Jharkhand Farmers Selling Paddy Below MSP : रामगढ़ के गांवों में बंपर धान फसल के बावजूद मायूसी, बिचौलियों को 14-16 रुपया किलो बेचने को मजबूर

Jharkhand Farmers Selling Paddy Below MSP : कर्ज की खेती, आत्महत्या से कम नहीं किसानों का दर्द

Jharkhand Farmers Selling Paddy Below MSP : झारखंड के रामगढ़ जिले में इस बार बारिश अच्छी हुई। धान की फसल लहलहाई। किसानों के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान लौट आई थी। सबको लगा कि इस बार मेहनत रंग लाएगी, कर्ज कुछ कम होगा, घर में थोड़ा पैसा आएगा। लेकिन सरकारी धान खरीदी केंद्र (पैक्स) अभी तक नहीं खुले। मजबूरी में किसान अपनी फसल बिचौलियों को 14 से 16 रुपया किलो के हिसाब से बेच रहे हैं, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 24 रुपया से ऊपर है।

पिताजी ने कर्ज लिया था, अब आत्महत्या की बात सोच रहे हैं

रामगढ़ के एक गांव में किसान विकास कुमार ने कैमरे पर आंखें भरकर कहा, मेरे पिताजी ने बैंक और साहूकार से कर्ज लेकर धान लगाया था। अभी तक लागत भी नहीं निकली। अगर पैक्स खुल जाता तो कम से कम 24-25 रुपया किलो तो मिल ही जाता। अब तो लग रहा है आत्महत्या ही एक रास्ता बचा है। महिला किसान सोहरी देवी ने हाथ जोड़कर कहा, बीज, खाद, मजदूरी, सब मिलाकर 18-20 रुपया किलो लागत आई। हम 14 रुपया किलो बेच दिए। अब बच्चों का स्कूल का पैसा, दवा-दारू का खर्चा कहां से लाएं?

15 दिन से खेत में धान पड़ा था, मजबूरी में प्राइवेट को बेच दिया

देवाचंद कुमार ने बताया मौसम बदलने का डर था। धान सड़ जाता तो कुछ नहीं बचता। 15 दिन इंतजार किया, पैक्स नहीं खुला। मजबूरन ट्रैक्टर वाले बिचौलियों को 15 रुपया किलो दे दिया। वे लोग राइस मिल में 22-23 रुपया किलो बेच रहे हैं। सारा फायदा उनका, नुकसान हमारा। राजू कुमार नाम के एक और युवा किसान ने गुस्से में कहा, हम लोग बर्बाद हो गए भाई। सरकार कहती है किसान सम्मान, लेकिन जब फसल तैयार है तब केंद्र बंद। जल्दी पैक्स खुलवाओ नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।

अधिकारी बोले, कुछ ही दिनों में केंद्र खुल जाएंगे

जिले की डीएसओ रंजिता टोप्पो ने किसानों से अपील की है, धैर्य रखें। कुछ ही दिनों में सभी 22 पैक्स केंद्र खुल जाएंगे। इस बार दोनों किस्त एक साथ दे दी जाएंगी। बिचौलियों को मत बेचें। लेकिन किसानों का कहना है – मैडम, पेट तो आज भूखा है, कल का इंतजार कौन देखे। पिछले साल रामगढ़ जिले में 2 लाख क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य था, लेकिन सिर्फ 1.46 लाख क्विंटल ही खरीद पाए। इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है। केंद्र खुलने में देरी, रजिस्ट्रेशन में परेशानी, टोकन नहीं मिलना – ये सब पुरानी बीमारी है।

सवाल वही पुराना, देरी क्यों

जब सरकार को पता है कि नवंबर-दिसंबर में धान कटाई होती है, तो पैक्स केंद्र अक्टूबर में ही क्यों नहीं खोल दिए जाते?
जब बंपर फसल हुई है, तो बिचौलिये और राइस मिल मालिक क्यों मालामाल हो रहे हैं और किसान क्यों कर्ज में डूब रहे हैं?

किसानों का सिर्फ एक सवाल है –

उनका कहना है कि हमारी फसल हमारा हक है और उसे लूटने का हक किसी को भी नहीं है, सरकार अभी जागे नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।

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