दुर्गा जी के आगमन और प्रस्थान के वाहन का विचार महालया के दिन अथवा सप्तमी तिथि के दिन अनुसार करना चाहिए । क्यूंकि माँ दुर्गा सर्वपैतृ अमावस्या को ही पृथ्वी पर आ जाती है।
दूसरा क्रम है सप्तमी को मूल नक्षत्र में ही माता सरस्वती का अवाहन होता है l इन दोनों के अनुसार ही माता के आगमन और प्रस्थान का विचार करना चाहिए l

श्लोक में कहा गया है कि
शशि-सूर्य गजारूढ़ा, शनि-भौम तुरंगमे ।
गुरौ – शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।
श्लोक का फल (अर्थ)
गजे च जलदा देवी , छत्रभंङ्ग तुरंगमे ।
नौकायां सर्व सिद्धिस्यात् दोलायां मरणं धुव्रम् ।
अर्थ : रविवार और सोमवार को आगमन (महालया या सप्तमी का दिन) होता है तो वाहन हाथी है जो जल की वृष्टि कराने वाला है। शनिवार और मंगलवार को आगमन होता है तो राजा और सरकार को पद से हटना पड़ सकता है l गुरूवार और शुक्रवार को आगमन हो तो दोला (पालकी या डोली) पर आगमन होता है, जो जन हानि, रक्तपात होना बताता है। बुधवार को आगमन हो तो देवी नौका ( नाव ) पर आती है तब भक्तो को सभी सिद्धि देती है।
देवी का पृथ्वी से प्रस्थान
विजया दशमी जिस दिन को हो उस दिन से गणना करनी चाहिए।
शशि – सूर्य दिने यदि सा विजया, महिषा गमने रूज शोककरा,
शनि-भौमे यदि सा विजया चरणायुध यान करी विकला,
बुध – शुक्रे यदि सा विजया गजवाहनगा शुभ वृष्टिकरा,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा ।
प्रस्तुत श्लोक का अर्थ
विजयादशमी यदि रविवार और सोमवार को हो तो माँ दुर्गा का प्रस्थान महिष ( भैंसा) पर होता है, जो शोक देता है। यदि शनिवार और मँगलवार को विजया दशमी हो तो माता मुर्गा के वाहन पर जाती है तब जनता विकल और तबाही का अनुभव करती है। यदि बुध और शुक्रवार को गमन करे तो हाथी पर जाती है तब माँ शुभ वृष्टि देती है। गुरूवार को यदि विजयादशमी हो तो मनुष्य की सवारी होती है, जो शुभ और सुख शान्ति देती है।
देवी पूजन में मास ( महिने ) का विचार
फाल्गुन, बैशाख, श्रवण, अश्विन, कार्तिक और मार्गशीर्ष मास देवी पूजन के लिए उत्तम बताए गए हैं।
देवी पूजन में तिथि का विचार
शुक्ल पक्ष की तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी तथा चतुर्दशी तिथियों को सब प्रकार से शुभ और लाभदायक कहा गया है।
देवी पूजन में दिन का विचार
रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को शास्त्र में सब प्रकार से शुभ दिन कहा गया है।
देवी पूजन में नक्षत्र का विचार
शास्त्रों में अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु , पुष्य, स्वाति, ज्येष्ठा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद देवी के पूजन के लिए उत्तम नक्षत्र बताए गए हैं।
इस वर्ष की नवरात्रि में आरंभ का दिन सोमवार नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी तथा हस्त है।
कलश स्थापन सूर्योदय से सूर्यास्त तक होगा केवल प्रातः 97:30-09:00 बजे तक राहु काल को त्याग कर l