Raebareli Basic Education Department : रायबरेली बेसिक शिक्षा विभाग ने लापरवाही और पिछड़ेपन में बनाया प्रदेश में पहला स्थान

Raebareli Basic Education Department : उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले का बेसिक शिक्षा विभाग एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार किसी सकारात्मक उपलब्धि के लिए नहीं। केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी ‘विकसित भारत बिल्डथॉन’ कार्यक्रम में विभाग द्वारा किए गए बेहद खराब प्रदर्शन के कारण यह जिला प्रदेश में लापरवाही, पिछड़ेपन और लेटलतीफी के मामले में नंबर वन स्थान हासिल करने में सफल रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, विभाग ने मात्र 3.24 प्रतिशत आइडिया सबमिशन का लक्ष्य हासिल किया, जो अन्य जिलों की तुलना में सबसे कम है। इस विफलता ने न केवल विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी गंभीर चिंता जताई है।

‘विकसित भारत बिल्डथॉन’ कार्यक्रम, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकसित भारत@2047’ विजन का हिस्सा है, का उद्देश्य युवाओं, शिक्षकों और सरकारी अधिकारियों को नवाचारपूर्ण विचारों के माध्यम से राष्ट्रीय विकास में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म आधारित पहल है, जहां प्रतिभागी शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और अन्य क्षेत्रों से जुड़े आइडिया सबमिट करते हैं। कार्यक्रम की शुरुआत इस वर्ष अप्रैल में हुई थी, और इसका पहला चरण सितंबर तक चला, जिसमें बेसिक शिक्षा विभागों को विशेष रूप से छात्रों और शिक्षकों के माध्यम से कम से कम 10 प्रतिशत आइडिया सबमिशन का लक्ष्य दिया गया था।

हालांकि, रायबरेली बेसिक शिक्षा विभाग ने इस लक्ष्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। जिला शिक्षा अधिकारी (BSA) कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, विभाग को कुल 5,000 से अधिक आइडिया सबमिशन का लक्ष्य मिला था, लेकिन वास्तविक सबमिशन मात्र 162 रहा, जो कुल लक्ष्य का महज 3.24 प्रतिशत है। यह आंकड़ा प्रदेश के अन्य 74 जिलों में सबसे निचला स्तर है। लखनऊ, कानपुर और वाराणसी जैसे जिलों ने 25-30 प्रतिशत तक की प्रगति दर्ज की, जबकि रायबरेली का प्रदर्शन न केवल पिछड़ा, बल्कि विभागीय लापरवाही का प्रतीक बन गया। शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “कार्यक्रम की जानकारी तो दी गई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने में कमी रह गई। शिक्षकों की व्यस्तता और प्रशिक्षण की कमी ने भी इसमें बाधा डाली।”

यह घटना रायबरेली बेसिक शिक्षा विभाग की पुरानी समस्याओं को उजागर करती है। पिछले दो वर्षों में विभाग पर कई आरोप लग चुके हैं, जिनमें स्कूलों में उपस्थिति रजिस्टर की अनियमितता, शिक्षक भर्ती में देरी और डिजिटल शिक्षा योजनाओं के खराब क्रियान्वयन शामिल हैं। स्थानीय अभिभावक संघ के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद ने कहा, “हमारे बच्चे पहले से ही बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पढ़ रहे हैं। ऐसे में नवाचार जैसे कार्यक्रमों में भागीदारी न होना विभाग की उदासीनता को दर्शाता है। सरकार को तत्काल जांच करवानी चाहिए।” जिला पंचायत सदस्य मीरा देवी ने भी सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर की, जहां उन्होंने लिखा, “रायबरेली शिक्षा का केंद्र था, आज लापरवाही का प्रतीक बन गया।”

प्रदेश सरकार की ओर से इस कार्यक्रम की समीक्षा रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है, जिसमें रायबरेली को ‘सबसे कम प्रगति वाले जिले’ के रूप में चिह्नित किया गया है। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि ऐसे जिलों में अतिरिक्त निगरानी टीम तैनात की जाए और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो। बेसिक शिक्षा निदेशालय, उत्तर प्रदेश ने एक बयान जारी कर कहा है कि “इस तरह की विफलताओं को दोहराया नहीं जाएगा, और आगामी चरण में सख्त निर्देश दिए जाएंगे।” हालांकि, स्थानीय स्तर पर विभागीय अधिकारी अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दे पाए हैं।

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना न केवल रायबरेली तक सीमित है, बल्कि पूरे प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है। डॉ. अनिल कुमार, लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा विभागाध्यक्ष ने कहा, “नवाचार कार्यक्रमों में भागीदारी शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का माध्यम है। 3.24 प्रतिशत जैसा आंकड़ा दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर प्रेरणा और संसाधनों की कमी है। सरकार को अब ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे शिक्षक प्रशिक्षण और डिजिटल टूल्स का वितरण।”

रायबरेली के लिए यह ‘प्रथम स्थान’ किसी सम्मान का विषय नहीं, बल्कि शर्मिंदगी का है। जिले के करीब 2 लाख छात्रों वाली बेसिक शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए अब तत्काल सुधार की आवश्यकता है। क्या यह विफलता विभागीय सुधारों का संकेत बनेगी, या फिर यूं ही लेटलतीफी का सिलसिला जारी रहेगा? यह सवाल अब स्थानीय निवासियों और शिक्षा हितैषियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। जिला प्रशासन से उम्मीद है कि जल्द ही इस पर ठोस कार्रवाई हो और भविष्य में ऐसी ‘उपलब्धियां’ दोहराई न जाएं।

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