गोरखनाथ मंदिर में नवरात्रि के चतुर्थ दिवस पर मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा विधि-विधान से संपन्न हुई। दुर्गा पाठ के बाद भक्तों ने पूजा और आरती में भाग लिया। मां कुष्मांडा, जो सृष्टि की रचनाकार मानी जाती हैं, उनकी कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
माँ कूष्माण्डा देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है, वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई। उनके मुख पर मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है। उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।

देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी अपने इन हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा है। देवी के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल फूल का बीज) का माला है, यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है। देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं। भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक का अंत होता है और आयु एवं यश की प्राप्ति होती है।
गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ जी ने आरती किया। डॉक्टर अरविंद कुमार चतुर्वेदी व अश्विनी त्रिपाठी ने पूजा व आरती कराया।
इस अवसर पर डॉ दिग्विजय शुक्ला, आचार्य पुरुषोत्तम चौबे, ओमप्रकाश त्रिपाठी, शशि कुमार, शशांक शास्त्री, मंगला त्रिपाठी, गौरव तिवारी, रुपेश मिश्रा, आदित्य पांडे, कैंप कार्यालय प्रभारी विनोद सिंह, विनय कुमार गौतम, नित्यानंद तिवारी इत्यादि लोग उपस्थित रहे।