Supreme Court Accepts Mistake:’ जज भी इंसान हैं’ कभी कभी निर्णय लेने में हो जाती हैं गलतियां?

Supreme Court Accept Mistake: न्यायालय की भूल पर सुप्रीम कोर्ट ने ली जिम्मेदारी, जानें पीछे की पूरी कहानी

Supreme Court Accepts Mistake: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने हाल ही में एक अहम फैसले में अपनी गलती को स्वीकार किया है और स्पष्ट किया कि न्यायाधीश भी मानव हैं और कभी-कभी निर्णयों में त्रुटियां हो सकती हैं। यह कदम न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण माना जा रहा है। मामला चंडीगढ़ (Chandigarh) में एक संपत्ति कब्जा विवाद से जुड़ा है, जिसमें अदालत की तकनीकी भूल के कारण विवाद फिर से भड़क गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब यह स्पष्ट किया है कि न्यायालय की किसी त्रुटि से किसी पक्ष को अनावश्यक नुकसान नहीं होना चाहिए। आइए जानते हैं पूरी खबर क्या है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार की गलती/Supreme Court Accepts Mistake

इस मामले में यमूर्ति विक्रम नाथ (Vikram Nath) और न्यायमूर्ति संदीप मेहता (Sandeep Mehta) की पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि न्यायालयों को अपनी गलतियों को सुधारने से कभी नहीं कतराना चाहिए। अदालत ने यह भी याद दिलाया कि “Actus Curiae Neminem Gravabit” के सिद्धांत के अनुसार न्यायालय की किसी भी कार्रवाई से किसी को नुकसान नहीं होना चाहिए। इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी पक्ष को अदालत की त्रुटि का फायदा उठाने का अवसर न मिले।

विवाद की पृष्ठभूमि

मामला वर्ष 1989 में शुरू हुआ था, जब वादी ने एक संपत्ति के लिए 25,000 रुपये की अग्रिम राशि का भुगतान किया और प्रारंभिक कब्जा ले लिया। इसके बाद मुकदमेबाजी शुरू हो गई और संपत्ति का स्वामित्व पूरी तरह वादी को नहीं मिल सका। कुल 39 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वादी को 2 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। हालांकि, आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि भुगतान के बाद संपत्ति का कब्जा वादी को मिलेगा, जिससे विवाद फिर से बढ़ गया।

तकनीकी भूल और उसके प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में हुई तकनीकी चूक का लाभ उठाने का प्रयास वादी ने किया। उन्होंने 2 करोड़ रुपये का भुगतान करने के बावजूद संपत्ति का कब्जा लेने से इनकार किया। इसके परिणामस्वरूप मामला निचली अदालत और फिर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय तक गया। उच्च न्यायालय ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के परिप्रेक्ष्य में और संवेदनशील बन गया।

न्यायिक जिम्मेदारी का उदाहरण

अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पष्ट किया कि अदालत की भूल के कारण किसी पक्ष को अनावश्यक नुकसान नहीं होना चाहिए। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही का उदाहरण है। अदालत ने यह संदेश दिया कि न्यायाधीश भी इंसान हैं और उनकी त्रुटियों को सुधारने से कोई पीछे नहीं हटता। इस निर्णय से यह सुनिश्चित होगा कि भविष्य में तकनीकी गलतियों से उत्पन्न विवादों को समय रहते सुलझाया जा सके और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास कायम रहे।

Other Latest News

Leave a Comment