मंच साझा पर रायबरेली की सियासत गर्म! एक ही मंच पर मनोज संग अदिति, तंज में दिनेश

ब्यूरो रिपोर्ट : शिवा मौर्य

रायबरेली में एक मंच पर दो ऐसे विधायकों का दिखना जो एक दूसरे कभी कट्टर विरोधी हुआ करते थे, जो इस चर्चा का विषय बना हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजनीति का धड़कता हुआ केंद्र रायबरेली एक बार फिर सियासी सुर्ख़ियों में है। वजह यह है सपा से जीते ऊंचाहार के विधायक मनोज पाण्डेय जो अब भाजपा में शामिल है। जिनका एक मंचीय फैसला, जिसमें उन्होंने सदर विधायक अदिति सिंह को कार्यक्रम में बुलाया था या नही यह नही पता। यह मंच सामान्य दिखने वाली इस घटना ने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया। राज्य मंत्री दिनेश प्रताप सिंह और उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर तीखे तंज़ कसते हुए इस मुलाक़ात को नया रंग दे दिया और अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी जिस पर मनोज पांडे के सहयोगियों ने भी जमकर लताड़ा, रायबरेली की राजनीति कभी भी सपाट नहीं रही। गांधी परिवार का गढ़ होने से लेकर भाजपा की बढ़ती पैठ तक, यहां की हर हलचल राज्य की सियासत को प्रभावित करती है। सदर विधायक अदिति सिंह का मंच पर बैठना और दिनेश सिंह का तंज़ – यह सिर्फ़ दो नेताओं की खींचतान नहीं, बल्कि पूरे ज़िले की राजनीति का आईना है। जनता चाहती है विकास, लेकिन नेताओं के बीच जारी यह शब्दो का युद्ध शायद आने वाले चुनावों की असली पटकथा लिख रहा है। फिलहाल जनता तो यह जान ही चुकी है कि इन दोनों का मिलन कोई बड़ी रणनीति तैयार हो रही है।

मंच से सोशल मीडिया तक चर्चाओं का बाजार गर्म है

रायबरेली में हुए एक स्थानीय आयोजन में मनोज पाण्डेय ने अदिति सिंह के साथ मंच साझा किया । दोनों नेताओं के बीच बातचीत और मंच साझा करने की तस्वीरें तुरंत ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और दूसरे दिन यहां उत्तर प्रदेश सरकार में उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के करीबी कार्यकर्ताओं ने फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट डालकर सवाल उठाना शुरू कर दिया—“ क्या भाजपा में दो खेमे बन गए हैं? ” जिस मंच पर पर्यटन मंत्री पहुंचे क्या जिले के उद्यान मंत्री को बुलाना मुनासिब नहीं समझा। किसी को लेकर मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट लेकर अपनी भड़ास निकाली। मंत्री दिनेश सिंह के समर्थकों ने यहां तक लिखा कि “जो नेता भाजपा की असली मेहनत कर रहे हैं, उन्हें किनारे कर , टिकट की राजनीति चल रही है। ” सीधे शब्दों में न सही, लेकिन निशाना साफ़ था- अदिति सिंह पर । यह तंज क्योंकि अदिति सिंह के पिता स्वर्गीय पूर्व विधायक अखिलेश सिंह और मनोज पांडे की पुरानी अदावत है।

मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के फेसबुक से एक पोस्ट की गई जो थोड़े समय बाद एडिट हो गई वो पोस्ट भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई जिसमें लिखा था ” राजनीतिक फायदे के लिए, जाति से जाति के बीच नफरत पैदा करके, बड़ी-बड़ी खाई खोदकर, जातियों की फौज बनाकर, फिर फौजों को लड़ा लड़ा कर परिजनों की हत्याये कराकर, फिर फौज को आपस में लड़ता हुआ छोड़कर, सेनापति गले लग जाए, ऐसा काम समाजवादी पार्टी का होगा, भारतीय जनता पार्टी में ऐसा काम न आज हुआ है न कभी होगा. हर हर महादेव.” यह पोस्ट मंत्री के सोशल मीडिया हैंडल से किया गया था।

सियासी समीकरण और पुरानी रंजिशें

इस विवाद की जड़ें पुरानी हैं। अदिति सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन किया, वहीं दिनेश प्रताप सिंह भी कांग्रेस से भाजपा आए थे। दोनों नेताओं का राजनीतिक क्षेत्र एक ही ज़िला- रायबरेली है। ऐसे में टिकट और प्रभाव को लेकर खींचतान लगातार बनी रही है। अब तीनों नेता एक ही जनपद से हैं। जिसमें दिनेश सिंह का पद काफी बड़ा माना जा रहा है।

मनोज पाण्डेय का कद भी कम दिलचस्प नहीं है। वे समाजवादी पार्टी से विधायक बने, लेकिन समय-समय पर भाजपा की ओर झुकते नज़र आए । राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और पार्टी से दूरी बनाने के बाद, उन्हें भाजपा का “ संभावित सहयोगी ” माना जाने लगा। ऐसे में उनका अदिति सिंह को मंच पर बुलाना, दिनेश सिंह के लिए सीधा राजनीतिक संदेश माना जा रहा है। इसके कई मायने सोशल मीडिया पर लगातार जारी है।

प्रकरण में सोशल मीडिया यूजर्स भी बड़ी दिलचस्पी दिखा रहे हैं

गाँव- गाँव में इस वाकये पर चर्चा गर्म है। कोई कह रहा है—“ मनोज पाण्डेय तो सिर्फ़ अपना वजन दिखा रहे हैं, ” तो कोई बोलता है—“ अदिति सिंह का बढ़ता कद मंत्री जी को खल रहा है। ” वहीं एक बुज़ुर्ग किसान ने टिप्पणी की—“हमारे लिए तो सड़क, अस्पताल और शिक्षा चाहिए । नेता लोग आपस में झगड़ रहे हैं , हमें क्या मिलेगा? ”

हालांकि, जनता के लिए सियासी खींचतान से ज़्यादा अहम मुद्दे रोज़मर्रा की ज़रूरतें हैं। लेकिन जब नेताओं का ध्यान आपसी वाकयुद्ध पर अटक जाता है, तो आम नागरिक उपेक्षित महसूस करता है।

सोशल मीडिया का असर

इस पूरे विवाद को हवा सोशल मीडिया ने दी। पहले मंच पर तालियाँ बजीं, फिर व्हाट्सएप ग्रुप्स और फेसबुक पेज पर कटाक्ष शुरू हो गए। समर्थक वर्गों ने वीडियो क्लिप्स शेयर करके अपने-अपने नेताओं की छवि चमकाने की कोशिश की। लेकिन नतीजा यही निकला कि ज़िले की सियासत और गरमा गई।

आगे की राह 27 तय करेगी

रायबरेली का यह विवाद भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। अदिति सिंह और मनोज पाण्डेय के बीच तालमेल, और दिनेश प्रताप सिंह का कड़ा विरोध – ये सब मिलकर पार्टी में दरार की तस्वीर खींचते हैं। वहीं विपक्ष इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र गड़ाए बैठा है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के नेताओं का मानना है कि भाजपा के भीतर का यह द्वंद्व उन्हें चुनावी मैदान में ताक़त देगा।

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