Raebareli : जाम से कराह रहा शहर, हाईवे से लेकर छोटी बड़ी गलियों में लगता है जाम

सुबह दोपहर शाम रात लगने वाले जाम से नहीं मिल पा रही निजात

Raebareli : नवांगतुक यातायात प्रभारी की उदासीनता कहें या लापरवाही या अभिज्ञता के इन शब्दों को पूरा शहर का रहा है, जो आए दिन जाम में फंसकर घंटो खड़े होकर जाम से बाहर निकालने के लिए अपनी बारी का इंतजार करता है।

दरअसल पुलिस अधीक्षक डॉक्टर यशवीर सिंह द्वारा हाल ही में नए यातायात प्रभारी की नियुक्ति विनय तिवारी को इस उद्देश्य से दिया था कि शायद यातायात व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके, लेकिन यहां के प्रयागराज-लखनऊ(एनएचएआई) पर स्थित रायबरेली शहर स्थित सिविल लाइन (पुलिस लाइन) त्रिपुला रतापुर चौराहा इन दिनों यातायात अव्यवस्था की मिसाल बन गया है। पुलिस चौकी बूथ-यातायात पुलिस सहायता केंद्र स्थापित है। वहीं के हालात ऐसे हैं कि लगभग प्रत्येक 10 मिनट में ट्रैफिक रोकना पड़ता है और हर बार जाम लग जाता है, जिससे राष्ट्रीय राजमार्ग की रफ्तार शहर के बीच आकर ठहर जाती है। स्थिति यह है कि यदि कोई राहगीर एक मार्ग से आकर दूसरे मार्ग पर जाना चाहता है, तो उसे एक ही चौराहे पर दो बार 10-10 मिनट जाम में फंसना पड़ रहा है। नतीजा, समय की बर्बादी, मानसिक तनाव और सड़क पर लगातार बढ़ता जोखिम। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यातायात पुलिस, पुलिस बूथ और यातायात सहायता केंद्र मौजूद होने के बावजूद यह चौराहा जाम-मुक्त नहीं हो पा रहा। कारण साफ है, इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक सिग्नल महीनों से बंद पड़े हैं, जो अब केवल शोपीस बनकर रह गए हैं। चौराहे पर यातायात का पूरा बोझ मैनुअल व्यवस्था पर टिका है। तस्वीरें खुद गवाही दे रही हैं कि ट्रैफिक पुलिसकर्मी हाथों के इशारों, सीटी और तेज आवाज में चिल्लाकर वाहनों को नियंत्रित करने को मजबूर हैं। लेकिन नेशनल हाईवे पर वाहनों का दबाव इतना अधिक है कि व्यवस्था हर कुछ मिनट में चरमरा जाती है। सबसे गंभीर और संवेदनशील स्थिति एम्स रायबरेली जाने वाली एंबुलेंसों की है।

लखनऊ, प्रयागराज और आसपास के जनपदों से आने वाली एंबुलेंसों को सिविल लाइन चौराहे पर लंबे समय तक रुकना पड़ रहा है। कई बार मरीजों को मिनटों नहीं, बल्कि कई-कई मिनटों की देरी झेलनी पड़ रही है, जो किसी भी समय जानलेवा साबित हो सकती है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सुबह से शाम तक चौराहे पर अफरा-तफरी का माहौल रहता है। स्कूली बच्चे, नौकरीपेशा लोग, व्यापारी और बुजुर्ग, सभी जाम की इस स्थायी समस्या से त्रस्त हैं।यातायात प्रभारी विनय तिवारी ने स्वीकार किया कि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल लंबे समय से बंद हैं, जिन्हें सुचारू कराने के लिए संबंधित विभाग को पत्राचार किया गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इधर, सिविल लाइन चौराहे पर तैनात ट्रैफिक सिपाही विजय कुमार दीक्षित दिनभर कड़ी मशक्कत में जुटे तेज आवाज देकर ट्रॉफिक नियंत्रित करते हैं। हर 5 मिनट में जाम खुलवाने के लिए उन्हें तेज आवाज में चिल्लाना, लगातार दौड़-भाग करना और भारी दबाव झेलना पड़ रहा है। सिग्नल बंद होने के कारण मानव संसाधन पर असहनीय भार साफ दिखता है।

12 साल से अधूरी रिंग रोड फेज 1 फोरलेन पर बढ़ाया यातायात दबाव

12 साल की देरी ने बिगाड़ा शहर का ट्रैफिक गणित

शहर की इस भयावह यातायात स्थिति की जड़ में रिंग रोड फेज-1 परियोजना की 12 साल से निर्माणधीन अधूरी कहानी भी छिपी है। वर्ष 2013 में तत्कालीन सांसद सोनिया गांधी के कार्यकाल में शुरू हुआ यह ड्रीम प्रोजेक्ट आज भी अधूरा पड़ा है। यूपीए सरकार में शुरू हुआ यह कार्य एनडीए सरकार के वर्षों बाद भी पूरा नहीं हो सका। रेलवे और ब्रिज का निर्माण आज तक कछुआ गति से चल रहा है। परिणामस्वरूप, शहर का सारा यातायात दबाव एनएचएआई के फोरलेन पर आ गया है। नतीजा—आए दिन सड़क हादसे। पिछले सप्ताह ही सारस होटल के पास ट्रक हादसे में नवयुवक अभिनव शुक्ला की मौत ने व्यवस्था की पोल खोल दी। त्रिफला चौराहा, रतापुर, सारस होटल, पुलिस लाइन चौराहा और इंदिरा उद्यान के आसपास लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं, कहीं मौत, कहीं हाथ-पैर टूटना, तो कहीं वाहन क्षतिग्रस्त। शहर के नागरिक सूरज मौर्य का कहना है कि यदि समय रहते रिंग रोड परियोजना पूरी हो गई होती, तो आज रायबरेली इस भयावह ट्रैफिक संकट से नहीं जूझ रही होती। जनप्रतिनिधियों की संवेदनहीनता ने शहर को जाम और हादसों के हवाले कर दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण पर स्थित यह प्रमुख चौराहा कब तक सिस्टम फेल की पहचान बना रहेगा? क्या प्रशासन एंबुलेंस, मरीजों और आम नागरिकों की सुरक्षा को गंभीरता से लेग, या फिर बंद सिग्नल और अधूरी योजनाएं यूं ही जान जोखिम में डालती रहेंगी ?

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