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अशोकनगर के जलसा सभागार में पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास पर विचार गोष्ठी आयोजन

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रांची : अशोकनगर के जलसा सभागार में पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास पर आयोजित एक विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक रोशन ने कहा की पुनर्स्थापन और पुनर्वास बेहद महत्वपूर्ण विषय है। आज इस विषय पर चर्चा होती है और लोग अपने अधिकारों को लेकर लड़ते भी हैं। कानून के दायरे में उन्हें न्याय भी प्राप्त हो रहा है लेकिन एक समय ऐसा था जब इस विषय को लेकर चर्चा नहीं होती थी। गैर सरकारी संगठनों के बारे में भी लोग बहुत ज्यादा अवेयर नहीं थे। उस समय प्रणय जी ने क्रैडल नमक गैर सरकारी संगठन का गठन किया और पुनर्स्थापना, पुनर्वास को लेकर एक अभियान शुरू किया। उसे अभियान को मैं प्रारंभिक काल से देख रहा हूं आज यह संगठन वैश्विक क्षितिज पर जाने को प्रयासरत है, पूरे देश भर में काम हो रहा है। जिस नीति और सिद्धांतों को लेकर क्रैडल का गठन किया गया था आज वही मूल्य हमें देखने को मिलता है। मैंने देखा है कि इस संगठन के कार्यकर्ता नक्सली क्षेत्र में भी जाकर ताल्लीनता और सहजता के साथ काम किए हैं। कई ऐसे कार्य हैं जो केवल और केवल क्रैडल जैसी संस्था ही कर सकती थी और क्रैडल ने ऐसा करके दिखाया। मैं अपने आप को धन्य पाता हूं की प्रथम चरण में मैं भी थोड़ा सा योगदान दिया था। विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए फूड सिक्योरिटी के एक्सपर्ट बलराम जी ने कहा, आम नागरिकों की सुरक्षा, उनके भोजन की सुरक्षा बेहद जरूरी है। पुनर्स्थापना और पुनर्वास किन शर्तों पर होना चाहिए यह सभी पक्षों को मिलकर देखना और करना पड़ेगा। बलराम जी ने कहा स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले से झारखंड में लोगों का विस्थापन हो रहा है। उन्होंने एक आंकड़ा प्रस्तुत करते हुए कहा कि एक करोड़ से अधिक झारखंड के लोगों का विस्थापन हुआ है। जितना झारखंड में विस्थापन हुआ उतना अन्य किसी जगह देखने को नहीं मिलता है। बलराम जी ने कहा कि वैसे तो सड़क, यातायात के साधन, दूरसंचार, संचार व्यवस्था आदि के लिए भी भूमि अधिग्रहण किए जाते हैं और लोग वहां से विस्थापित होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा विस्थापन उद्योग, कारखाने और बड़े-बड़े बांधो के कारण होता है। झारखंड में यह तीनों चीजे हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर यहां विस्थापन हुआ है। हम लोगों ने देखा है कि विस्थापन के कारण कितनी बड़ी समस्या लोगों को उठानी पड़ती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा की दो परिवार केवल बचे हुए थे और चारों तरफ से वे पानी से घिर चुके थे। सरकारी आंकड़े में उनका विस्थापन नहीं हुआ था और उन्हें सरकार मुआवजा देने के लिए भी तैयार नहीं थी। ऐसे में वह क्या करते। यह बड़ी समस्या है। विस्थापन के लिए जिम्मेदार प्रबंधन, विस्थापितों का दर्द नहीं समझती। इसके लिए ठोस और व्यावहारिक नीति की जरूरत है। उन्होंने फूड सिक्योरिटी पर भी गंभीरता से अपने विचार रखें। उन्होंने कहा, व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे आदमी को कभी खाने की समस्या ना हो। विस्थापन फूड सिक्योरिटी को भी प्रभावित करता है। आने वाले समय में झारखंड में पानी की बड़ी समस्या होने वाली है। इसके लिए हमें पहले से सतर्क हो जाना चाहिए। एचईसी पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इतना बड़ा लैंड उन्होंने एक्वायर कर लिया, जो बेहद उपजाऊ जमीन थी। किसानों से वह जमीन ली गई। अगर आज वह जमीन ऐसे पड़ी हुई है उसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है तो किसानों को लौटा दिया जाना चाहिए। यही स्थिति खादानों की भी है। बहुत सारे ऐसे खदान हैं जहां पर खनन करने वाली एजेंसी जा चुकी है और खदान खाली पड़ा हुआ है। उसे नई और व्यावहारिक तकनीक के माध्यम से कृषि योग्य बनाया जा सकता है और उसका बड़ा भूभाग खेती के लिए उपयोग में लाया जा सकता है लेकिन इस कार्य के लिए ना तो सरकार संवेदनशील दिख रही है न ही स्थानीय किसी जनप्रतिनिधि को पड़ी है।

विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए अवकाश प्राप्त भारी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन के निदेशक विपणन राणा चक्रवर्ती ने कहा मेरी दृष्टि में दिखावा से हमें बचाना चाहिए। हमलोग दिखावा ज्यादा करते हैं और काम बहुत काम करते हैं। आज कंपनियों के पास सीएसआर का बड़ा फंड है। उसका उपयोग करके हम पुनर्वास पुनर्स्थापना की बड़ी समस्या का समाधान निकाल सकते हैं, लेकिन वहां दिखावा ज्यादा हो रहा है और काम बहुत कम हो रहा है। हमें इस दिशा में सोचना चाहिए। विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए अधिवक्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट सुनील महतो ने कहा कि भूमि से संबंधित अधिकारी भूमि विकास पदाधिकारी को साल में 120 दिन क्षेत्र में जाकर भूमि से संबंधित समस्या का समाधान करना अनिवार्य बताया गया है, लेकिन ऐसा नहीं हो पता है। उन्होंने कहा राज्य में 170 से 180 हत्याएं भूमि विवाद के कारण हो रही है। भूमि विवाद की समस्या ऐसी है जिसको सुलझाया जाना बहुत जरूरी है। उन्होंने पुनर्वास और पुनर्स्थापना पर कहा सरकार, रैयत और जमीन अधिकृत करने वाली एजेंसी को आपस में मिल बैठकर समस्या का समाधान करना चाहिए, जिसमें रैयत को किसी प्रकार का कोई कष्ट ना हो और उन्हें एक ऐसा संबल प्रदान हो जिससे उनकी कई पीढ़ी आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बना रहे। साम्यवादी चिंतक सुशांतो मुखर्जी ने भूमि अधिग्रहण, पलायन, विस्थापन और पुनर्वास पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा हमारा प्रथम लक्ष्य है इसके लिए हमें संघर्ष का रास्ता भी चुनना चाहिए।

अध्यक्षीय भाषण में क्रैडल के सचिव प्रणय कुमार ने पुनर्वास एवं विस्थापन, पलायन विकास आदि विषयों पर विसद चर्चा की। उन्होंने कहा की मानव सभ्यता के साथ विकास जुड़ा हुआ है। बिना संसाधन के विदोहन के विकास संभव नहीं है। विकास कहीं न कहीं जमीन पर ही होगा। यदि ऐसा है तो किसी न किसी की जमीन जाएगी, उसे कोई रोक नहीं सकता है। इसलिए कोई व्यक्ति पीछे की बातों को लेकर आ जाए ऐसे में समस्या का समाधान नहीं होगा। विकास की अवधारणा को दुरुस्त करना है, तो विस्थापन और पलायन होगा लेकिन हमें विस्थापन से डरना नहीं है। यदि विस्थापन, पलायन जरूरत नहीं होती तो ऐसा नहीं होता। श्री कुमार ने कई उदाहरण देकर विस्थापन और पुनर्वास को समझने की कोशिश की। उन्होंने कहा सरकार की जमीन अगर होती है तो उसका मुआवजा सरकार तय करती है। जंगल की जमीन यदि अधिकृत किया जाता है, तो उसका भी जंगल विभाग के द्वारा दर किया किया जाता है लेकिन आम रैयत की जमीन यदि अधिग्रहित की जाती है, तो सरकार के द्वारा तय दाम ही उन्हें मिल पाता है। इस प्रकार की कई विसंगतियां हैं, जिसे ठीक करने की जरूरत है। हमें उन विसंगतियों को दूर करना होगा। सरकार और विकास करने वाली विभिन्न एजेंसियों का मन साफ करना पड़ेगा। तभी ठीक नीति बनेगी और कल्याणकारी सरकार का जो सिद्धांत है वह सही साबित होगा। कार्यक्रम के अंत में संस्था की अध्यक्ष संगीता कुमारी ने आगत अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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