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उत्तर प्रदेशराज्यस्पेशल रिपोर्ट

Chhath Puja 2024 : क्या है छठ पूजा पर्व का महत्व, जाने क्यों मनाया जाता है यह पर्व

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रायबरेली में दीपावली त्योहार के बाद एक विशेष समुदाय के लिए छठ पूजा का पर्व नहीं बल्कि महापर्व है, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के पूर्वांचल क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के सृठी को मनाए जाने वाले इस हिंदू पर्व मे भगवान सूर्य और छठी मैया की विधि विधान पूर्वक पूजा होती है। इस महापर्व को लेकर न्यूज़ नेशन भारत की टीम ने ग्राउंड जीरो पर जाकर पूजा की तैयारी को लेकर जायजा लिया, तो जिले में अलग-अलग स्थान पर होने वाली इस पूजा की तैयारी को लेकर जिला प्रशासन पर लगातार आरोप लगते नजर आए। रायबरेली शहर कोतवाली थाना क्षेत्र के अंतर्गत स्थित दो स्थानों पर क्रमशः राजघाट वह सई नदी के किनारे और मिलएरिया थाना क्षेत्र के अंतर्गत शारदा नहर के किनारे होने वाली इस पूजा की तैयारी को देखते हुए जिला प्रशासन व नगर पालिका द्वारा हीला हवाली बढ़ती गई है। वही इस महापर्व की पूजा करने गए श्रद्धालुओं से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जिस तरीके से इस महापर्व का प्रचलन पूरे देश में विभिन्न रूपों से छठ मैया और सूर्य भगवान को अरग देते हुए मनाया जाता है वह अपने आप में एक हिंदू सनातनी पौराणिक प्रथम है। जिसको लेकर रायबरेली जिला प्रशासन ने अभी तक कोई भी तैयारियां पूर्ण नहीं की है। नदियों और नहरो में जो जल का भराव है उसमें गंदगी पर्याप्त मात्रा में देखने को मिल रही है। यही नहीं जिन स्थानों पर पूजा के लिए जिला प्रशासन द्वारा टेंट बैरिकेडिंग इत्यादि व्यवस्थाओं को करना चाहिए वहां पर अभी तक सफाई चल रही है। ऐसे में श्रद्धालु किस तरह इस पौराणिक पूजा का शुभारंभ कर पाएंगे यह सोचने का विषय है। फिलहाल इस पूरे मामले को लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि छठ मैया की पूजा को लेकर जिला प्रशासन अपनी तैयारियां पूरी कर रहा है जल्द से जल्द श्रद्धा वालों के लिए अच्छी से अच्छी सुविधा मुहैया कराई जा रही है।

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है

छठ पूजा का पर्व प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति को हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है और घर परिवार में खुशहाली बनी रहती है, लेकिन मुख्य रूप से छठ व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना से रखती हैं। वही यह व्रत संतान प्राप्त की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए खास माना जाता है। इस पर मे सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की जाती है। यह एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें चढ़ते सूर्य की जगह डूबते सूरज की पूजा होती है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश झारखंड में मनाया जाता है।

छठ पूजा 2024 की तिथियां

छठ पूजा का पहला दिन 5 नवंबर 2024-नहाय खाय
छठ पूजा का दूसरा दिन 6 नवंबर 2024-खरना
छठ पूजा का तीसरा दिन 7 नवंबर 2024- संध्या अर्ध्य
छठ पूजा का चौथा दिन 8 नवंबर 2024- उषा अर्ध्य

छठ पूजा का इतिहास

छठ पर्व से जुड़ी एक पौराणिक लोक कथा के अनुसार भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापस लौटे थे, तो कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन ही राम राज्य की स्थापना हो रही थी, उसे दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत रखा और सूर्य देव की आराधना की। कहते हैं की सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय उन्होंने पुनः अनुष्ठान कर सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया था, ऐसा माना जाता है कि तब से लेकर आज तक छठ पर्व के दौरान यह परंपरा चली आ रही है।

छठ पूजा की शुरुआत किसने की

मान्यता के अनुसार छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। क्योंकि सूर्य पूजा की शुरुआत सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा हुई थी। कहा जाता है कि कारण प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा करते थे । वह हर दिन घंटे तक कमर जितने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ दिया करते थे। माना जाता है कि कर्ण के महान योद्धा बनने के पीछे सूर्य देव की बहुत बड़ी कृपा थी, जिस प्रथा को अपनाते हुए आज के समय महिलाएं पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देती हैं ।

छठ की कहानी

पुराने के अनुसार राजा प्रियबंद को संतान प्राप्त की इच्छा थी लेकिन लाख उपाय के बाद भी उन्हें संतान नहीं प्राप्त हो रही थी। तब उन्होंने महर्षि कश्यप की सहायता ली, तब महर्षि कश्यप ने राजा प्रिया बंद की यह इच्छा पूरी करने के लिए पुत्रेष्ठी यज्ञ कराया और राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को यह यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर खाने को दी। इस यज्ञ के फल स्वरुप दोनों को एक पुत्र रत्न की प्राप्त तो हुई लेकिन दुर्भाग्य से यह बच्चा मृत पैदा हुआ । प्रियवद पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे, लेकिन वैसे ही भगवान की मंशा कन्या देवसेना प्रकट हुई और उन्होंने प्रियंवद से उनकी पूजा करने के लिए कहा। राजा ने पुत्र प्राप्त की इच्छा से देवी षष्ठी (देवसेना ) का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। कहते हैं यह पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुई थी। तभी से सनातन धर्म में यह प्रथा प्रचलित होती चली आ रही है ।

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