Raebareli Sangam Hospital News: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में एक निजी अस्पताल से कथित उगाही के प्रयास का मामला सामने आने के बाद हड़कंप मच गया है। छजलापुर स्थित संगम अस्पताल ( Sangam Hospital ) पर बच्चे के इलाज के नाम पर पैसे वसूलने का आरोप लगाया गया, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इसे एक सुनियोजित साजिश बताते हुए खंडन किया है। इस घटना ने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि स्थानीय मीडिया की एकतरफा रिपोर्टिंग पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अस्पताल ने झूठी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है।
घटना का पूरा विवरण: बच्चे की मौत और आरोपों की शुरुआत

मामला अमेठी जिले के गोरियाबाद गांव की रहने वाली नफीसा बानो से जुड़ा है। शुक्रवार को नफीसा ने अपने नवजात बच्चे को रायबरेली के छजलापुर स्थित संगम अस्पताल में भर्ती कराया था। परिजनों के अनुसार, बच्चे की हालत गंभीर होने के कारण अस्पताल ने इलाज शुरू किया, लेकिन डिस्चार्ज के समय बिल का भुगतान न होने पर बच्चे को रोक लिया गया। परिजनों का दावा है कि इसी देरी के कारण बच्चे को लगभग 45 मिनट बाद बछरावां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पहुंचाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।
नफीसा बानो ने आरोप लगाते हुए कहा, “अस्पताल ने बिल न चुकाने के बहाने बच्चे को रोक रखा। डिस्चार्ज में देरी हुई और रास्ते में ही बच्चे की सांसें थम गईं। अगर समय पर डिस्चार्ज कर दिया होता, तो शायद बच्चा बच जाता।” परिजनों ने संगम अस्पताल पर लापरवाही और उगाही का प्रयास करने का आरोप लगाया, जिसके आधार पर दो प्रमुख अखबारों ने खबर प्रकाशित की। इन खबरों में दावा किया गया कि बच्चे की मौत के बाद ही अस्पताल ने शव को डिस्चार्ज किया, जो एक गंभीर लापरवाही का उदाहरण था।
सरकारी अस्पताल का वीडियो बयान: मौत का समय विवादास्पद
शनिवार को बछरावां सीएचसी में पहुंचे बच्चे के शव का पोस्टमार्टम नहीं किया गया, लेकिन वहां के मेडिकल ऑफिसर डॉ. भावेश यादव ने एक वीडियो में चौंकाने वाला बयान दिया। वीडियो में डॉ. यादव स्पष्ट रूप से कहते सुने जा सकते हैं, “बच्चे की मौत पांच-छह घंटे पहले हो चुकी है।” यह बयान संगम अस्पताल के डिस्चार्ज समय से मेल नहीं खाता, क्योंकि अस्पताल से बछरावां सीएचसी की दूरी मात्र 45 मिनट से एक घंटे की है। अगर बच्चा अस्पताल से जीवित डिस्चार्ज हुआ था, तो सरकारी डॉक्टर का यह बयान कैसे संभव है?
एक अन्य वीडियो में एक महिला (परिजनों के अनुसार) संगम अस्पताल पर ही आरोप लगाती सुनाई देती है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि ये वीडियो संदर्भ से हटकर पेश किए गए हैं। डॉ. यादव के बयान ने पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया है।
संगम अस्पताल का पक्ष: साजिश और मीडिया का ‘हफ्ता वसूली’ कनेक्शन
संगम अस्पताल ( Sangam Hospital ) के प्रबंधक पुनीत श्रीवास्तव ने इस पूरे प्रकरण को एक सुनियोजित उगाही की साजिश करार दिया है। उन्होंने कहा, “हमने बच्चे का पूरा इलाज किया और डिस्चार्ज के समय बच्चा जीवित था। डिस्चार्ज प्रक्रिया के दौरान बनाए गए वीडियो उपलब्ध हैं, जो साबित करते हैं कि कोई देरी नहीं हुई। सरकारी डॉक्टर का ‘पांच-छह घंटे पहले मौत’ का बयान बिना पोस्टमार्टम के कैसे दिया गया? मौत के समय की पुष्टि के लिए पोस्टमार्टम जरूरी होता है, जो यहां नहीं हुआ। यह साजिश का हिस्सा लगता है।”
श्रीवास्तव ने आगे खुलासा किया कि लगभग तीन माह पहले कुछ अखबार संचालकों ने अस्पताल से ‘हफ्ता वसूली’ की पेशकश की थी, जिसे प्रबंधन ने साफ मना कर दिया था। तब अखबार वालों ने धमकी दी थी, “समय आने पर देख लेंगे।” अस्पताल का आरोप है कि इसी बदले की भावना से एकतरफा झूठी खबरें चलाई गईं, जिनमें अस्पताल का पक्ष नहीं लिया गया। श्रीवास्तव ने कहा, “ये खबरें फर्जी हैं और इनके जरिए छापकर धनवाही करने की कोशिश की गई। हम कानूनी नोटिस जारी करेंगे और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।”
अस्पताल ने डिस्चार्ज वीडियो और अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं, जो बच्चे के जीवित डिस्चार्ज होने की पुष्टि करते हैं। प्रबंधन ने जिला प्रशासन से मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन की प्रतिक्रिया
जिला स्वास्थ्य विभाग ने मामले को संज्ञान में ले लिया है। सीएमओ डॉ. संजय कुमार ने बताया, “वीडियो बयानों की जांच की जा रही है। पोस्टमार्टम न होने पर मौत के सटीक कारण का पता लगाना मुश्किल है। दोनों पक्षों के बयान दर्ज कर जांच समिति गठित की जाएगी।” बछरावां सीएचसी के डॉ. भावेश यादव ने कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया, लेकिन स्रोतों के अनुसार, उनका बयान प्रारंभिक जांच पर आधारित था।
विशेषज्ञों का मत: मीडिया नैतिकता पर सवाल
मीडिया विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी संवेदनशील घटनाओं में दोनों पक्षों को सुनना जरूरी है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “एकतरफा खबरें न केवल सच्चाई को तोड़-मरोड़ देती हैं, बल्कि समाज में अविश्वास पैदा करती हैं। अस्पतालों पर उगाही के आरोप गंभीर हैं, लेकिन बिना तथ्यों के इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना अनैतिक है।”

बाइट्स: प्रभावित पक्षों की प्रतिक्रिया
नफीसा बानो (आरोप लगाने वाली महिला, गोरियाबाद, अमेठी): “हमारा बच्चा निर्दोष था। संगम अस्पताल ने पैसे के लालच में उसकी जान ली। डिस्चार्ज में घंटों की देरी हुई, जिससे समय पर सीएचसी नहीं पहुंच सके। हम न्याय चाहते हैं।”
पुनीत श्रीवास्तव (प्रबंधक, संगम अस्पताल): “यह पूरी तरह झूठी साजिश है। हमने इंकार किया तो बदला लिया गया। वीडियो और रिकॉर्ड सबूत हैं कि बच्चा जीवित डिस्चार्ज हुआ। डॉक्टर का बयान बिना आधार के है। हम कोर्ट जाएंगे और सच्चाई सामने लाएंगे।”
यह मामला रायबरेली और आसपास के जिलों में चर्चा का विषय बन गया है। जांच के बाद ही पूरी सच्चाई सामने आ पाएगी, लेकिन फिलहाल यह घटना निजी-सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बीच समन्वय की कमी को उजागर कर रही है। जिला प्रशासन ने शांति बनाए रखने की अपील की है।