Family Politics Dominates Bihar: Bihar Chunav 2025: राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला, RJD में सबसे ज्यादा वंशवादी विधायक

Family Politics Dominates Bihar: बिहार विधानसभा में 70 वंशवादी विधायक, JDU और BJP भी पीछे नहीं

Family Politics Dominates Bihar: बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में परिवारवाद की गहरी जड़ें लगातार चर्चा का विषय बनी रहती हैं। हाल ही में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट ने राज्य विधानसभा के 243 निवर्तमान विधायकों का विश्लेषण किया, जिसमें खुलासा हुआ कि 70 विधायक वंशवादी पृष्ठभूमि से आते हैं। इस आंकड़े ने राजनीतिक दलों में वंशवाद की व्यापकता को उजागर किया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) इस मामले में सबसे आगे है, जबकि जदयू और भाजपा भी पीछे नहीं हैं। आइए जानते हैं पूरी रिपोर्ट, और किस पार्टी में कितने वंशवादी विधायक हैं—

RJD में परिवारवाद की प्रधानता/Family Politics Dominates Bihar

रिपोर्ट के अनुसार, RJD में वंशवाद की जड़ें सबसे मजबूत हैं। पार्टी के कुल 71 विधायकों में से 30 विधायक वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं, जो कुल विधायकों का 42.25 प्रतिशत है। इनमें प्रमुख चेहरे हैं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव, जो लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के पुत्र हैं। इसके अलावा, विधानसभा में राजद के कम से कम सात सदस्य ऐसे हैं जिनके परिवार के सदस्य पहले मंत्री रह चुके हैं। अन्य उल्लेखनीय वंशवादी नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा तथा हरिहर सिंह के पुत्र शामिल हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि राजद ने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है और राज्य की राजनीति में वंशवाद की मजबूत जड़ें हैं।

JDU, BJP और कांग्रेस का हाल

जदयू और भाजपा भी परिवारवाद में पीछे नहीं हैं। जदयू के निवर्तमान 44 विधायकों में से 16 (36.36 प्रतिशत) वंशवादी हैं। भाजपा में वंशवादी विधायकों की संख्या जदयू और राजद के संयुक्त आंकड़े से केवल तीन सीटें कम है, हालांकि इसका सटीक आंकड़ा रिपोर्ट में नहीं दिया गया है। कांग्रेस के 19 विधायकों में चार (21.25 प्रतिशत) वंशवादी हैं। जदयू-भाजपा राज्य सरकार के सात मंत्री भी वंशवादी पृष्ठभूमि से आते हैं। जदयू के विजय कुमार चौधरी, महेश्वर हजारी, शीला कुमारी और सुनील कुमार तथा भाजपा के नितिन नवीन इनमें शामिल हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि बिहार में प्रमुख दलों के नेतृत्व में भी पारिवारिक विरासत को महत्व दिया जाता है और राजनीति में वंशवाद की व्यापकता बनी हुई है।

दूसरी और तीसरी पीढ़ी के वंशवादी

बिहार में कई नेता दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक राजनीति में सक्रिय हैं। जदयू के मंत्री सुमित कुमार सिंह (Sumit Kumar Singh), जिनके पिता और दादा दोनों विधायक और मंत्री रह चुके हैं, तीसरी पीढ़ी के वंशवादी नेता हैं। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री शकुनी चौधरी (Shakuni Choudhary) के बेटे सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) tऔर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) के पुत्र संतोष सुमन मांझी (Suman Manjhi) भी राजनीति में सक्रिय हैं। RJD के युसूफ सलाहुद्दीन के दादा सांसद रहे हैं, जबकि जदयू के मंत्री अशोक चौधरी के पिता भी मंत्री रह चुके हैं। यह दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में वंशवादी नेटवर्क लंबी पीढ़ियों तक कायम हैं और नए नेताओं को पारिवारिक पृष्ठभूमि से ही राजनीति में प्रवेश मिलता है।

राजनीति में योग्यता बनाम पारिवारिक विरासत

बिहार (Bihar) जैसे राज्य में जहां सामाजिक और प्रगतिशील आंदोलन हुए हैं, वहां भी राजनीति में पारिवारिक विरासत को प्राथमिकता मिलती है। रिपोर्ट के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि योग्यता के बजाय परिवारवाद राज्य की राजनीति में गहराई तक जमी हुई है। RJD, JDU और भाजपा में वंशवादी नेताओं की उपस्थिति दर्शाती है कि परिवार की विरासत और राजनीतिक कनेक्शन युवा नेताओं को सत्ता तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह प्रवृत्ति पार्टी नीतियों, उम्मीदवार चयन और चुनावी रणनीतियों को प्रभावित करती है। बिहार विधानसभा (Bihar Vidhansabha) में 70 वंशवादी विधायक इस बात का प्रमाण हैं कि राजनीति में वंशवाद की पकड़ मजबूत है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, भविष्य में चुनाव और दलों की रणनीति में परिवारवाद एक महत्वपूर्ण कारक बने रहने की संभावना है।

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