बेरमो : शहीद प्रेमचन्द सिन्हा की जीवनगाथा अन्याय, ज़ुल्म और शोषण पर टिकी व्यवस्था में जी रहे हर उस नौजवान के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो इस व्यवस्था में घुटन महसूस कर रहे हों। यह बातें विस्थापित नेता काशीनाथ केवट ने शहीद प्रेमचंद सिन्हा को श्रद्धांजलि देते हुए कही। वे आज चलकरी में आहूत श्रद्धांजलि कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होने कहा कि बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। करोड़ों मजदूर और पढ़ेलिखे नौजवान, जो शरीर और मन से दुरूस्त हैं और काम करने के लिए तैयार है, उन्हे अवसर से वंचित कर दिया गया और भूखो मरने या अपराधी बन जाने के लिए सड़कों पर धकेल दिया गया है। ऐसी परिस्तिथि में इस पूंजीवादी व्यवस्था में देश के युवाओं के सामने सिर्फ़ इंक़लाब ही एकमात्र विकल्प हो सकता है और इस इंकलाब में शहीद प्रेमचन्द सिन्हा जैसे शहीदों की कृतियाँ रास्ता दिखाने वाली मशाल की तरह है। कहा कि प्रेमचन्द सिन्हा अस्सी के दशक में पटना युनिवर्सिटी के महासचिव औऱ क्रांतिकारी जननेता थे। अलग झारखंड राज्य आंदोलन के साथ साथ पूरे देश में उस समय चल रहे राष्ट्रीयता के आंदोलनों में छात्रों युवाओं को जोड़ने के लिए छात्र मुक्ति मोर्चा का गठन उन्हीं के नेतृत्व में हमलोगों ने किया था। उन्होंने कहा कि छात्र मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में हुए जुझारू आंदोलनों ने ही झारखंड में वह पृष्ठभूमि तैयार कर दिया था जिसपर आजसू जैसे संगठन का निर्माण और उग्र आर्थिक नाकेबंदी जैसे आंदोलनों में युवाओं ने भागीदारी निभाई और अलग राज्य आंदोलन को एक मुकाम तक पहुंचाया। उन्होने कहा कि प्रेमचन्द सिन्हा के नेतृत्व में छात्रों नौजवानों, किसानों मजदूरों ने व्यापक आंदोलन किया था, यही वजह थी कि भूमि सेना के लोगों ने उन्हें पटना में गोली मारकर कायरतापूर्ण तरीके से हत्या कर दी थी। कहा कि झारखंडअलग राज्य बने चौबीस साल हो गए परंतु केन्द्र सरकार की किसान मजदूर विरोधी नीतियों के चलते रत्नगर्भा झारखंड के लोग़ आज़ भी भुखमरी की त्रासदी झेल रहा है। विस्थापन औऱ पलायन की समस्या औऱ विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में झारखंड में एक नए उलगुलान की वस्तुगत अनिवार्यता जान पड़ती है। जनक प्रसाद भगत ने कहा कि केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों से हर वर्ग परेशान है। युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहा है। श्रद्धांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता जनक प्रसाद भगत ने की। मौके पर बहादुर महतो, धर्मनाथ महतो, कामेश्वर गिरी, चुनिलाल केवट, राजाराम मांझी, मो जहांगीर, किशोरी सिंह, अब्दुल करीम, दशरथ मांझी, रामविलास मंडल, झरी नायक, भूषण केवट, सरफराज अंसारी, अब्दुल कयूम आदि शामिल थे।