मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में इन दिनों एक मेला चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां पहले इन मेलों को जनता की सुविधा और रोज़गार का माध्यम माना जाता था, वहीं अब यह राजनीति और टेंडर विवाद की भेंट चढ़ते दिख रहे हैं। स्थानीय लोग आरोप लगा रहे हैं कि कुछ व्यापारी और नेताओं के बीच की खींचतान ने माहौल खराब कर दिया है। आरोप यह भी है कि इन घटनाओं को धार्मिक रंग देने की कोशिश हो रही है, जबकि असल मामला ठेकेदारी और फायदे से जुड़ा बताया जा रहा है। रिपोर्टर नासिफ खान के मुताबिक, इस विवाद में ‘फिरोज’ नामक व्यक्ति का टेंडर रद्द होने के बाद नई हलचल मच गई है। पर्दे के पीछे कई ऐसे नाम और चेहरे हैं जिनके कारण यह विवाद और गहराता जा रहा है।
कहां से हुई विवाद की शुरुआत ?

इंदौर के इस मेला-स्थल पर वर्षों से व्यापारी अपना सामान बेचकर रोज़गार कमाते आए हैं। पहले इन मेलों की निगरानी कर सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखा जाता था। लेकिन हाल के दिनों में हालात बदल गए। इस बार मेले में दो नेताओं के अलग-अलग समर्थकों के बीच ठेकेदारी को लेकर तनाव पैदा हो गया। सूत्रों के अनुसार, फिरोज नामक व्यापारी का टेंडर रद्द कर दिया गया, जिससे विवाद ने तूल पकड़ा। लोगों का कहना है कि नेताओं की खींचतान में छोटे व्यापारियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। वहीं, मेले के भीतर बढ़ते तनाव को देखकर प्रशासन भी सतर्क हो गया है।
नेता, गुर्गे और टेंडर की राजनीति
सूत्रों का दावा है कि दो अलग-अलग नेताओं के समर्थक मेले में टेंडर भरवाने को लेकर आपस में भिड़ गए। इस खींचतान में फिरोज का टेंडर उखाड़ फेंका गया। यही नहीं, पर्दे के पीछे एक और ‘मियां भाई’ का नाम सामने आ रहा है, जो कथित तौर पर नोटों की गड्डियां गिन रहा था और एडवांस राशि भी ली गई थी। यह भी कहा जा रहा है कि अगर फिरोज़ ने पहले ही ‘लीडर’ से मुलाकात कर ली होती तो मामला सुलझ सकता था। अब सवाल यह उठता है कि असली ताकत किसके हाथ में है और क्यों छोटे व्यापारी इसकी कीमत चुका रहे हैं।
धार्मिक रंग या सिर्फ लाभ का खेल?
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह विवाद धार्मिक नहीं बल्कि लाभ और ठेकेदारी से जुड़ा है। फिर भी कुछ लोग इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनाकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, एक नेता मेले में आया और बोला कि अपना-अपना सामान हटा लो। इस पर मियां भाई घबराकर सामान समेटने लगा और यहीं से राजनीति शुरू हो गई। इस विवाद में दादा दयालू का नाम भी घसीटा गया, जबकि लोगों का कहना है कि उन्होंने तो कोई गलत काम नहीं किया। बावजूद इसके, उनके नाम को बदनाम करने की कोशिश हो रही है।
सवाल, शक और प्रशासन की भूमिका
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह दूसरा ‘मियां भाई’ कौन है, जो बिना टेंडर भरे अपने पावर के घमंड में कॉलर ऊंची किए घूम रहा है और खुशियों के अरमानों पर पानी फेर रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर प्रशासन कब तक चुप रहेगा। इस विवाद में एक पक्ष को फायदा और दूसरे को नुकसान हो चुका है, लेकिन सच्चाई अब भी पर्दे के पीछे है। कुछ लोग मानते हैं कि नेताओं की यह फड़फड़ाहट मुसलमानों से नफरत नहीं बल्कि किसी बड़े राज की ओर इशारा करती है।