूजा सामग्री रहती है।

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