Pakistan Sends Troops To Gaza: पाकिस्तान (Pakistan) की विदेश नीति में एक ऐसा मोड़ आया है, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। जिस गाज़ा के लिए इस्लामाबाद कुछ हफ्ते पहले आंसू बहा रहा था, अब वहीं सैनिक भेजने की तैयारी कर रहा है। कहा जा रहा है कि यह फैसला अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और इज़रायली मोसाद (Israeli Mossad) के साथ हुई एक गुप्त बैठक के बाद लिया गया है। पाकिस्तान की इस चाल से मुस्लिम दुनिया में हलचल मच गई है, वहीं इजरायल और अमेरिका इसे “रणनीतिक साझेदारी” की दिशा में बड़ा कदम बता रहे हैं। आखिर पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया? क्या यह आर्थिक मजबूरी है या कूटनीतिक पलटवार? आइए जानते हैं पूरी ख़बर क्या है।
गाज़ा के नाम पर कूटनीतिक सौदेबाज़ी/Pakistan Sends Troops To Gaza
सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान (Pakistan) गाज़ा पट्टी (Gaza Strip) में लगभग 20,000 सैनिक भेजने की तैयारी कर रहा है। यह कदम “स्थिरीकरण और पुनर्निर्माण” के नाम पर उठाया जा रहा है, लेकिन असली उद्देश्य कुछ और बताया जा रहा है। मिस्र में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर, इजरायल की मोसाद और अमेरिकी CIA के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया। माना जा रहा है कि यह निर्णय पश्चिमी देशों की निगरानी में चलने वाले युद्धोत्तर मिशन का हिस्सा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का यह कदम उसकी पारंपरिक मुस्लिम एकजुटता की नीति से बिल्कुल उलट है। इस्लामी देशों में इसे “विश्वासघात” की तरह देखा जा रहा है, जबकि अमेरिका इसे पाकिस्तान की नई रणनीतिक भूमिका का संकेत मान रहा है।

क्या इज़रायल को मान्यता देने जा रहा है पाकिस्तान?
यह सवाल अब पूरी दुनिया में उठ रहा है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान के नए पासपोर्टों से “इज़रायल के लिए मान्य नहीं” वाली पंक्ति हटा दी गई है, जो उसके रुख में नरमी का बड़ा संकेत है। खुफिया सूत्रों का दावा है कि पाकिस्तान गाज़ा में मानवीय पुनर्निर्माण के बहाने सीमित सैन्य उपस्थिति रखेगा, लेकिन असली लक्ष्य हमास के बचे हुए लड़ाकों को निष्क्रिय करना है। इस मिशन में इंडोनेशिया और अज़रबैजान (Indonesia and Azerbaijan) जैसे देश भी शामिल हो सकते हैं, जबकि वास्तविक नियंत्रण अमेरिका, इज़रायल और अरब मध्यस्थों के पास रहेगा। ईरान, तुर्की और कतर ने इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है, इसे अमेरिका समर्थक और हमास-विरोधी चाल करार दिया है। इससे पाकिस्तान की मुस्लिम दुनिया में साख पर गहरा असर पड़ सकता है।
आर्थिक मजबूरी या पश्चिमी दबाव?
रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान (Pakistan) इस समझौते के बदले में अमेरिका और इज़रायल से आर्थिक राहत पैकेज प्राप्त करेगा। इसमें वर्ल्ड बैंक की किस्तों में ढील, कर्ज भुगतान की समय सीमा बढ़ाने और खाड़ी देशों से आर्थिक मदद जैसे प्रावधान शामिल हैं। यही नहीं, पाकिस्तान (Pakistan) को कुछ राजनयिक राहतें भी मिलने की उम्मीद है — जैसे भारत की ओर से नियंत्रण रेखा (LoC) पर दबाव में कमी और पश्चिमी देशों द्वारा मानवाधिकार मुद्दों पर नरमी। एक खुफिया अधिकारी के अनुसार, यह पाकिस्तान के लिए “सर्वाइवल डील” है, जहां आर्थिक राहत और अंतरराष्ट्रीय वैधता के बदले उसे पश्चिमी सुरक्षा गठजोड़ का हिस्सा बनना पड़ा है। यह पाकिस्तान की विदेश नीति में एक गहरा झुकाव दर्शाता है, जो उसकी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
नई कूटनीतिक दिशा या ऐतिहासिक पलट?
राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका और इज़रायल (Israel), पाकिस्तान की सेना को अब ईरान (Iran) के खिलाफ एक संतुलनकारी ताकत के रूप में देख रहे हैं। इज़रायली सेना (Israeli Army) के बिना जो काम सीधे नहीं हो सकता, वही पाकिस्तान के सैनिक अब अप्रत्यक्ष रूप से करेंगे। यह पाकिस्तान के लिए वैचारिक बदलाव नहीं बल्कि आर्थिक दबाव से उपजा कदम है। हालांकि पाकिस्तान इसे मानवीय मिशन का नाम दे रहा है, लेकिन मुस्लिम देशों में इसे ‘धोखा’ करार दिया जा रहा है। जो देश कभी गाज़ा के समर्थन में सड़कों पर उतरता था, वही अब गाज़ा में पश्चिमी हितों की सुरक्षा करेगा— यह पाकिस्तान के कूटनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी पलटी मानी जा रही है।










