ध्यान दें, आज की कहानी सिर्फ इतिहास की नहीं… यह उस जुनून की है, जिसने एक बंद दरवाज़े को 22 साल पहले खोला था। लेकिन क्या अब वह दरवाज़ा सदा के लिए खुलेगा? मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला को लेकर एक बार फिर हिंदू समाज सड़कों पर है, पर इस बार आंदोलन नहीं, न्याय की उम्मीद के साथ। क्या वह दिन आ गया है जब 12 मई 1997 को बंद किए गए द्वार, अब पूर्ण अधिकार की ओर खुलेंगे? चलिए चलते हैं एक ऐतिहासिक सत्य की गहराई में…
भोजशाला केवल एक इमारत नहीं, यह एक इतिहास है, आस्था है और संघर्षों की जिंदा गवाही। धार जिले की यह ऐतिहासिक संरचना पिछले दो दशकों से विवाद, आक्रोश और प्रतीक्षा का केंद्र रही है। 1997 में जब तत्कालीन प्रशासन ने यहां हिंदू समाज के प्रवेश पर रोक लगाई, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह मुद्दा 2025 तक पहुंच जाएगा। लेकिन 2003 में जब 8 अप्रैल को पहली बार ताले खोले गए, तो मानो एक नया युग शुरू हुआ। अब 22 साल बाद, उसी दिन — मंगलवार को फिर से नया इतिहास लिखने की तैयारी हो रही है। भोजशाला के ताले फिर से खुलेंगे, पर इस बार सिर्फ पूजा के लिए नहीं बल्कि पूर्ण अधिकार की मांग के साथ।
यह आंदोलन सिर्फ नारों और रैलियों तक सीमित नहीं रहा। जब 2002 में संघर्ष ने तीव्र रूप लिया, तब तीन लोगों ने अपनी जान गंवाई। आठ लोगों पर रासुका लगी, 2000 से अधिक आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया और करीब 14,000 लोगों पर केस दर्ज हुए। यह बलिदान, यह साहस सब इसीलिए था कि भोजशाला में भगवान गणेश, शिव और अन्य सनातन मूर्तियों के सामने फिर से दीप जल सकें। यही नहीं, समाज के दबाव में तत्कालीन केंद्र सरकार की मंत्री भावना बेन चिखलिया ने आदेश दिया कि हर मंगलवार यहां पूजा की जा सकेगी और वसंत पंचमी पर विशेष आयोजन हो सकेगा। वहीं, शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय को नमाज़ की इजाज़त दी गई।
भोजशाला को लेकर सिर्फ भावनाएं नहीं हैं, अब सबूत भी हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 22 मार्च 2024 से करीब 100 दिनों तक सर्वेक्षण किया और उसमें 94 सनातन मूर्तियां, 106 स्तंभ, 82 भित्ति चित्र और 31 प्राचीन सिक्के मिले, जिनमें से एक सिक्का परमार काल का है। यह प्रमाणित करता है कि भोजशाला का मूल स्वरूप सनातन परंपरा का है। यह सिर्फ श्रद्धा नहीं, ऐतिहासिक सच्चाई भी है। लेकिन वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर रोक लगा रखी है, जिससे समाज के अंदर फिर एक बार बेचैनी है।
अब हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने कानूनी मोर्चा संभाल लिया है। उनका कहना है कि भोजशाला पर ‘धार्मिक स्थल उपासना अधिनियम’ लागू नहीं होता, इसलिए यह मामला सुप्रीम कोर्ट नहीं, बल्कि हाई कोर्ट इंदौर में सुना जाना चाहिए। याचिकाकर्ता आशीष गोयल सहित कई लोग अप्रैल में प्रस्तावित सुनवाई में अपना पक्ष रखेंगे। संगठन ने साफ कहा है कि यह लड़ाई अब भावनाओं की नहीं, तर्क और कानून की है। वे आश्वस्त हैं कि न्यायपालिका उनके ऐतिहासिक अधिकारों को मान्यता देगी।
8 अप्रैल 2025 को भोजशाला के ताले खुले 22 साल पूरे होंगे, और इस दिन का मंगलवार होना एक शुभ संयोग माना जा रहा है। समाज इस दिन को सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि ‘पूर्ण मुक्ति संकल्प दिवस’ के रूप में मना रहा है। धार्मिक आस्थाएं, ऐतिहासिक प्रमाण और अब न्यायिक लड़ाई तीनों मोर्चों पर भोजशाला का भविष्य तय होने जा रहा है। क्या यह दिन हिंदू समाज को केवल पूजा का अधिकार नहीं, बल्कि पूर्ण स्वामित्व दिलाएगा? यह तो न्यायपालिका तय करेगी, लेकिन जनता की आंखों में उम्मीद साफ दिख रही है, उम्मीद उस भोजशाला की, जो इतिहास में सिर्फ विवाद नहीं, सनातन की विरासत बनकर अमर हो।