Asha Workers Protest : उत्तर प्रदेश के एटा जिले में आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ताओं का धरना प्रदर्शन मंगलवार को उग्र हो गया। तीन दिनों से लगातार अपनी मांगों को लेकर धरना दे रही आशा बहनों ने आक्रोश में आकर सड़क पर उतर आईं और चक्का जाम कर दिया। इस प्रदर्शन के कारण कुछ देर के लिए यातायात पूरी तरह ठप हो गया, जिससे स्थानीय लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। सूचना मिलते ही पहुंची पुलिस ने समझा-बुझाकर जाम खुलवाया, लेकिन आशाओं की मांगें पूरी न होने तक आंदोलन जारी रहने का ऐलान किया गया है।
धरना प्रदर्शन का रूप ले लिया उग्र स्वरूप

एटा जिले में आशा कार्यकर्ताओं का यह आंदोलन रविवार से शुरू हुआ था, जब सैकड़ों आशा बहनों ने जिला मुख्यालय पर धरना शुरू किया। उनकी मुख्य मांगें हैं- आशा कार्यकर्ताओं को स्थायी नौकरी प्रदान की जाए, मासिक वेतन 18,500 रुपये किया जाए, साथ ही अन्य लाभ जैसे पेंशन, चिकित्सा सुविधा और कार्यस्थल पर सुरक्षा के उपाय सुनिश्चित किए जाएं। आशा संघ का आरोप है कि लंबे समय से इन मांगों पर प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिससे ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ रहा है।
सोमवार को शांतिपूर्ण धरना जारी रहा, लेकिन मंगलवार को जब कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने पर आशाओं का सब्र टूट गया। दोपहर करीब 12 बजे, लगभग 200 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं ने एटा-कानपुर मार्ग पर सड़क जाम कर दी। वे सड़क पर ही बैठ गईं और नारे लगाने लगीं- “आशाओं की मांगें पूरी करो, स्थायीकरण करो!” “18,500 वेतन दो, अन्यथा आंदोलन बढ़ाओ!” इस चक्का जाम ने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया।
यातायात ठप, स्थानीय लोगों में रोष
रोड जाम के कारण एटा शहर से जुड़ने वाले प्रमुख मार्गों पर वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। स्कूल वाहन, एम्बुलेंस और अन्य आवश्यक सेवाओं को भी परेशानी हुई। एक स्थानीय निवासी ने बताया, “हमारे बच्चों को स्कूल ले जाना मुश्किल हो गया। आशा बहनों की मांगें जायज हैं, लेकिन आम जनता को परेशान नहीं करना चाहिए।” जाम लगभग 45 मिनट तक चला, जिस दौरान डायवर्जन की व्यवस्था न होने से ट्रैफिक जाम और गहरा गया।
पुलिस ने संभाली स्थिति, समझा-बुझाकर खुलवाया जाम
जाम की सूचना मिलते ही एटा कोतवाली पुलिस और यातायात विभाग की टीम मौके पर पहुंची। एसपी एटा के निर्देश पर महिलाओं की एक विशेष टीम भी बुलाई गई, जो आशा बहनों से बातचीत करने लगी। करीब आधे घंटे की समझाइश के बाद आशाएं सड़क से हटीं और धरना स्थल पर लौट गईं। पुलिस ने आश्वासन दिया कि उनकी मांगों को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा, लेकिन किसी भी प्रकार के अवरोध को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
आशा संघ अध्यक्ष पुष्पा का बाइट: “हमारी मांगें जायज, आंदोलन जारी रहेगा”
प्रदर्शन के दौरान आशा संघ एटा की अध्यक्ष पुष्पा ने मीडिया से बातचीत में कहा, “हम आशा बहनें ग्रामीण क्षेत्रों में दिन-रात मेहनत करती हैं। टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल, महामारी में आगे रहना- सब कुछ हम ही संभालती हैं। फिर भी हमें ठेके पर रखा गया है। हम स्थायीकरण और 18,500 रुपये मासिक वेतन चाहती हैं। तीन दिन से धरना दे रहीं हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन और तेज होगा। हम सड़कों पर उतरने को तैयार हैं।” पुष्पा ने अन्य मांगों में कार्यस्थल पर सुरक्षा, समय पर मानदेय भुगतान और प्रशिक्षण की भी बात कही।
आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका और चुनौतियां
आशा कार्यकर्ताएं भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा हैं, जो ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए काम करती हैं। उत्तर प्रदेश में हजारों आशा बहनें सक्रिय हैं, लेकिन कम वेतन और असुरक्षा के कारण अक्सर प्रदर्शन होता रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इनकी मांगें पूरी करना स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जरूरी है, क्योंकि ये सीधे ग्रामीण महिलाओं और बच्चों की सेहत से जुड़ी हैं।
प्रशासन की चुप्पी, क्या होगा आगे?
जिला प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। जिलाधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मांग पत्र प्राप्त हो गया है और जल्द ही बैठक बुलाई जा सकती है। हालांकि, आशा संघ ने चेतावनी दी है कि अगर 48 घंटे में कोई सकारात्मक कदम न उठा, तो राज्य स्तर पर आंदोलन तेज कर दिया जाएगा।