यह शक्ति, यौवन और यौवन के देवता, करम-देवता की पूजा को समर्पित है। यह अच्छी फसल और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। भादो के चंद्र पक्ष की एकादशी तिथि (ग्यारहवां दिन)। यह त्यौहार हिंदू माह भादो की पूर्णिमा के 11वें दिन मनाया जाता है, जो अगस्त और सितंबर के बीच आता है। करमा पर्व किसानों और आदिवासी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है। इस खास त्योहार पर घर और आंगन को सजाया जाता है और भाई-बहन के बीच प्रेम और सम्मान की भावना को बढ़ावा दिया जाता है। करमा पूजा का पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम और प्रकृति पूजन का प्रतीक है। यह त्योहार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और ओडिशा में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं और करम देवता की पूजा करती हैं। आदिवासी परंपरा अनुसार, इस खास मौके पर करमा धरमा कथा का खास महत्व होता है। इस दिन प्रकृति और पेड़ों की भी पूजा की जाती है और भूमि की समृद्धि के लिए कामना की जाती है।
क्यों की जाती करम डाल की पूजा?
करमा पूजा के दिन करम डाली की पूजा की जाती है। इस खास मौके पर घर और आंगन को सजाया जाता है। आदिवासी परंपरा के अनुसार, करम की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ धार्मिक स्थल अखरा में लगाया जाता है। वहीं इसकी पूजा रात में की जाती है। कहा जाता है करम आदिवासी समुदाय के लिए आराध्य वृक्ष हैं। इसलिए करम के अवसर पर करम डाल की पूजा की जाती है। इसके अलावा करम पर्व में जावा का भी काफी महत्व होता है। दरअसल, आदिवासी समुदाय अपने आराध्यों को प्रकृति में ही देखता है और मूलत प्रकृति पूजक है। उसके देवी-देवता प्रकृति में ही निहित हैं। करम डाल की पूजा भी इसलिए की जाती है कि करम डाल ईश्वर (प्रकृति) का प्रतीक रूप है। पूजा के दौरान करम वृक्ष का आह्वान किया जाता है।
करमा पर्व का महत्व
आदिवासी समाज में करमा पर्व को बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है कि अविवाहित कन्याएँ इस दिन उपवास रखकर फसलों की रक्षा करती हैं और पूरे वर्ष भर अच्छी उपज की कामना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि सच्ची निष्ठा से व्रत करने वाली कन्याओं को योग्य पति की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, यह पर्व परिवार की भलाई, समृद्धि और संतान सुख की मंगलकामनाओं से भी जुड़ा हुआ है।
करम पूजा का महत्व: प्रकृति, प्रेम और समृद्धि का संगम
करम पूजा का महत्व कई स्तरों पर देखा जा सकता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि किस प्रकार प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके ही हम वास्तविक सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी जीविका और कल्याण सीधे तौर पर धरती माता और उसकी उपज से जुड़े हैं।
भाई-बहन का अटूट बंधन: करम पूजा का सबसे हृदयस्पर्शी पहलू भाई-बहन के रिश्ते का उत्सव है। बहनें अपने भाइयों के लिए निष्ठापूर्वक व्रत रखती हैं, उनकी सलामती और उन्नति के लिए प्रार्थना करती हैं। यह उनके बीच के निस्वार्थ प्रेम, त्याग और एक-दूसरे के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह सिर्फ एक दिन का उपवास नहीं, बल्कि जीवन भर के साथ का एक सुंदर संकल्प है।
कृषि और समृद्धि का पर्व
आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, और करम पूजा उनकी कृषि प्रधान संस्कृति का अभिन्न अंग है। करम देवता को फसलों और समृद्धि का देवता माना जाता है। इस पर्व के माध्यम से, किसान अच्छी फसल के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं और आने वाले समय में खुशहाली की कामना करते हैं। यह एक तरह से प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी तरीका है।
यह पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि भौतिक सफलता चाहे कितनी भी क्यों न हो, यदि वह धर्म और नैतिकता के आधार पर नहीं है, तो वह क्षणभंगुर होती है। प्रकृति और उसके तत्वों का सम्मान करना हमारे अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि अहंकार और क्रोध हमें पतन की ओर ले जाते हैं, जबकि विनम्रता, पश्चाताप और सही रास्ते पर चलना हमें जीवन में वास्तविक सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
करम पूजा का व्यापक प्रभाव : सनातन धर्म और आदिवासी परंपराओं का मिलन
करम पर्व केवल आदिवासी समुदाय का त्योहार नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म की व्यापकता और विविधता का भी एक सुंदर उदाहरण है। यह दर्शाता है कि सनातन धर्म कैसे विभिन्न सांस्कृतिक पहचानों को आत्मसात करता है और प्रकृति-पूजन तथा नैतिक मूल्यों को महत्व देता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि हम सभी प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं, और उसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। यह भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता को उजागर करता है और परिवारिक मूल्यों को सुदृढ़ करता है। करम पूजा एक ऐसा अवसर है जब समुदाय एक साथ आता है, अपनी जड़ों को याद करता है, और भविष्य के लिए आशा और समृद्धि की कामना करता है।