काशी के लक्खा मेला में शुमार ‘ भरत मिलाप ‘ झमाझम बारिश के बीच संपन्न

नाटी इमली की भरत मिलाप लीला में चारों भाइयों के गले मिलते ही आंखे हुईं सजल

काशी के प्रसिद्ध लक्खा मेलों में शुमार ( एक लाख से ज्यादा भीड़) नाटी इमली में शुक्रवार को भरत मिलाप का भव्य आयोजन हुआ। तेज बारिश के बावजूद देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक लीला के साक्षी बने। बारिश में भीगते हुए और छतरियां लगाए हजारों लोगों ने भक्ति और उत्साह के साथ इस कार्यक्रम का आनंद लिया। काशी नरेश कुंवर अनंत नारायण सिंह भी शाही अंदाज में इस आयोजन में शामिल हुए।

भरत मिलाप की यह परंपरा पिछले 483 वर्षों से काशी में जीवंत है, जिसे तुलसीदास के समकक्ष मेघा भगत ने शुरू किया था। मान्यता है कि तुलसीदास के देहांत के बाद मेघा भगत को स्वप्न में श्रीराम के दर्शन हुए, जिसके बाद 1544 में इस स्थल पर भरत मिलाप की लीला शुरू हुई। तुलसीदास ने रामचरितमानस को काशी के घाटों पर लिखा था, और उनकी प्रेरणा से इस परंपरा को मेघा भगत ने व्यवस्थित रूप दिया।

कार्यक्रम में यदुकुल के यादव बंधु धोती, बनियान और पगड़ी में सजे हुए रघुकुल के रथ को कंधों पर उठाकर ले गए, जिसे देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। 5 टन वजनी श्रीराम का पुष्पक विमान फूलों की तरह सजा हुआ था, जिसे यादव बंधु लीला स्थल तक लाए। इस दौरान ‘जय श्रीराम’ के नारे गूंजते रहे। काशी राज परिवार की उपस्थिति ने इस आयोजन को और भव्य बनाया। 1796 में पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इस परंपरा में हिस्सा लेना शुरू किया था, और तब से उनकी पांच पीढ़ियां इसे निभा रही हैं। इस बार सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए। पूरे लीला क्षेत्र में वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित रहा, और तीन ड्रोन कैमरों के माध्यम से निगरानी की गई। बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं का जोश अडिग रहा।

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