Barkakana Railway Encroachment Demolition: ठंड में बेघर हुए दर्जनों परिवार,रामगढ़ के बरकाकाना में रेलवे की जमीन पर चला बुलडोजर

Barkakana Railway Encroachment Demolition: महिलाओं की गुहार अनसुनी, प्रशासन ने नहीं रोका बुलडोजर

Barkakana Railway Encroachment Demolition: झारखंड के रामगढ़ जिले में इन दिनों कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। ऐसे मौसम में पूरा परिवार लेकर घर-दुकान से बेघर हो जाना, ये दृश्य किसी का भी दिल दहला देगा। लोग रोते-बिलखते रह गए, महिलाएं प्रशासन के आगे गिड़गिड़ाती रहीं, मिन्नतें करती रहीं कि साहब, कुछ दिन की मोहलत दे दीजिए। लेकिन प्रशासन नहीं माना। बुलडोजर नहीं रुका और एक के बाद एक करीब 65 मकान और दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया। पांच दर्जन से ज्यादा परिवारों का 50 साल पुराना आशियाना छिन गया। लोग सिर्फ देखते रह गए कि उनका घर-बार मलबे में बदलता जा रहा है।

अमृत भारत स्टेशन योजना के लिए जरूरी थी जमीन/Barkakana Railway Encroachment Demolition

दरअसल, ये सब हुआ रामगढ़ जिले के बरकाकाना रेलवे स्टेशन के पास। इस स्टेशन को केंद्र सरकार की अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत चुना गया है। इस योजना में स्टेशन का विस्तार किया जाना है, सुंदर बनाया जाना है, आधुनिक सुविधाएं दी जानी हैं। इसके लिए रेलवे को काफी जमीन की जरूरत थी। लेकिन उस जगह पर सालों से लोग रह रहे थे। करीब 65 मकान और दुकानें बनी हुई थीं। ये सब रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण माने जा रहे थे।

रेलवे का कहना है कि ये जमीन उनकी है और स्टेशन के विकास के लिए इसे खाली कराना जरूरी था। लोगों को बहुत पहले से चेतावनी दी गई थी। पांच बार नोटिस जारी किए गए थे कि जमीन खाली कर दें। लेकिन लोग नहीं माने। आखिरकार प्रशासन ने कार्रवाई की और बुधवार को देर शाम तक बुलडोजर चलता रहा। पूरी जमीन को अतिक्रमण मुक्त करा लिया गया।

सीओ का बयान, कानून का पालन करना जरूरी

इस कार्रवाई की अगुवाई कर रहे पतरातु के सीओ सह दंडाधिकारी मनोज चौरसिया ने कहा कि रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण था। कई बार नोटिस दिए गए, लेकिन लोग नहीं हटे। अब विकास कार्य के लिए जमीन खाली करानी पड़ी। कानून सबके लिए बराबर है, कोई कितना भी रोए-गिड़गिड़ाए, नियम तो मानना पड़ता है। हमने अपना काम किया।

स्थानीय लोगों की पीड़ा,कहां जाएंगे हम

कार्रवाई से प्रभावित एक स्थानीय व्यक्ति कमलेश यादव ने बताया कि हम यहां 50 साल से ज्यादा समय से रह रहे हैं। दुकानें चलाकर परिवार पाल रहे थे। अचानक सब कुछ छिन गया। ठंड के मौसम में छोटे-छोटे बच्चे, बुजुर्ग कहां जाएंगे? प्रशासन को थोड़ा समय तो देना चाहिए था। पहले हमें कहीं बसाया जाता, फिर ये कार्रवाई होती तो अच्छा होता। अब सब कुछ खत्म हो गया। सामान भी नहीं निकाल पाए। सिर्फ रोते रह गए।

सवाल उठते हैं,मोहलत क्यों नहीं दी गई

इस पूरे मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या प्रशासन को ठंड के मौसम में थोड़ी मोहलत नहीं देनी चाहिए थी? क्या लोगों को पहले वैकल्पिक जगह पर बसाया जा सकता था? एक तरफ देश विकास की राह पर चल रहा है, स्टेशन आधुनिक बन रहे हैं, यात्रियों को अच्छी सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन दूसरी तरफ दर्जनों परिवार बेघर हो गए। उनकी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा?

लोग कह रहे हैं कि हम गरीब हैं, कहीं और जमीन खरीदने की औकात नहीं। सालों से यहीं रहकर गुजारा कर रहे थे। अब सड़क पर आ गए हैं। महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा परेशान हैं। ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारना पड़ रहा है। कुछ लोग रिश्तेदारों के यहां शरण ले रहे हैं, लेकिन सबके लिए जगह कहां?

रेलवे का पक्ष, विकास के लिए जरूरी कदम

रेलवे अधिकारियों का कहना है कि अमृत भारत स्टेशन योजना बहुत बड़ी परियोजना है। बरकाकाना जैसे स्टेशन को विश्वस्तरीय बनाना है। इसके लिए जमीन खाली कराना जरूरी था। नोटिस दिए गए थे, लोग खुद हटा सकते थे। लेकिन नहीं हटे तो मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी। अब स्टेशन का काम जल्द शुरू होगा, जिससे इलाके के लोगों को भी फायदा होगा। ज्यादा ट्रेनें रुकेंगी, सुविधाएं बढ़ेंगी, रोजगार के अवसर आएंगे।

निष्कर्ष

अब ये परिवार क्या करेंगे, ये बड़ा सवाल है। कुछ लोग कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। कुछ राजनीतिक दल मदद का वादा कर रहे हैं। लेकिन फिलहाल ठंड में ये लोग मुसीबत में हैं। प्रशासन से उम्मीद है कि इनके पुनर्वास का कोई इंतजाम करे। विकास जरूरी है, लेकिन इंसानियत भी उतनी ही जरूरी है।

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