The Painful Story of Gomia Rebel Phoolchand Kisku: कभी खेती करने का सपना देखने वाला फूलचंद किस्कू (Phoolchand Kisku) आज नक्सल हिंसा (Naxal Violence) का प्रतीक बन चुका है। दस साल पहले उसे सिर्फ एक जोड़ा बैल देने का वादा कर उग्रवादी संगठन में शामिल किया गया था, लेकिन समय ने उसके हाथ में खेती का हल नहीं, अपराध का हथियार थमा दिया। न बैल मिला, न वादा निभाने वाला कोई जिंदा रहा— बस बची उसकी दरिद्र ज़िंदगी और दर्जनों आपराधिक मुकदमे। यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन अनगिनत गरीब आदिवासियों की है जिन्हें नक्सल संगठनों ने झूठे वादों के जाल में फंसाकर बरबादी के रास्ते पर धकेल दिया।
एक जोड़ा बैल का वादा और अपराध की शुरुआत
गोमिया थाना (Gomia Police Station) क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव धमधरवा का रहने वाला फूलचंद किस्कू (Phoolchand Kisku) उर्फ राजू, एक दशक पहले उग्रवादियों के झांसे में आ गया। संगठन के लोगों ने उससे खेती करने के लिए एक जोड़ा बैल देने का वादा किया और उसे अपने साथ जोड़ लिया। परन्तु न बैल मिला, न वादा निभाने वाला कोई सदस्य आज जीवित है। बीते वर्षों में पुलिस और नक्सलियों (Naxalites) की मुठभेड़ों में गिरोह के लगभग सभी सदस्य मारे जा चुके हैं। जो बचा, वह है फूलचंद किस्कू के सिर पर लगे 15 से अधिक हत्या, लूट, डकैती, रंगदारी और सरकारी संपत्ति क्षति जैसे संगीन आरोप। उसकी ज़िंदगी अब कानून के शिकंजे और गरीबी के अंधेरे में सिमट चुकी है।

दरिद्रता और अपराध का संगम: जंगल के बीच फूलचंद का घर
फूलचंद किस्कू (Phoolchand Kisku) का घर धमधरवा गांव से करीब एक किलोमीटर दूर, घने जंगल के बीच स्थित है। वहां पहुंचने का रास्ता सिर्फ एक संकरा पैदल मार्ग है। उसका घर मिट्टी की दीवारों, बांस और पुराने टिन की छत से किसी तरह खड़ा है। दरवाजे की जगह फटा कपड़ा टंगा है और हर हवा का झोंका उसे गिराने की धमकी देता है। जब पुलिस टीम एक विशेष अभियान के तहत उसके घर पहुंची, तो फूलचंद वहां नहीं था— मिली उसकी बहू, जो गरीबी और तिरस्कार के बीच जीवन काट रही है। अपराध के कारण परिवार किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं ले पा रहा, न ही उनके पास आधार कार्ड है। गांव वाले उन्हें समाज से अलग-थलग कर चुके हैं। यह दृश्य सवाल उठाता है — अपराध ने फूलचंद को गरीब बनाया या गरीबी ने उसे अपराधी?
पुलिस का अभियान और आत्मसमर्पण की असफल कोशिश
पुलिस ने फूलचंद किस्कू के परिवार को झारखंड सरकार (Government Of Jharkhand) की आत्मसमर्पण नीति समझाई, ताकि वह समाज की मुख्यधारा में लौट सके। परन्तु उसकी बहू के चेहरे के भाव और बातों से स्पष्ट था कि फूलचंद आत्मसमर्पण के पक्ष में नहीं है। तीन-चार दिन बाद भी कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर पुलिस ने विशेष टीम गठित कर छापेमारी की और फूलचंद को उसके घर के पास जंगल से गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया। इस गिरफ्तारी के साथ गोमिया क्षेत्र का अंतिम सक्रिय नक्सली पकड़ा गया। यह गिरफ्तारी न केवल कानून की जीत थी, बल्कि यह संकेत भी कि हिंसा के रास्ते पर चलने वालों का अंत हमेशा अंधकार में होता है।
गरीबों को मोहरा बनाकर हिंसा फैलाने की सच्चाई
वामपंथी उग्रवादी संगठन कभी समाज सुधार के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय हुए थे, पर आज वे ही क्षेत्र के पिछड़ेपन के सबसे बड़े कारण बन गए हैं। नक्सली नेता रोजगार और धन देने के झूठे वादों से भोले-भाले ग्रामीणों को फंसाते हैं, लेकिन अंत में इन लोगों को केवल हिंसा, अपराध और मौत का रास्ता मिलता है। फूलचंद किस्कू की कहानी इसी सच्चाई का प्रतीक है- जहां एक जोड़ा बैल के लालच में एक गरीब आदिवासी ने अपनी पूरी जिंदगी गवा दी। जो संगठन कभी किसानों के अधिकार की बात करते थे, वही आज उनके सपनों को कुचलने के जिम्मेदार हैं।










