Bihar Elections 2025 : कांग्रेस की 61 सीटों का गणित, 38 पर जीत की राह मुश्किल, क्या तेजस्वी का दांव पड़ेगा उल्टा?

Bihar Elections 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सियासी बिसात बिछने लगी है और सीटों के समीकरण तलाशे जा रहे हैं। इस बीच, महागठबंधन में सीट बंटवारे के तहत कांग्रेस के हिस्से में आई 61 सीटें चर्चा का केंद्र बन गई हैं। यह आंकड़ा तेजस्वी यादव के लिए एक बड़ी चुनौती और एनडीए के लिए एक अवसर की तरह देखा जा रहा है। पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि इन 61 में से 38 सीटों पर महागठबंधन की जीत लगभग नामुमकिन रही है, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या कांग्रेस 2020 की तरह इस बार भी गठबंधन के लिए कमजोर कड़ी साबित होगी?

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 19 पर जीत हासिल की थी। इस बार पार्टी 9 सीटें कम पर लड़ रही है, लेकिन चुनौती पहले से कहीं ज्यादा बड़ी है। इन सीटों का ऐतिहासिक रिकॉर्ड महागठबंधन के लिए बेहद निराशाजनक तस्वीर पेश करता है।

38 सीटों का मुश्किल चक्रव्यूह

कांग्रेस को मिली 61 सीटों का अगर पिछले सात विधानसभा चुनावों के आधार पर विश्लेषण करें तो स्थिति चिंताजनक दिखती है। इनमें से 23 सीटें ऐसी हैं, जहां महागठबंधन आज तक कभी जीत ही नहीं पाया। ये सीटें पारंपरिक रूप से एनडीए का मजबूत गढ़ मानी जाती हैं।

इसके अलावा, 15 सीटें ऐसी हैं जहां महागठबंधन पिछले सात चुनावों में सिर्फ एक बार जीत दर्ज कर सका है। इन सीटों पर जीत की संभावना 15% से भी कम आंकी जा रही है। इस तरह, कुल 38 (23+15) सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस को जीत हासिल करने के लिए पहाड़ तोड़ने जैसी मेहनत करनी होगी।

तेजस्वी के दांव और महागठबंधन पर असर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाए रखने के दबाव में तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को 61 सीटें देने का बड़ा दांव खेला है। लेकिन अगर कांग्रेस अपने कोटे से दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाती है, तो इसका सीधा असर महागठबंधन के सत्ता में आने के सपनों पर पड़ेगा। कांग्रेस की कमजोरी की भरपाई के लिए आरजेडी पर अपनी सीटों पर असाधारण प्रदर्शन करने का भारी दबाव होगा।

यदि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट खराब रहता है, तो यह एनडीए को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में सीधे तौर पर मदद कर सकता है। यह स्थिति न केवल 2025 के नतीजों को प्रभावित करेगी, बल्कि भविष्य में आरजेडी और कांग्रेस के रिश्तों में भी तल्खी ला सकती है।

‘फ्रेंडली फाइट’ से किसे होगा फायदा?

मामले को और जटिल बनाती हैं वे 9 सीटें, जिन पर कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई और वीआईपी जैसे सहयोगी दलों के साथ ‘फ्रेंडली फाइट’ कर रही है। इन सीटों पर महागठबंधन के वोटों का बंटवारा तय है, जिसका सीधा लाभ एनडीए को मिलने की पूरी आशंका है। भले ही इन सीटों पर महागठबंधन का कोई एक उम्मीदवार मजबूत हो, लेकिन वोटों के विभाजन से एनडीए के उम्मीदवार की जीत की राह आसान हो सकती है।

कुल मिलाकर, कांग्रेस का प्रदर्शन इस चुनाव में ‘करो या मरो’ जैसा है। पार्टी को न केवल अपने अस्तित्व के लिए लड़ना है, बल्कि उसकी सफलता या असफलता पर ही बिहार में महागठबंधन का पूरा भविष्य टिका हुआ है।

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