Plight Of The Canal In Raebareli : रायबरेली जिले के सदर तहसील क्षेत्र में स्थित लालूपुर गांव से इमामगंज तक फैली लगभग 10 किलोमीटर लंबी नहर वर्षों से उपेक्षा का शिकार बनी हुई है। सफाई के अभाव में नहर में बड़े-बड़े झाड़ियां उग आई हैं और कई जगहों पर तो पूरी नहर ही मिट्टी और कचरे से पट गई है। धान की फसल के बाद अब गेहूं की बुवाई का मौसम आ गया है, लेकिन पानी की कमी के कारण किसान परेशान हैं। शीतकाल में भी नहर की सफाई न होने से जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
यह नहर रायबरेली जिले की सिंचाई व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है,जो मुख्य रूप से शारदा सहायक नहर प्रणाली से जुड़ी हुई है। शारदा नहर प्रणाली उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी और बड़ी सिंचाई प्रणालियों में से एक है, जो जिले के कई हिस्सों में पानी पहुंचाती है। हालांकि, पिछले कई वर्षों से इसकी रखरखाव में लापरवाही बरती जा रही है। स्थानीय किसानों का कहना है कि नहर की यह हालत न केवल फसलों को प्रभावित कर रही है, बल्कि पूरे इलाके की कृषि अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रही है।

नहर की वर्तमान स्थिति: एक वीरान दृश्य
लालूपुर से इमामगंज तक की यह नहर अब एक वीरान जंगल जैसी दिखाई देती है। फोटो में दिखाई दे रही मिट्टी की पगडंडी के किनारे घनी झाड़ियां और ऊंचे पेड़-पौधे नहर के अस्तित्व को ही निगलते नजर आते हैं। पृष्ठभूमि में धुंधली सुबह की रोशनी में फैले पीले-हरे खेत, जो संभवतः धान के अवशेष हैं, पानी की कमी को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। दूर एक व्यक्ति मोटरसाइकिल पर सवार दिखाई दे रहा है, जबकि दाहिनी ओर एक छोटी इमारत पर हरा-पीला पोस्टर लगा है, जो गांव की दैनिक जीवन की झलक देता है। लेकिन इस सुंदर ग्रामीण दृश्य के पीछे छिपी है नहर की दयनीय स्थिति – जहां पानी के बजाय घास-फूस और कचरा जमा है।
कई जगहों पर नहर इतनी संकरी हो गई है कि पानी का बहाव असंभव हो चुका है। कुछ हिस्सों में स्थानीय लोगों ने अनजाने में या जानबूझकर मिट्टी डालकर इसे भर दिया है, जिससे सिंचाई पूरी तरह ठप हो गई है। जिले के अन्य हिस्सों में भी ऐसी समस्याएं देखी गई हैं, जैसे कि लालगंज तहसील में जहां 2018 में एक स्थानीय निवासी ने शिकायत की थी कि नहर में 5 वर्षों से पानी नहीं आया, फिर भी सफाई पर पैसा बर्बाद किया जा रहा है।
किसानों पर प्रभाव: पानी की किल्लत और फसल का संकट
रायबरेली जिला मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, जहां धान और गेहूं प्रमुख फसलें हैं। धान की कटाई के बाद अक्टूबर-नवंबर में गेहूं की बुवाई शुरू होती है, लेकिन इस मौसम में पानी की उपलब्धता महत्वपूर्ण होती है। नहर की सफाई न होने से किसानों को ट्यूबवेल या अन्य स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है, जो महंगा और अविश्वसनीय है। विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सूखी नहरों के कारण लाखों हेक्टेयर भूमि प्रभावित हो रही है, जैसा कि 2024 में सरयू नहर परियोजना में देखा गया जहां धान की रोपाई रुक गई थी।
स्थानीय किसान राम प्रसाद (काल्पनिक नाम) कहते हैं, “हमारी नहर कई सालों से बंद पड़ी है। झाड़ियां इतनी घनी हैं कि पानी आए भी तो बह नहीं सकता। गेहूं की बुवाई के लिए पानी चाहिए, लेकिन अधिकारी सिर्फ कागजों पर सफाई दिखाते हैं। अगर समय पर पानी न मिला तो फसल बर्बाद हो जाएगी और हम कर्ज के बोझ तले दब जाएंगे।इसी तरह, गांव की महिला सरोज देवी बताती हैं, “शीतकाल में ठंड बढ़ने से पहले सफाई होनी चाहिए थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। यह लापरवाही हमें गरीबी की ओर धकेल रही है।”
अधिकारियों की लापरवाही: सवालिया निशान
यह समस्या नई नहीं है। 2022 में जगतपुर, रायबरेली में शारदा नहर के किनारे सफाई अभियान चलाया गया था, जिसमें एनसीसी कैडेट्स ने हिस्सा लिया।लेकिन ऐसे अभियान छिटपुट ही रहते हैं और पूरे जिले में व्यवस्थित रखरखाव की कमी है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों से संपर्क करने पर उन्होंने सफाई कार्य जल्द शुरू करने का आश्वासन दिया, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसे वादे सालों से सुनते आ रहे हैं।
रायबरेली जिले में कुल सिंचाई का बड़ा हिस्सा नहरों पर निर्भर है, जहां रायबरेली और जौनपुर ब्रांच नहरें हैं। लेकिन ग्राउंडवाटर की स्थिति भी चिंताजनक है, और नहरों की उपेक्षा से भूजल स्तर और गिर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते सफाई और मरम्मत नहीं की गई तो यह समस्या पूरे अवध क्षेत्र में फैल सकती है।
मांग और सुझाव: तत्काल कार्रवाई की जरूरत
किसान संघों ने मांग की है कि नहर की सफाई के लिए विशेष अभियान चलाया जाए और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल में कचरा स्किमर जैसी तकनीकों से नहर सफाई की शुरुआत की है, जैसा कि 2023 में लखनऊ में पायलट प्रोजेक्ट में देखा गया ।
यह खबर न केवल रायबरेली की है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में सिंचाई व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है। यदि जिम्मेदार विभाग अब भी नहीं जागे तो किसानों का संकट और गहरा सकता है।










