Basic Education Department in Raebareli : बेसिक शिक्षा विभाग में अजब-गजब खेल सरकार के नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां, ऑनलाइन अटेंडेंस में मनमानी पर सवाल

Basic Education Department in Raebareli : उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में इन दिनों अजब-गजब खेल चल रहा है, जहां सरकारी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम को लेकर विभागीय अधिकारियों की मनमानी चरम पर है, और बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) राहुल के सख्त निर्देशों के बावजूद कई जिलों में नियमों को ताक पर रख दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, कुछ जनपदों में तो बिना किसी आधिकारिक मंजूरी के ऑनलाइन टीचर्स अटेंडेंस और स्टूडेंट अटेंडेंस सिस्टम को चालू कर दिया गया है, जबकि अन्य जगहों पर यह पूरी तरह से ठप पड़ा है। विशेष रूप से रायबरेली जिले में स्थिति और भी खराब है, जहां ऑनलाइन अटेंडेंस का आंकड़ा शून्य पर अटका हुआ है। यह मामला विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की ओर इशारा कर रहा है, जिससे लाखों छात्रों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।

पृष्ठभूमि: ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम की शुरुआत और नियम

उत्तर प्रदेश सरकार ने कोविड-19 महामारी के बाद से बेसिक शिक्षा विभाग में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को बढ़ावा देने के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम को अनिवार्य किया था। इसका उद्देश्य शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति को पारदर्शी बनाना, फर्जी हाजिरी को रोकना और स्कूलों की कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित करना था। शासन के निर्देशों के अनुसार, सभी जिलों में एक समान सिस्टम लागू किया जाना था, जिसमें बायोमेट्रिक या ऐप-बेस्ड अटेंडेंस शामिल है। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है।

विभागीय सूत्र बताते हैं कि बीएसए राहुल ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी कर सभी ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों (बीईओ) को सख्त हिदायत दी थी कि ऑनलाइन अटेंडेंस को बिना किसी छेड़छाड़ के लागू किया जाए। निर्देश में स्पष्ट कहा गया था कि कोई भी स्थानीय स्तर पर मनमानी नहीं बरती जाएगी, और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई होगी। लेकिन इन निर्देशों का पालन न के बराबर हो रहा है। कई जिलों में शिक्षक और प्रधानाध्यापक पुराने मैनुअल सिस्टम पर ही टिके हुए हैं, जबकि कुछ जगहों पर बिना शासन की मंजूरी के नए ऐप या सॉफ्टवेयर को चालू कर दिया गया है।

विभागीय अधिकारियों पर आरोप है कि वे स्थानीय प्रभावशाली लोगों के दबाव में आकर नियमों को तोड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, एक जिले में बीईओ ने बिना शासन की अनुमति के स्टूडेंट अटेंडेंस ऐप को लॉन्च कर दिया, जिससे डेटा की गोपनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। इससे न केवल सरकारी फंड का दुरुपयोग हो रहा है, बल्कि छात्रों की सही उपस्थिति का रिकॉर्ड भी प्रभावित हो रहा है, जो आगे चलकर मिड-डे मील और छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं पर असर डाल सकता है।

रायबरेली में शून्य: सबसे खराब स्थिति

सबसे चौंकाने वाली बात रायबरेली जिले की है, जहां ऑनलाइन अटेंडेंस का आंकड़ा शून्य पर ठहरा हुआ है। जिले के सैकड़ों स्कूलों में शिक्षक और छात्रों की उपस्थिति अभी भी मैनुअल रजिस्टर पर दर्ज हो रही है, और ऑनलाइन सिस्टम को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। स्थानीय शिक्षक संघ के एक पदाधिकारी ने कहा, “यहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है – न बिजली, न इंटरनेट। बीएसए के निर्देश आए, लेकिन अमल नहीं हुआ। नतीजा यह है कि जिले की रैंकिंग सबसे नीचे है, और ऊपर से दबाव बढ़ रहा है।” रायबरेली में यह स्थिति इसलिए भी गंभीर है क्योंकि यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील जिला है, और शिक्षा जैसे मुद्दों पर यहां की जनता पहले भी आवाज उठा चुकी है।

विभाग की लापरवाही और संभावित परिणाम

बेसिक शिक्षा विभाग के इस खेल से न केवल सरकारी नियमों की अवहेलना हो रही है, बल्कि लाखों छात्रों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन अटेंडेंस की मनमानी से फर्जी शिक्षकों का पता चलना मुश्किल हो जाता है, और बजट का दुरुपयोग बढ़ता है। हाल ही में विभाग ने स्कूलों की रैंकिंग ऑनलाइन अटेंडेंस के आधार पर तय करने का ऐलान किया था, लेकिन अगर सिस्टम ही लागू नहीं हो रहा तो यह योजना बेमानी साबित होगी।

शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय से इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया मांगी गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। वहीं, विपक्षी दलों ने इस पर हमला बोलते हुए कहा है कि योगी सरकार शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चुप है। समाजवादी पार्टी के एक नेता ने टिप्पणी की, “यह सरकार का दोहरा चरित्र है – नियम बनाते हैं, लेकिन अमल नहीं कराते। रायबरेली जैसे जिलों में शून्य अटेंडेंस से साफ है कि ग्रामीण शिक्षा की हालत कितनी खराब है।”

आगे क्या?

विभागीय सूत्रों का कहना है कि बीएसए राहुल जल्द ही एक जांच समिति गठित कर सकते हैं, और लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है। लेकिन जब तक शासन स्तर पर सख्ती नहीं बरती जाएगी, यह खेल जारी रहेगा। शिक्षक संघों ने भी इस मुद्दे पर विरोध जताया है और मांग की है कि ऑनलाइन सिस्टम को सभी जिलों में एकसमान रूप से लागू किया जाए, साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को दूर किया जाए।

यह मामला उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में गहरे संकट की ओर इशारा करता है, जहां डिजिटल इंडिया के दावों के बीच ग्रामीण स्कूलों की हकीकत कुछ और ही है। अगर जल्द सुधार नहीं हुआ तो लाखों बच्चों का भविष्य दांव पर लग सकता है।

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