केवल पंजीकृत पेशेवर ही आर्किटेक्ट की उपाधि का कर सकते हैँ उपयोग – काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर की स्पष्ट चेतावनी
रांची के सेलिब्रेशन बैंक्वेट हॉल में शनिवार को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स (IIA) झारखंड चैप्टर की ओर से एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई। जिसका विषय था वास्तुविद टाइटल का दुरुपयोग न करे। प्रेस वार्ता के माध्यम से स्पष्ट किया गया कि भारत सरकार द्वारा शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संसद द्वारा अधिनियमित वास्तु अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत वास्तुकला परिषद (CoA) का गठन किया गया है, जो 1 सितम्बर 1972 से प्रभावी हुआ। शिक्षा मंत्रालय का उच्च शिक्षा विभाग CoA का नोडल मंत्रालय/विभाग है। यह अधिनियम वास्तुकारों के पंजीकरण, शिक्षा के मानकों, मान्यता प्राप्त योग्यताओं और वास्तु अभ्यास के मानकों को निर्धारित करता है, जिनका पालन कार्यरत वास्तुकारों को करना अनिवार्य है। वास्तुकला परिषद को पूरे भारत में वास्तु शिक्षा और पेशे के अभ्यास को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, साथ ही यह वास्तुकारों का पंजीकरण रजिस्टर भी बनाए रखती है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारत सरकार ने नियम बनाए हैं और परिषद ने अधिनियम के अंतर्गत विनियम तैयार किए हैं, जिन्हें भारत सरकार की स्वीकृति प्राप्त है। जहां बताया गया कि कोई भी व्यक्ति जो ‘वास्तुकार’ के पेशे का अभ्यास करना चाहता है, उसे वास्तुकला परिषद में पंजीकृत होना आवश्यक है। पंजीकरण के लिए व्यक्ति को वास्तु अधिनियम में उल्लिखित आवश्यक योग्यता प्राप्त करनी होती है, जो CoA द्वारा निर्धारित न्यूनतम वास्तु शिक्षा मानकों (2020 विनियम) के अनुसार प्राप्त की जाती है। पंजीकरण प्राप्त व्यक्ति को वास्तु पेशे का अभ्यास करने का अधिकार प्राप्त होता है, बशर्ते उसके पास अद्यतन नवीनीकरण के साथ पंजीकरण प्रमाणपत्र हो। यह पंजीकरण व्यक्ति को “वास्तुकार” शीर्षक और शैली का उपयोग करने का अधिकार भी देता है। वास्तुकारों की फर्म, जिसमें सभी साझेदार CoA में पंजीकृत हों, भी इस शीर्षक का उपयोग कर सकती है। हालांकि, लिमिटेड कंपनियाँ, निजी/सार्वजनिक कंपनियाँ, सोसायटीज़ और अन्य विधिक संस्थाएँ इस शीर्षक का उपयोग करने या वास्तु पेशे का अभ्यास करने की पात्र नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति झूठा दावा करता है कि वह पंजीकृत है या “वास्तुकार” शीर्षक का दुरुपयोग करता है, तो यह एक आपराधिक अपराध माना जाएगा, जो वास्तु अधिनियम, 1972 की धारा 36 या 37(2) के अंतर्गत दंडनीय है।


वास्तु पेशे का अभ्यास वास्तुकारों के व्यावसायिक आचरण विनियम, 1989 (संशोधित 2003) द्वारा नियंत्रित होता है, जो व्यावसायिक नैतिकता, शिष्टाचार, अनुबंध की शर्तें, शुल्क की दरें, वास्तु प्रतियोगिता दिशानिर्देश आदि से संबंधित हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य रूप से वास्तुकला परिषद् के उपाध्यक्ष वास्तुविद गजानंद राम, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट के चेयरमैन वास्तुविद अतुल सर्राफ, वाइस चेयरमैन अपूर्व मिंज, लीगल एडवाइजर अधिवक्ता विभाष सिंहा, संयुक्त सचिव अनुराग कुमार, कोषाध्यक्ष अमित बारला, वरिष्ठ आर्किटेक्ट अरुण कुमार एवं गोपीकांत महतो, नितेश नाग, शोभित हांसदा, प्रदीप समीर एक्का, प्रीति विजय, कुमार अभिषेक, अंकित बैरी, देव कुमार आदि उपस्थित थे।