Chirag Big Win, Big Test: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) से पहले एनडीए में सीट शेयरिंग का ऐलान हो चुका है और इस बार सबसे ज़्यादा चर्चा में हैं चिराग पासवान (Chirag Paswan)। एलजेपी (रामविलास) को गठबंधन में 29 सीटें मिल गई हैं, जिससे चिराग की राजनीतिक जीत तो साफ दिख रही है, लेकिन असली सवाल अब यह है कि क्या उन्हें मनमाफिक क्षेत्र भी मिलेंगे? बीजेपी और जेडीयू (BJP and JDU) ने सीटों की बराबरी पर सहमति जताकर बड़ा संतुलन साधा है, लेकिन अब नज़रें उन सीटों पर हैं, जहां 2020 में दोनों पार्टियों का मजबूत कब्ज़ा रहा था। आखिर एनडीए के भीतर यह समीकरण कैसे बदलेगा — यही इस सियासी कहानी का असली ट्विस्ट है।
चिराग को मिली एनडीए में बड़ी जीत- लेकिन अधूरी इच्छाएँ बाकी/Chirag Big Win, Big Test
एनडीए (NDA) में रविवार को सीट बंटवारे का ऐलान हुआ, जिसमें बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। चिराग पासवान की एलजेपी (आर) को 29 सीटें दी गई हैं, जो उनकी पहले की मांग (30-35 सीटें) के लगभग बराबर है। राजनीतिक तौर पर यह चिराग के लिए बड़ी सफलता मानी जा रही है। हालांकि अब असली चुनौती उन 29 सीटों की है, जिन पर वह चुनाव लड़ना चाहते हैं। इनमें से कई सीटें 2020 में बीजेपी, जेडीयू और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के कब्जे में थीं। सवाल है—क्या नीतीश कुमार और बीजेपी अपनी जीती हुई सीटें छोड़कर चिराग को खुश करेंगे, या फिर अंदरखाने सियासी खींचतान और तेज़ होगी?

2020 से अब तक: कैसे बदली चिराग की सियासी ताक़त
2020 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) में चिराग पासवान (Chirag Paswan) एनडीए से बाहर होकर 135 सीटों पर लड़े थे, लेकिन सिर्फ़ एक सीट जीत पाए। बावजूद इसके, उनके फैसले ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जेडीयू को गहरी चोट पहुंचाई और बीजेपी पहली बार बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनी। यही वह मोड़ था, जहां से चिराग की सियासी भूमिका ‘विरोधी’ से ‘ज़रूरी’ बन गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी (आर) ने पाँचों सीटों पर जीत दर्ज कर चौंका दिया, जिससे साबित हुआ कि दलितों, खासकर दुसाध समुदाय पर उनका असर कायम है। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए चिराग को अपने साथ रखकर उस प्रभाव को भुनाने की तैयारी में है।
बीजेपी-जेडीयू की कुर्बानी और चिराग की महत्वाकांक्षा
बीजेपी और जेडीयू दोनों जानते हैं कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) की पार्टी एनडीए के लिए दलित वोट बैंक का मजबूत स्तंभ है। इसलिए दोनों दलों ने अपनी कुछ सीटें छोड़कर उन्हें 29 सीटें देने का जोखिम उठाया है। हालांकि, यह सौगात उतनी सरल नहीं है—क्योंकि चिराग जिन सीटों पर नज़रें गड़ाए हैं, वे कई बार दोनों दलों के परंपरागत गढ़ों से टकराती हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चिराग की असली परीक्षा अब शुरू होती है—क्या वह इन सीटों को लेकर बीजेपी-जेडीयू से समझौता कर पाएंगे या अपनी शर्तों पर टिके रहेंगे। फिलहाल इतना तय है कि बिहार की सियासत में चिराग पासवान अब ‘छोटे सहयोगी’ नहीं, बल्कि ‘किंगमेकर’ बन चुके हैं।