Pokhran Back in Global Talks: दुनिया में एक बार फिर परमाणु शक्ति (Nuclear Power) के समीकरण बदलते नज़र आ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। ट्रंप का दावा है कि पाकिस्तान (Pakistan) और चीन (China) गुपचुप तरीके से परमाणु परीक्षण कर रहे हैं। इस बयान के बाद भारत को एक बार फिर अपनी सामरिक ताकत दिखाने का मौका मिल सकता है— खासकर हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb) यानी थर्मोन्यूक्लियर हथियार (Thermonuclear Weapons) के संभावित परीक्षण के रूप में। सवाल ये है कि क्या भारत, जिसने 1998 में पोखरण में परमाणु क्षमता का प्रदर्शन किया था, अब एक कदम आगे बढ़ेगा? आइए जानते हैं पूरी खबर और क्यों इस पर सबकी निगाहें भारत पर टिकी हैं।
ट्रंप के बयान से मचा हड़कंप, भारत के लिए नया मौका/Pokhran Back in Global Talks
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को बड़ा दावा किया कि पाकिस्तान और चीन गुपचुप तरीके से परमाणु परीक्षण कर रहे हैं। उनके इस बयान ने वैश्विक सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान भारत के लिए रणनीतिक रूप से एक अहम संकेत हो सकता है। भारत ने 1998 में पोखरण-II के जरिए खुद को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया था, और उस वक्त दावा किया गया था कि इन परीक्षणों में एक थर्मोन्यूक्लियर यानी हाइड्रोजन बम भी शामिल था। अब जब ट्रंप ने क्षेत्रीय परमाणु गतिविधियों पर उंगली उठाई है, तो भारत के पास अपनी तकनीकी क्षमता और सामरिक प्रभाव दिखाने का अवसर बन सकता है। हालांकि, यह कदम भारत की अब तक की संयमित नीति—“स्वैच्छिक परीक्षण रोक”—से हटकर होगा, इसलिए इससे जुड़े कूटनीतिक और राजनीतिक जोखिम भी कम नहीं हैं।

पोखरण-2 की यादें और वैज्ञानिक विवाद
भारत ने मई 1998 में राजस्थान (Rajasthan) के पोखरण (Pokhran) में पांच परमाणु परीक्षण किए थे, जिनमें एक हाइड्रोजन बम का परीक्षण भी शामिल बताया गया था। हालांकि, वर्षों बाद इस परीक्षण की सफलता पर वैज्ञानिकों के बीच मतभेद सामने आए। डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक के. संथानम ने 2009 में दावा किया था कि उस समय किया गया थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण (Thermonuclear Tests) अपेक्षित शक्ति का नहीं था और भारत को इसे दोबारा करना चाहिए। वहीं, परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष राजगोपाल चिदंबरम (Rajagopal Chidambaram) ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा था कि परीक्षण पूरी तरह सफल रहा था। यह विवाद आज भी वैज्ञानिक और सामरिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब जब ट्रंप का बयान आया है, तो पोखरण की यादें फिर से ताजा हो गई हैं और सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत अपनी परमाणु नीति की समीक्षा करेगा या संयम की राह पर कायम रहेगा।
हाइड्रोजन बम बनाम परमाणु बम– कितना बड़ा फर्क? (150 शब्द)
हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb,), जिसे थर्मोन्यूक्लियर (Thermonuclear) बम भी कहा जाता है, पारंपरिक परमाणु बम की तुलना में कई गुना अधिक शक्तिशाली होता है। परमाणु बम में ऊर्जा यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन (fission) से निकलती है, जबकि हाइड्रोजन बम में शक्ति हाइड्रोजन के संलयन (fusion) से उत्पन्न होती है— वही प्रक्रिया जो सूर्य में होती है। इस कारण इसे “सन बम” भी कहा जाता है। एक मेगाटन क्षमता वाला हाइड्रोजन बम कुछ ही सेकंड में सैकड़ों किलोमीटर तक तबाही मचा सकता है। अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश पहले ही ऐसे हथियारों का सफल परीक्षण कर चुके हैं। भारत तकनीकी रूप से इस स्तर तक पहुँच चुका है कि आवश्यकता पड़ने पर उन्नत परीक्षण कर सके। लेकिन हर परीक्षण सिर्फ ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारी राजनीतिक और कूटनीतिक निर्णय भी होता है— यही कारण है कि भारत अब तक अपने संयमित रुख पर कायम रहा है।
क्षेत्रीय असर: पाकिस्तान में चिंता, भारत पर निगाहें
ट्रंप (Trump) के बयान और भारत (Bharat) के संभावित कदमों ने पाकिस्तान में बेचैनी बढ़ा दी है। इस्लामाबाद (Islamabad) के रणनीतिक हलकों में चर्चा है कि अगर भारत हाइड्रोजन बम का परीक्षण करता है, तो दक्षिण एशिया (South Asia) में शक्ति संतुलन पूरी तरह बदल जाएगा। पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक अब्दुल बासित ने भी कहा है कि भारत यदि थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण की ओर बढ़ता है, तो यह “क्षेत्रीय अस्थिरता” को बढ़ा सकता है। वहीं, भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब तकनीकी और सामरिक दोनों रूप से उस स्थिति में है कि ज़रूरत पड़ने पर निर्णायक कदम उठा सके। हालांकि, इस दिशा में कोई भी कदम अमेरिका, रूस और संयुक्त राष्ट्र की निगाहों में रहेगा। भारत की नीति अब तक “नो फर्स्ट यूज़” यानी पहले परमाणु हमला न करने की रही है, लेकिन वैश्विक परिदृश्य में बढ़ते तनाव और नए दावों के बीच, क्या भारत अपनी परमाणु रणनीति पर पुनर्विचार करेगा—यही सबसे बड़ा सवाल है।










