Who Names ISRO Rockets: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो (ISRO) का हर रॉकेट सिर्फ तकनीक का चमत्कार नहीं होता, बल्कि उसकी पहचान बनने वाला नाम भी उतना ही खास होता है। पीएसएलवी (PSLV), जीएसएलवी (GSLV) या एलवीएम3 (LVM3) जैसे नाम आज पूरी दुनिया में भारत की अंतरिक्ष ताकत का प्रतीक बन चुके हैं। हाल ही में आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के श्रीहरिकोटा (Sriharikota) स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre) से LVM3-M6 की सफल लॉन्चिंग के बाद एक बार फिर लोगों के मन में सवाल उठा—आखिर इसरो अपने रॉकेट्स के नाम कैसे तय करता है? क्या यह फैसला किसी एक वैज्ञानिक का होता है या इसके पीछे पूरी संस्थागत प्रक्रिया होती है? नामकरण में किन बातों का ध्यान रखा जाता है और अंतिम मंजूरी कौन देता है चलिए जानते हैं…
रॉकेट के नामकरण की परंपरा और विज्ञान का मेल/Who Names ISRO Rockets
इसरो (ISRO) में रॉकेट का नाम रखना कोई सामान्य या औपचारिक प्रक्रिया नहीं है। यह परंपरा, वैज्ञानिक सोच और मिशन की प्रकृति से जुड़ा फैसला होता है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत से ही नामों को इस तरह चुना गया है कि वे तकनीकी रूप से सटीक हों और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी आसानी से समझे जा सकें। शुरुआती दौर में जब इसरो ने उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित किए, तब उनके नाम सीधे तौर पर उनके उपयोग और कक्षा से जुड़े रखे गए। समय के साथ जैसे-जैसे मिशन जटिल और महत्वाकांक्षी होते गए, नामकरण की प्रक्रिया भी ज्यादा संरचित और रणनीतिक बनती गई। आज इसरो का हर रॉकेट नाम भारत की वैज्ञानिक सोच, दीर्घकालिक योजना और वैश्विक पहचान का प्रतिनिधित्व करता है, न कि सिर्फ एक तकनीकी कोड।

कौन रखता है इसरो के रॉकेट के नाम
इसरो (ISRO) में किसी भी रॉकेट का नाम किसी एक व्यक्ति द्वारा तय नहीं किया जाता। यह निर्णय सामूहिक रूप से लिया जाता है। इसमें मिशन से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, प्रोग्राम डायरेक्टर और इसरो मुख्यालय (ISRO Headquarters) की तकनीकी समितियां शामिल होती हैं। सबसे पहले रॉकेट की भूमिका, क्षमता और उपयोग का आकलन किया जाता है। इसके बाद संभावित नामों पर चर्चा होती है, ताकि नाम तकनीकी रूप से सही, संक्षिप्त और वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य हो। उदाहरण के तौर पर पीएसएलवी (PSLV) को ध्रुवीय कक्षा के लिए विकसित किया गया, इसलिए उसका नाम पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल रखा गया। इसी तरह एलवीएम (LVM) नाम रॉकेट की पीढ़ी और भार वहन क्षमता को दर्शाता है।
उद्देश्य, क्षमता और भारतीय पहचान
इसरो रॉकेट के नाम तय करते समय कई पहलुओं पर ध्यान देता है। सबसे अहम होता है रॉकेट का तकनीकी वर्ग—वह किस कक्षा में उपग्रह भेजेगा, कितना भार उठा सकता है और किस तरह के मिशन के लिए बनाया गया है। जीएसएलवी (GSLV) को भूस्थिर कक्षा के लिए डिजाइन किया गया, इसलिए उसका नाम जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल रखा गया। इसके अलावा कई मिशनों और प्रणालियों के नाम भारतीय संस्कृति और दर्शन से प्रेरित होते हैं। ‘गगनयान’ (Gaganyaan) जैसे नाम भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान की सोच को दर्शाते हैं। नाम ऐसा चुना जाता है जो भारत की वैज्ञानिक विरासत, आत्मनिर्भरता और अंतरराष्ट्रीय छवि-तीनों को मजबूत करे।
अंतिम मंजूरी और वर्तमान संदर्भ
किसी भी रॉकेट नाम पर अंतिम मुहर इसरो मुख्यालय (ISRO Headquarters) और अंतरिक्ष विभाग (Department of Space) की सहमति से लगती है। इसके बाद वही नाम आधिकारिक दस्तावेजों, मिशन घोषणाओं और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ इस्तेमाल किया जाता है। हाल ही में LVM3-M6 के जरिए अमेरिका (United States) के ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (BlueBird Block-2) सैटेलाइट की सफल लॉन्चिंग ने एक बार फिर इस नामकरण प्रणाली को चर्चा में ला दिया। करीब 6,100 किलोग्राम वजन वाला यह अब तक भारत से लॉन्च किया गया सबसे भारी उपग्रह है। ऐसे में साफ है कि इसरो के लिए रॉकेट का नाम केवल पहचान नहीं, बल्कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा की दिशा और सोच का प्रतीक भी होता है।










