Mayawati Lucknow Rally : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज नीले रंग की लहरों से सराबोर नजर आई। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की संस्थापक कांशीराम की 19वीं पुण्यतिथि पर आयोजित विशाल रैली में लाखों समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ी, जो नौ साल बाद मायावती के लखनऊ में पहले बड़े सार्वजनिक संबोधन का प्रमाण बनी। अंबेडकर मैदान पर आयोजित इस कार्यक्रम ने बसपा को 2027 विधानसभा चुनावों के लिए एक मजबूत संकेत दिया, लेकिन मायावती के भाषण में बीजेपी सरकार की तारीफ और हालिया दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर नरम रुख ने विपक्ष को फिर से बसपा को ‘बीजेपी की बी-टीम’ बताने का मौका दे दिया। क्या यह रैली बसपा की सच्ची ताकत का प्रतीक है या राजनीतिक रणनीति का हिस्सा? आइए, पूरी घटना को विस्तार से समझते हैं।
रैली का भव्य स्वरूप: 5 लाख से अधिक समर्थकों का ‘नीला जनसैलाब’

रैली की शुरुआत सुबह कांशीराम की मूर्ति पर माल्यार्पण से हुई। मायावती ने अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद के साथ मंच साझा किया, जहां उन्होंने आकाश को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति की औपचारिक घोषणा भी की। मंच पर बसपा की ‘सामाजिक इंजीनियरिंग’ की रणनीति को दर्शाते हुए सात प्रमुख नेता मौजूद थे—जिनमें ब्राह्मण, मुस्लिम, पिछड़ा और दलित समुदायों के प्रतिनिधि शामिल थे।
पार्टी के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी के 403 विधानसभा क्षेत्रों से कम से कम 5 लाख समर्थक जुटे, जिनमें महिलाओं और बच्चों की उल्लेखनीय भागीदारी थी। बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश समेत पड़ोसी राज्यों से भी हजारों लोग पहुंचे। लखनऊ की सड़कें नीले झंडों, बैनरों और बसपा के प्रतीक हाथी से पट गईं। समर्थकों के नारों—’बहनजी जिंदाबाद’, ‘जय भीम’, ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’—से मैदान गूंज उठा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह भीड़ बसपा की जमीनी ताकत को दर्शाती है, जो 2022 विधानसभा चुनावों में पार्टी के महज 1 सीट और 13% वोट शेयर के बाद कमजोर पड़ चुकी थी।
मायावती ने भाषण की शुरुआत में कहा, “यह भीड़ हमारे आंदोलन की जड़ों की गहराई दिखाती है। 2007 की तरह फिर से बहुजन सरकार बनानी है।” उन्होंने 2027 चुनावों में अकेले लड़ने का ऐलान किया और गठबंधनों को ‘कमजोर करने वाला’ बताया। आकाश आनंद ने मंच से कहा, “यह भीड़ साबित करती है कि बहनजी 2027 में पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगी।”
बीजेपी की तारीफ, योगी सरकार पर नरम आलोचना: क्या चुप्पी ने निराश किया?
रैली में मायावती ने बीजेपी सरकार की नीतियों की आलोचना तो की, लेकिन तेवर ‘समीक्षा’ जैसे थे—जोरदार गरज की बजाय विश्लेषण। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें ‘जातिवादी और पूंजीवादी ताकतों’ से प्रभावित हैं, जो बहुजन हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं। लेकिन सबसे विवादास्पद बयान तब आया जब उन्होंने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की तारीफ की। मायावती ने कहा, “सपा सरकार के विपरीत, वर्तमान सरकार ने कांशीराम स्मारक पर आने वाले लोगों से वसूली बंद की है। इसके लिए हम आभारी हैं।” यह बयान रैली स्थल पर तालियों की गड़गड़ाहट लेकर आया, लेकिन विपक्ष के लिए लाल झंडी।
समर्थक जो योगी सरकार के खिलाफ तीखी आलोचना सुनने आए थे—जैसे हालिया दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर—उन्हें शायद वह ‘गरज’ न मिली। मायावती ने कहा कि बीजेपी की नीतियां बहुजन विरोधी हैं, लेकिन ‘गुप्त गठजोड़’ का जिक्र करते हुए सपा-कांग्रेस पर ज्यादा निशाना साधा। उन्होंने अखिलेश यादव को ‘दोहरे चरित्र’ का आरोपी ठहराया और कहा, “वे PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) का नारा तो देते हैं, लेकिन बहुजन समाज को कभी साथ नहीं लेते।”

