Power Shift in Bihar Politics: बिहार (Bihar) में एनडीए सरकार के गठन के बाद मंत्रालयों का बंटवारा सामने आ चुका है, और इसके साथ ही सत्ता संतुलन को लेकर नई बहस तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने पहली बार गृह मंत्रालय बीजेपी (BJP) के नेता और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) को सौंपकर राजनीतिक संकेत जरूर दिया है, लेकिन इसके तुरंत बाद सवाल उठने लगे कि क्या यह पावर का असली ट्रांसफर है या फिर सिर्फ दिखावटी कदम? बीजेपी मंत्रियों की संख्या बढ़ी है, सम्राट चौधरी को अहम जिम्मेदारी मिली है, लेकिन इसके बावजूद प्रशासनिक नियंत्रण का बड़ा हिस्सा अब भी मुख्यमंत्री के हाथों में है। ऐसे में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या नीतीश ने मंत्रालय दे दिया, पर असली रिमोट वहीं रख लिया?
बिहार में पावर का नया गणित/Power Shift in Bihar Politics
बिहार (Bihar) की राजनीति में इस बार एनडीए सरकार का गठन कई मायनों में ऐतिहासिक माना जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की अगुवाई वाली नई सरकार में पहली बार बीजेपी (BJP) स्पष्ट रूप से सीनियर पार्टनर के रूप में उभरी है। 89 विधायकों के साथ विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद बीजेपी को मंत्रिमंडल में भी बड़ा हिस्सा मिला और विभागों का वितरण इसी शक्ति-संतुलन का संकेत देता है। दो दशक में पहली बार वह गृह विभाग, जिसे नीतीश अपनी पहचान का मुख्य स्तंभ मानते रहे बीजेपी को सौंप दिया गया। यह वही विभाग है जिसके जरिए नीतीश ने ‘सुशासन बाबू’ की छवि गढ़ी थी। इस बार जेडीयू (JDU) से दो गुना अधिक मंत्री बीजेपी के खाते में गए हैं, जिससे स्पष्ट है कि सत्ता समीकरण अब पहले जैसे नहीं रहे। इसके बावजूद राजनीतिक विशेषज्ञों की नजर इस बात पर है कि विभाग चाहे जिसको मिले, प्रशासनिक नियंत्रण किसके हाथ में है।

सम्राट को गृह मंत्रालय, लेकिन पावर क्यों माना जा रहा अधूरा?
डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) को गृह विभाग मिलना न केवल उनके कद का विस्तार है, बल्कि बीजेपी की लंबे समय से चली आ रही मांग की पूर्ति भी है। गृह मंत्रालय मिलने के साथ ही कानून-व्यवस्था, पुलिस प्रशासन और राज्य के सुरक्षा ढांचे की कमान अब उनके पास है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या उनके पास पूरा कंट्रोल भी है? विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रशासनिक नियुक्तियों का सबसे महत्वपूर्ण विभाग सामान्य प्रशासन विभाग (General Administration Department) अब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के पास है। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग, प्रमोशन और अनुशासनात्मक कार्रवाई जैसे बड़े निर्णय इसी विभाग से नियंत्रित होते हैं। ऐसे में यह साफ नजर आता है कि सम्राट चौधरी भले ही गृह मंत्री हों, लेकिन पुलिस-प्रशासन की रीढ़ माने जाने वाले अधिकारियों पर अंतिम निर्णय नीतीश कुमार का ही रहेगा। यही कारण है कि सम्राट को मिला ‘पावर’ अधूरा बताया जा रहा है।
सम्राट चौधरी की असली परीक्षा अब शुरू
बिहार का गृह मंत्रालय (Home Ministry) सिर्फ एक विभाग नहीं, बल्कि सरकार की प्रशासनिक सफलता का केंद्र माना जाता है। यही विभाग मंत्री को चमका भी सकता है और उनके राजनीतिक भविष्य को चुनौती भी दे सकता है। नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने इसी मंत्रालय के जरिए पिछले 20 वर्षों में अपनी विश्वसनीयता बनाई थी। अब जब यह विभाग सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) के पास है, तो उनके सामने तीन बड़ी चुनौतियां होंगी- पहली, अपराध नियंत्रण और कानून-व्यवस्था की मजबूती। दूसरी, बीजेपी की उम्मीदों पर खरा उतरना और खुद को मुख्यमंत्री के संभावित चेहरे के रूप में साबित करना। तीसरी, प्रशासनिक फैसलों पर सीमित अधिकार के बावजूद प्रभावी परिणाम देना। बीजेपी (BJP) लंबे समय से गृह मंत्रालय चाहती थी और 2024 में बार्गेनिंग के बावजूद नहीं मिल पाया था। लेकिन अब जब यह जिम्मेदारी मिली है, तो सम्राट की परफॉर्मेंस पर ही पार्टी का भविष्य काफी हद तक निर्भर करेगा।
क्या नीतीश का मास्टरस्ट्रोक काम करेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी (BJP) अब पहले की तुलना में कहीं मजबूत है, और यही कारण है कि नीतीश कुमार भी अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं। गृह मंत्रालय बीजेपी को देकर उन्होंने कानून-व्यवस्था की संभावित आलोचनाओं से खुद को बचा लिया है। अगर अपराध बढ़ते हैं, तो विपक्ष का निशाना सीधे बीजेपी और गृह मंत्री सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) पर होगा, न कि नीतीश पर। साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग अपने पास रखकर उन्होंने पावर बैलेंस का वह धागा थामे रखा है, जिससे किसी भी बड़े फैसले पर उनकी पकड़ बनी रहे। उधर बीजेपी भी बिहार में अपना पहला मुख्यमंत्री चेहरा तैयार करने के मिशन पर है, और गृह मंत्रालय देकर सम्राट चौधरी को केंद्र में लाने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल नीतीश का यह ‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’ बिहार की राजनीति में नया प्रयोग माना जा रहा है, जिसका परिणाम आने वाले महीनों में कानून-व्यवस्था की स्थिति और पावर समीकरण से तय होगा।
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