- महिला पुरुष पूजा पाठ कर ग़ुलाल लगा मनाया विवाह उत्सव
रिपोर्ट : अविनाश कुमार
जारंगडीह में आयोजित नौ दिवसीय रामचरित मानस यज्ञ के तीसरे दिन शनिवार को भक्तो की भीड़ परिक्रमा के लिए उमड़ा यहां आज भगवान राम सहित चारो भाइयों का विवाह उत्सव मनाया गया विवाह का कलेवा लेकर यज्ञ समिति के सचिव बसंत ओझा व पत्नी यज्ञ मंडप का परिक्रमा किया यहां अयोध्या से आये स्वामी पुरेन्द्र जी महाराज विधि पूर्वक विवाह उत्सव को संपन्न कराया। इस समय उपस्थित लोगों ने भजन कीर्तन के साथ साथ अबीर गुलाल लगाकर गले लगे व विवाह उत्सव मनाया। यहां स्वामी पुरेन्द्र जी महाराज ने कहा कि उत्सव का दिन है भगवान का विवाह हो गई उत्सव के माहौल में रहने से मन प्रफुलित होता है।

मां पार्वती के आशीर्वाद से माता सीता को मिले भगवान राम : साध्वी
रामचरितमानस नवाह परायण महायज्ञ के तीसरे दिन शनिवार को प्रयागराज से पधारी साध्वी मानस समीक्षा जी ने ने भक्तो को प्रवचन मे कहा की मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को भगवान राम और देवी सीता का विवाह हुआ था। इस तिथि में राम जानकी का विवाह होने की वजह से इस दिन को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। भगवान राम के विवाह के विषय में कहा जाता है कि विवाह से एक दिन पहले ही दोनों की एक मुलाकात हो चुकी थी। यह मुलाकात रामचरित मानस का एक बेहद रोचक प्रसंग है। भगवान राम और देवी सीता की मुलाकात एक अद्भुत संयोग था। विवाह से पहले मिथिला में गौरी माता की पूजा की परंपरा रही है। जनक जी की वाटिका में देवी पार्वती का मंदिर था। देवी सीता यहां अपनी सखियों के साथ देवी पार्वती की पूजा के लिए आई थीं। इसी समय भगवान राम भी अपने गुरु की आज्ञा से वाटिका में पूजा के लिए फूल लेने आए थे। संयोग ऐसा हुआ कि वाटिका में देवी सीता और राम आमने सामने आ गए। सकुचाते हुए देवी सीता ने भगवान राम को देखा और राम की दृष्टि भी देवी सीता की ओर गई। दोनों को ऐसा लगा जैसे वे जन्म-जन्मांतर के साथ हों। देवी सीता मन ही मन भगवान राम को पति रूप में पाने की कामना करने लगीं जिसका उल्लेख तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में किया है। देवी सीता माता पार्वती को पूजने जाती हैं तो मन में भगवान राम की ही छवि बैठी होती है और देवी पार्वती से प्रार्थना करती हैं कि जिनके सिर पर मुकुट, कानों में कुंडल, माथे पर तिलक और जिनके अंग प्रत्यंग सुंदर हैं तथा जो संग्राम में खर और दूषण को जीतना जानते हैं वही मुझे पति रूप में प्राप्त हों। देवी सीता के मन की बातों को समझकर देवी पार्वती ने भी उन्हें आशीष दिया कि” मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि, सो बरु सजह सुंदर सांवरो”।करुणा निधान सुजान, सील सनेह जानत रावरो। देवी पार्वती ने देवी सीता को आशीष देते हुए कहा कि जो वर तुम्हारे मन में बसा हुआ है वही तुम्हें पति रूप में प्राप्त होगा। देवी पार्वती को अनुकूल जानकर देवी सीता अत्यंत प्रसन्न हो गईं। देवी सीता के बाएं अंग फड़कने लगे। तुलसीदासजी ने इस विषय में लिखा है कि देवी सीता के बाम अंग का फड़कना शुभ सूचक था कि उन्हें राम ही पति रूप में प्राप्त होंगे। रावण ने देवी सीता का हरण करके उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था उस दौरान भी जब हनुमानजी देवी सीता की खोज में लंका आए थे तब देवी सीता के बाम अंग फड़कने लगे थो जो शुभ सूचक था। राम रावण के वध के समय भी देवी सीता के बाम ने उन्हें शुभ की सूचना पहले ही दे दी। इसलिए कहा जाता है कि स्त्रियों के बाम अंग का फड़कना शुभ सूचक होता है। यज्ञ समिति कार्यक्रम सफलता को लेकर काफी उत्साहित हैं। मौक़े पर सचिव बसंत ओझा, योगेंद्र सोनार, नेमचंद मंडल, बासुदेव मंडल, विजय पांडेय आदि शामिल थे।