हालिया दलित उत्पीड़न पर चुप्पी:
चीफ जस्टिस पर जूता, IPS अफसर की सुसाइड, रायबरेली हत्याकांड
रैली से ठीक पहले देश में तीन बड़ी घटनाएं दलित समाज को झकझोर गईं, जिन पर मायावती की चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए:
- चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने की घटना : 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंक दिया। यह घटना गवई के हिंदू देवता विष्णु की मूर्ति बहाली PIL पर टिप्पणी से जुड़ी थी, जिसे सोशल मीडिया पर ‘सनातन धर्म का अपमान’ बताया गया। गवई दलित समुदाय से हैं, और यह घटना जातिगत हमले के रूप में देखी जा रही है। विपक्ष ने इसे ‘संवैधानिक संस्था पर हमला’ कहा, लेकिन मायावती ने रैली में इसका जिक्र तक नहीं किया
- हरियाणा IPS अफसर की सुसाइड
7 अक्टूबर को हरियाणा कैडर के वरिष्ठ दलित IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार (52 वर्ष) ने चंडीगढ़ में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। उनकी 9 पेज की सुसाइड नोट में जातिगत भेदभाव, प्रमोशन में अनियमितता और वरिष्ठ अधिकारियों (DGP शत्रुजीत सिंह कपूर और रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया सहित) द्वारा उत्पीड़न के आरोप हैं। उनकी IAS पत्नी अमनीत पी. कुमार ने FIR की मांग की है। यह घटना पुलिस तंत्र में SC/ST अधिकारियों के उत्पीड़न को उजागर करती है
- रायबरेली में दलित युवक की हत्या : 2 अक्टूबर की रात रायबरेली के ऊंचाहार में 38 वर्षीय दलित युवक हरिओम को चोरी के शक में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। वायरल वीडियो में हरिओम ‘राहुल गांधी’ का नाम लेते दिखे, तो हमलावर कहते हैं, “ये सब बाबा के लोग हैं।” पांच गिरफ्तार, तीन पुलिसकर्मी निलंबित। कांग्रेस ने इसे ‘योगी राज में दलितों पर अत्याचार’ बताया। राहुल गांधी ने पीड़ित परिवार से बात की विपक्ष का हमला: ‘प्रायोजित रैली’ या सच्ची ताकत?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा, मायावती जी ‘जुल्म करने वालों के आभारी’ हैं, क्योंकि उनकी अंदरूनी सांठगांठ जारी है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भीड़ को ‘प्रायोजित’ बताया:आरटीओ ने डीजल भरा, रोडवेज बसें दीं ये सरकारी फंडेड भीड़ है। एक्स पर एक यूजर ने लिखा, “सपा की रैली में पुलिस रोकती है, लेकिन बसपा को खुली छूट—बीजेपी का खेल साफ है।
लेकिन बसपा समर्थक इसे खारिज करते हैं। पूर्व सांसद दानिश अली ने कहा, “यह जनता की सहज भागीदारी है। 2007 की यादें ताजा हो गईं।” विश्लेषक मानते हैं कि बसपा का कोर वोटर (दलित-मुस्लिम-पिछड़ा) अभी भी मजबूत है, जो सपा-कांग्रेस के PDA नारे से प्रभावित नहीं हुआ। एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “नीला जनसैलाब साबित करता है—D हमेशा बहनजी के साथ।
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बसपा का वोटर क्यों कायम? 2027 की रणनीति
बसपा का वोटर आंदोलन से जुड़ा है—अंबेडकर, कांशीराम की विरासत से। 2024 लोकसभा में पार्टी को 9.39% वोट मिले, लेकिन कोई सीट नहीं। रैली ने दिखाया कि जमीनी स्तर पर संगठन जीवित है। मायावती ने आकाश आनंद को मजबूत करते हुए कहा, “जैसे आपने कांशीराम के बाद मेरा साथ दिया, वैसे आकाश का दें।” पार्टी 2027 में अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकी है, लेकिन गठबंधन की गुंजाइश पर खामोश।
विपक्ष इसे ‘बीजेपी की रणनीति’ बता रहा है, ताकि दलित वोट बंटे। लेकिन सवाल वही: अगर रैली प्रायोजित है, तो लाखों लोग क्यों आए? और अगर सच्ची, तो दलित पीड़ा पर गरज क्यों न गूंजी? एक्स पर वायरल एक वीडियो में मायावती-चंद्रशेखर आजाद की तस्वीर साझा की गई, जो भविष्य के गठजोड़ का संकेत दे रही है।