Chhath Puja Sindoor Importance: छठ पर महिलाएं नाक से लेकर मांग तक नारंगी सिंदूर क्यों लगाती हैं? जानिए धार्मिक मान्यता और परंपरा

Chhath Puja Sindoor Importance: छठ पूजा पर नारंगी सिंदूर का रहस्य: क्यों इस दिन महिलाएं लगाती हैं नाक से सिर तक लंबा सिंदूर?

Chhath Puja Sindoor Importance: लोकआस्था और भक्ति का पर्व छठ पूजा (Chhath Puja) पूरे देश में श्रद्धा और परंपरा के साथ मनाया जा रहा है। इस पवित्र अवसर पर व्रती महिलाएं उपवास रखकर सूर्य देव और छठी मैया (Chhathi Maiya) की आराधना करती हैं। इस दौरान एक विशेष परंपरा देखने को मिलती है- महिलाएं नाक से लेकर सिर तक नारंगी सिंदूर लगाती हैं। यह सिंदूर न केवल सजावट का प्रतीक है, बल्कि इसमें गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता भी छिपी है। नारंगी रंग सूर्य देव से जुड़ा हुआ है, और इसे सौभाग्य, ऊर्जा व पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं, छठ पूजा पर नाक से लेकर मांग तक नारंगी सिंदूर लगाने की परंपरा, उसका महत्व और उससे जुड़े धार्मिक रहस्य क्या हैं।

छठ पूजा और सिंदूर की परंपरा/Chhath Puja Sindoor Importance

छठ पूजा (Chhath Puja) नारी श्रद्धा, समर्पण और तप की पराकाष्ठा का पर्व माना जाता है। इस दौरान व्रती महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं और सूर्य देव व छठी मैया की पूजा करती हैं। बिहार (Bihar), झारखंड (Jharkhand) और पूर्वांचल (Purvanchal) के अधिकांश क्षेत्रों में छठ पर्व के समय विवाहित महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं। यह परंपरा केवल श्रृंगार का हिस्सा नहीं है, बल्कि आस्था और परिवार की समृद्धि का प्रतीक भी मानी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि जितना लंबा सिंदूर लगाया जाता है, वह उतना ही पति के दीर्घायु और परिवार की सुख-शांति का प्रतीक होता है। छठ के दौरान महिलाएं पूर्ण भक्ति के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं, और सिंदूर उनके इस समर्पण और श्रद्धा का द्योतक बन जाता है।

नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाने का अर्थ

छठ पूजा (Chhath Puja) के दौरान नाक से लेकर सिर तक सिंदूर लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसा करने के पीछे गहरी धार्मिक भावना जुड़ी है। नाक से मांग तक सिंदूर लगाने का अर्थ है — व्रती महिला पूर्ण निष्ठा से सूर्य देव की उपासना कर रही है और अपने परिवार की दीर्घायु व समृद्धि की कामना कर रही है। यह सिंदूर शुभता और वैवाहिक सौभाग्य का प्रतीक है। परंपरागत रूप से माना जाता है कि जितना लंबा सिंदूर होगा, उतनी ही लंबी पति की आयु होगी। इसके अलावा, यह सिंदूर पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और एकता को दर्शाता है। छठ का यह अनुष्ठान दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में सौभाग्य केवल बाहरी साज-सज्जा नहीं, बल्कि गहन भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।

नारंगी सिंदूर का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

छठ पूजा (Chhath Puja) के समय महिलाएं लाल नहीं, बल्कि नारंगी रंग (Orange color) का सिंदूर लगाती हैं, जिसके पीछे गहरा आध्यात्मिक अर्थ है। सूर्य देवता का रंग नारंगी माना गया है, जो ऊर्जा, प्रकाश और जीवन का प्रतीक है। इस रंग का संबंध पवित्रता, आत्मबल और आध्यात्मिक उर्जा से भी है। छठ पर्व सूर्योपासना का पर्व है, इसलिए नारंगी सिंदूर लगाने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होने की मान्यता है। यह रंग मन और आत्मा में सकारात्मकता का संचार करता है। धार्मिक ग्रंथों में भी बताया गया है कि नारंगी रंग तप, संयम और साधना का प्रतीक है। इसलिए महिलाएं इस दिन न केवल पारंपरिक रूप से, बल्कि श्रद्धा और आध्यात्मिक एकाग्रता के साथ नारंगी सिंदूर लगाती हैं।

सिंदूर और ‘आज्ञा चक्र’ का संबंध

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो नाक से माथे तक का हिस्सा मानव शरीर के ‘आज्ञा चक्र’ से जुड़ा होता है, जो मन की एकाग्रता, शांति और अंतर्ज्ञान का केंद्र माना जाता है। छठ पूजा के दौरान नाक से लेकर मांग तक सिंदूर (Sindoor) लगाने से यह चक्र सक्रिय होता है, जिससे व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और आत्मबल बढ़ता है। पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि जब महिला पूरे मनोयोग से सिंदूर लगाती है, तो वह अपने भीतर की ऊर्जा को दिव्यता की ओर मोड़ती है। यही कारण है कि छठ पूजा के समय यह श्रृंगार केवल बाहरी नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का हिस्सा भी बन जाता है। नाक से सिर तक सिंदूर लगाना वास्तव में भक्ति, ऊर्जा और आत्मिक संतुलन का प्रतीक है, जो छठ पर्व की गहराई को और बढ़ा देता है।

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