Kartik Purnima 2025: हिंदू पंचांग में कार्तिक मास की पूर्णिमा का विशेष स्थान है। यह दिन केवल पूजा या व्रत का नहीं, बल्कि प्रकाश, श्रद्धा और करुणा का पर्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर गंगा तटों को आलोकित करते हैं। काशी (Kashi) में जब हजारों दीपों की रोशनी से गंगा किनारे देव दीपावली (Dev Diwali) मनाई जाती है, तो वह दृश्य सृष्टि के सबसे दिव्य पलों में गिना जाता है। इस दिन किया गया स्नान, दान और दीपदान जीवन में सुख, शांति और सौभाग्य लाता है। हर वर्ष यह तिथि अपने साथ आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्ति का संदेश लेकर आती है। आइए जानते हैं पूरी खबर क्या है…
इस वर्ष कब है कार्तिक पूर्णिमा 2025 और क्या है शुभ मुहूर्त/Kartik Purnima 2025
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) 2 नवंबर 2025, रविवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, देव दीपावली का शुभ प्रदोषकाल शाम 5:15 बजे से रात 7:50 बजे तक रहेगा। इसी समय भगवान श्रीहरि विष्णु (Lord Srihari Vishnu), महादेव और चंद्रदेव की पूजा करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 5:11 बजे रहेगा, जब भक्त चंद्रदेव को अर्घ्य अर्पित कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के काल में देवता स्वयं पृथ्वी पर विचरण करते हैं। इसलिए इस समय किया गया स्नान, दान और दीपदान सौ गुना पुण्यफल प्रदान करता है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

कार्तिक पूर्णिमा की पूजन-विधि: कैसे करें पूजा और दीपदान
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का आरंभ ब्रह्ममुहूर्त में स्नान से होता है। पवित्र नदियों— विशेषकर गंगा, यमुना या किसी तीर्थस्थल के जलाशय में स्नान करना शुभ माना गया है। इसके बाद घर के मंदिर या पूजा स्थल को स्वच्छ कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की स्थापना करें। पूजा के दौरान कुमकुम, हल्दी, पुष्प, धूप और दीप अर्पित करें तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें। प्रसाद के रूप में फल या मिठाई अर्पित करें और परिवार में वितरित करें। शाम के समय घर, मंदिर, नदी तट या बालकनी में दीप जलाना देव दीपावली (Dev Diwali) का सबसे पवित्र कर्म माना गया है। यह दिन आत्मशुद्धि और दान की भावना को प्रबल करता है, जिससे मनुष्य के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रकाश जागृत होता है।
त्रिपुरारी पूर्णिमा: शिव और विष्णु की कृपा का अद्भुत संगम
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima) भी कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव (Lord Shiva) ने त्रिपुरासुर (Tripurasura) नामक तीन राक्षसों का संहार किया था। इसलिए इस दिन भगवान शिव की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। साथ ही, कार्तिक मास भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए श्रीहरि विष्णु की आराधना का भी विशेष महत्व है। इस तिथि को देवता गंगा तट पर दीप जलाकर दिव्य दीपावली मनाते हैं, जिसे “देव दीपावली” कहा जाता है। भक्त इस दिन शिव और विष्णु दोनों की उपासना करते हैं ताकि जीवन में संतुलन, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति हो सके। यह दिन भक्ति, वीरता और प्रकाश के मिलन का प्रतीक माना गया है।
दान और दीपदान का महत्व और कार्तिक पूर्णिमा का आध्यात्मिक संदेश
धार्मिक मान्यता है — “दीपदानं विशेषेण कार्तिके पुण्यवर्धनम्”, अर्थात कार्तिक मास में दिया गया दीपदान सभी पापों का नाश करता है और अक्षय पुण्य प्रदान करता है। इस दिन गंगा तट पर दीप प्रवाहित करना, गरीबों को वस्त्र, भोजन या अन्न दान करना अत्यंत शुभ होता है। दीपदान से मानसिक शांति, सौभाग्य और सकारात्मकता का संचार होता है। कार्तिक पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि जब भीतर का दीप प्रज्वलित होता है, तभी बाहरी रोशनी सार्थक होती है। भक्ति, ध्यान और दान के माध्यम से यह दिन मनुष्य को आत्मज्ञान, करुणा और सच्चे प्रकाश की दिशा में अग्रसर करता है।










