Grand Nirjala Chhath in Rikva: सूर्य उपासना का प्रतीक छठ व्रत, रिकवा घाट पर दिखी अद्भुत श्रद्धा की मिसाल

Grand Nirjala Chhath in Rikva: रिकवा में धूमधाम से संपन्न हुआ निर्जला छठ महापर्व, उमढ़ पड़ा आस्था का सैलाब

Grand Nirjala Chhath in Rikva: झारखंड (Jharkhand) के रामगढ़ (Ramgarh) जिले के मांडू विधानसभा (Mandu Assembly Constituency) क्षेत्र अंतर्गत रिकवा (Rikva) में इस वर्ष भी निर्जला छठ महापर्व पूरे हर्षोल्लास और आस्था के साथ मनाया गया। घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़, दीपों की रोशनी और छठ मैया के गीतों से वातावरण भक्तिमय हो उठा। व्रतधारिणियों ने कठोर निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव और छठ माता को अर्घ्य अर्पित किया। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और मानव के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। लोगों ने पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया और परिवार सहित घर लौटे। आइए जानते हैं पूरी खबर क्या है…

छठ व्रत: सूर्य उपासना का प्रमुख पर्व/Grand Nirjala Chhath in Rikva

छठ व्रत (Chhath Vrat) भारत के प्रमुख सूर्य उपासना पर्वों में से एक है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस वर्ष भी झारखंड (Jharkhand) के विभिन्न जिलों में छठ पर्व का भव्य आयोजन देखने को मिला। रामगढ़ जिले के मांडू विधानसभा क्षेत्र के विष्णुगढ़, डांडी, कुजू, सोनडीहा, केदला, बड़गांव, चरही, आया सारुबेड़ा, घाटों और चुम्बा जैसे स्थानों पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल हुए। रिकवा के नदी घाट पर विशेष रूप से भक्तों का जनसैलाब उमड़ा, जहां लोगों ने स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य दिया और छठ माता से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।

चार दिनों का कठोर और पवित्र व्रत

बुद्धिजीवियों के अनुसार, छठ व्रत (Chhath Vrat) कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत अत्यंत कठोर और पवित्र माना जाता है। पहला दिन ‘नहाय-खाय’, दूसरा दिन ‘खरना’, तीसरा दिन ‘संध्या अर्घ्य’ और चौथा दिन ‘उषा अर्घ्य’ कहलाता है। इन चारों दिनों में व्रतधारी महिलाएं पूरे नियम और संयम का पालन करती हैं। सबसे कठिन चरण होता है निर्जला व्रत रखना, जिसमें व्रती बिना जल ग्रहण किए पूजा-अर्चना करती हैं। यह तपस्या उनके दृढ़ संकल्प और अटूट श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है।

व्रत की विशेषता और परंपरा

छठ पूजा (Chhath Puja) की विशेषता इसकी सादगी और पवित्रता में निहित है। पूजा के दौरान बांस की टोकरी, सूप, दीपक, पांच प्रकार के फल, ठेकुआ, नारियल और गन्ने का उपयोग किया जाता है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजे घाटों पर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य देती हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है, बल्कि इसमें सामूहिकता और पारिवारिक एकता की झलक भी देखने को मिलती है। व्रतधारी महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली और समाज की समृद्धि की कामना के लिए यह कठोर तपस्या करती हैं।

धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छठ व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व सूर्य देव की आराधना के माध्यम से प्रकृति और मानव के बीच संतुलन का प्रतीक है। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार, सूर्य की किरणें शरीर को ऊर्जा और विटामिन डी (Vitamin-D) प्रदान करती हैं, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है। यही कारण है कि यह पर्व न केवल आस्था, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इस महापर्व की सफलता में रिकवा छठ पूजा समिति और स्थानीय बुद्धिजीवियों का विशेष योगदान रहा, जिन्होंने आयोजन को शांतिपूर्ण और अनुशासित रूप से संपन्न कराया।

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