भारत के केरल में एक खतरनाक और दुर्लभ बीमारी, जिसे आम भाषा में ‘दिमाग खाने वाला अमीबा कहा जा रहा है, ने दहशत मचा दी है। इस साल अब तक इस बीमारी के कारण 19 लोगों की जान जा चुकी है, और 61 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। इस घातक बीमारी, जिसका वैज्ञानिक नाम प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) है। नेगलेरिया फाउलेरी नामक सूक्ष्मजीव के कारण होने वाला मस्तिष्क संक्रमण बताया जा रहा है। केरल के स्वास्थ्य विभाग और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) ने इसे लेकर हाई अलर्ट जारी किया है। डॉक्टरों ने इसे ‘साइलेंट किलर’ करार देते हुए लोगों को इसके चार प्रमुख लक्षणों को नजरअंदाज न करने की सख्त चेतावनी दी है।
क्या है ‘दिमाग खाने वाला अमीबा’?

नेगलेरिया फाउलेरी एक सूक्ष्म परजीवी है जो गर्म, स्थिर और दूषित मीठे पानी जैसे तालाबों, झीलों, नदियों और खराब रखरखाव वाले स्विमिंग पूलों में पनपता है। यह अमीबा नाक के रास्ते मानव शरीर में प्रवेश करता है और मस्तिष्क तक पहुंचकर गंभीर सूजन (मेनिंगोएन्सेफलाइटिस) पैदा करता है। यह मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट कर देता है, जिससे मरीज की स्थिति तेजी से बिगड़ती है और ज्यादातर मामलों में 1-2 सप्ताह के भीतर मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी की मृत्यु दर 97-98% तक है, जो इसे बेहद खतरनाक बनाती है।
केरल में क्यों बढ़ रहे हैं मामले?
केरल में इस बीमारी के बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं:
- गर्म जलवायु : बढ़ता तापमान और गर्म परिस्थितियां नेगलेरिया फाउलेरी के लिए आदर्श प्रजनन स्थल बनाती हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलाशयों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे यह अमीबा तेजी से पनप रहा है।
- दूषित जल स्रोत : केरल में लोग अक्सर नदियों, तालाबों और स्थानीय जलाशयों में स्नान या तैराकी करते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
- कम जागरूकता : शुरुआती लक्षण सामान्य बुखार या फ्लू जैसे होने के कारण लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, जिससे निदान में देरी होती है।
- हाल ही में तिरुवनंतपुरम के एक 17 वर्षीय किशोर को अक्कुलम टूरिस्ट विलेज के स्विमिंग पूल में तैरने के बाद संक्रमण हुआ, जिसके बाद पूल को बंद कर दिया गया। इसी तरह मलप्पुरम, वायनाड और कोझिकोड जिलों में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं।
डॉक्टरों की चेतावनी: इन 4 लक्षणों को न करें इग्नोर
डॉक्टरों के अनुसार, प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) के शुरुआती लक्षण सामान्य वायरल संक्रमण या बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस जैसे हो सकते हैं, लेकिन इन्हें नजरअंदाज करना जानलेवा हो सकता है। निम्नलिखित चार प्रमुख लक्षणों पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है:
- तेज सिरदर्द : लगातार और असहनीय सिरदर्द, जो सामान्य दवाओं से ठीक न हो।
- बुखार और मतली : अचानक तेज बुखार और उल्टी या जी मिचलाने की समस्या।
- गर्दन में अकड़न : गर्दन में जकड़न या हिलाने में दर्द, जो मेनिन्जाइटिस का संकेत हो सकता है।
- मानसिक भ्रम और दौरे : व्यवहार में बदलाव, भटकाव, दौरे पड़ना या चेतना खोना।
ये लक्षण आमतौर पर संक्रमण के 1-9 दिनों के भीतर दिखाई देते हैं और कुछ ही घंटों में गंभीर हो सकते हैं। यदि ये लक्षण दिखें, तो तुरंत चिकित्सीय सहायता लें।
डॉक्टरों की सलाह: सतर्कता ही बचाव
डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज या वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नहीं है। हालांकि, कुछ मामलों में एम्फोटेरिसिन बी, मिल्टेफोसिन, फ्लुकोनाजोल और एजिथ्रोमाइसिन जैसी दवाओं के संयोजन से इलाज संभव हुआ है, लेकिन सफलता दर बहुत कम है। इसलिए, सतर्कता और जागरूकता ही इस ‘साइलेंट किलर’ से बचने का सबसे बड़ा हथियार है। डॉक्टरों ने निम्नलिखित सावधानियां बरतने की सलाह दी है:
- गर्म और स्थिर जलाशयों से बचें : तालाब, झील या खराब रखरखाव वाले स्विमिंग पूल में तैरने से बचें।
- नाक को सुरक्षित रखें : तैरते समय नाक में क्लिप लगाएं या नाक को बंद रखें ताकि पानी अंदर न जाए।
- स्वच्छ पानी का उपयोग : नहाने और नाक धोने के लिए केवल उबला हुआ या फ़िल्टर किया हुआ पानी इस्तेमाल करें।
- पूल का रखरखाव : स्विमिंग पूल में नियमित क्लोरीनेशन सुनिश्चित करें।
- तुरंत चिकित्सा सहायता : सिरदर्द, बुखार, उल्टी या गर्दन में अकड़न जैसे लक्षण दिखते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
केरल में स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई
केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बताया है। सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं:
- जलाशयों की जांच : सभी जल स्रोतों और स्विमिंग पूलों की नियमित जांच और क्लोरीनेशन अनिवार्य किया गया है।
- जागरूकता अभियान : लोगों को दूषित पानी के खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान शुरू किए गए हैं।
- अस्पतालों में अलर्ट : कोझिकोड मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों को संदिग्ध मामलों की तुरंत जांच और इलाज के लिए निर्देश दिए गए हैं।
- विशेषज्ञ टीमें : न्यूरोलॉजिस्ट, संक्रामक रोग विशेषज्ञ और गहन देखभाल विशेषज्ञों की बहु-विषयक टीमें बनाई गई हैं।
जलवायु परिवर्तन का खतरा
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी बढ़ने से इस अमीबा का खतरा और बढ़ सकता है। गर्म पानी और प्रदूषित जलाशय इस परजीवी के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। साथ ही, गर्मी से राहत पाने के लिए लोग अधिक संख्या में जलाशयों की ओर रुख करते हैं, जिससे संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है।










