Red Carpet For Rohingyas: कस्टडी में गायब 5 अवैध शरणार्थियों का मामला: SC ने जताई गहरी नाराजगी

Red Carpet For Rohingyas: रोहिंग्या शरणार्थियों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: ‘क्या उनके लिए रेड कार्पेट बिछाएँ?’

Red Carpet For Rohingyas : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर हुई सुनवाई ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। मंगलवार को चीफ जस्टिस सूर्य कांत (CJI Surya Kant) की बेंच ने पांच रोहिंग्या शरणार्थियों के कथित कस्टोडियल डिसअपीयरेंस पर दायर याचिका पर बेहद कड़ा रुख अपनाते हुए साफ कहा कि “जो लोग अवैध रूप से भारत आते हैं, उनके लिए हम रेड कार्पेट नहीं बिछा सकते।” अदालत ने केंद्र सरकार की ओर नोटिस जारी करने से भी इनकार कर दिया और सीमा सुरक्षा, अवैध घुसपैठ और राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए मामले को गंभीर बताया। इस टिप्पणी ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है, क्या है पूरी खबर जानिए इसलेख में…

रोहिंग्या शरणार्थियों का विवाद/Red Carpet for Rohingyas

रोहिंग्या विवाद पिछले कई वर्षों से भारत की सुरक्षा और नीतियों के केंद्र में रहा है। राखाइन (Rakhine) प्रांत से पलायन कर आए हजारों रोहिंग्या शरणार्थी भारत के विभिन्न राज्यों—जैसे जम्मू (Jammu), दिल्ली (Delhi), हैदराबाद (Hyderabad)—में बसे हुए हैं। अनुमान है कि वर्तमान में करीब 40,000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं, जिनमें से अधिकतर के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं। केंद्र सरकार लगातार यह रुख रखती आई है कि रोहिंग्या भारत के नागरिक नहीं हैं और उनमें आईएसआई तथा अन्य आतंकी संगठनों के संपर्क की संभावनाएँ खतरनाक हैं। 2017 में भी सुप्रीम कोर्ट ने उनके निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार किया था। ऐसे में रोहिंग्या पर किसी भी याचिका को सुरक्षा एजेंसियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ती हैं। मंगलवार की सुनवाई इसी पृष्ठभूमि में हुई, जिसने मुद्दे को फिर सुर्खियों में ला दिया।

सीजेआई की कड़ी टिप्पणी और कोर्ट का रुख

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पाँच रोहिंग्या शरणार्थियों को पुलिस हिरासत से “गायब” कर दिया गया है और कोर्ट उनके ठिकाने का पता लगाने का आदेश दे। लेकिन चीफ जस्टिस सूर्य कांत (CJI Surya Kant) ने इस पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा—“ये लोग घुसपैठिए हैं, हम उनके लिए रेड कार्पेट कैसे बिछा दें? सीमा की स्थिति बेहद संवेदनशील है और अवैध तरीके से सुरंगों से देश में आने वालों के लिए कानून को इतना नहीं मोड़ा जा सकता।” कोर्ट ने हेबियस कॉर्पस की मांग को “कल्पनात्मक” बताते हुए कहा कि यह मामला सामान्य नागरिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता। बेंच ने यह कहते हुए केंद्र को नोटिस जारी करने से साफ इनकार किया कि ऐसी याचिकाओं पर सहानुभूति दिखाना व्यावहारिक नहीं है। यह न्यायालय का अब तक का सबसे स्पष्ट और सख्त रुख माना जा रहा है।

सुरक्षा, सीमा और शासन की चिंताएँ

सुनवाई में बेंच ने साफ कहा कि उत्तर-पूर्व (North-East) की सीमाएँ अत्यंत संवेदनशील हैं जहां से लगातार अवैध घुसपैठ की घटनाएँ सामने आती हैं। न्यायालय ने माना कि ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा का पहलू सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है और अदालतें इस पर ढिलाई नहीं बरत सकतीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना भारत में प्रवेश करता है, तो उसे नागरिक अधिकारों के समान संरक्षण की मांग करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मानवाधिकार संबंधी तर्कों पर भी बेंच ने दृढ़ता से कहा कि “कानून को खींचकर किसी अवैध प्रवासी को नागरिक जैसा दर्जा देना न्यायसंगत नहीं होगा।” इस टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया कि अदालत इस मामले को भावनात्मक मुद्दे के बजाय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के नजरिए से देख रही है।

अगली सुनवाई और सरकार का संभावित रुख

अदालत ने इस मामले को 16 दिसंबर तक के लिए टाल दिया है, जब रोहिंग्या से जुड़े अन्य मामले भी सूचीबद्ध हैं। संकेत हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मसले को व्यापक संदर्भ में सुनना चाहता है ताकि अवैध प्रवास, सीमा सुरक्षा और मानवाधिकार के बीच संतुलन पर एक स्पष्ट कानूनन दिशा तय हो सके। केंद्र सरकार का रुख पहले ही स्पष्ट है- रोहिंग्या न तो भारत के नागरिक हैं, न ही शरणार्थी के रूप में मान्यता प्राप्त। ऐसे में सरकार कोर्ट में सुरक्षा खतरों और खुफिया रिपोर्टों का हवाला दे सकती है। आगामी सुनवाई यह तय करने में महत्वपूर्ण होगी कि रोहिंग्या से जुड़े मामलों में भारत की कानूनी नीति किस दिशा में आगे बढ़ेगी। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का संदेश साफ है—राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और अवैध घुसपैठ पर शून्य सहानुभूति की नीति ही आगे बढ़ेगी।

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