Toxic Air Kills 79 Lakh: जहरीली हवा से 79 लाख मौतें! अब वायु प्रदूषण बना दुनिया का ‘साइलेंट किलर’

Toxic Air Kills 79 Lakh: भारत में 20 लाख लोगों की जान ली जहरीली हवा ने, अब कैंसर जितना खतरनाक हुआ वायु प्रदूषण

Toxic Air Kills 79 Lakh: धुंध से ढके आसमान और हर सांस में घुलता ज़हर— यह अब किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सच्चाई है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2023’ रिपोर्ट ने जो आंकड़े पेश किए हैं, उन्होंने स्वास्थ्य जगत और सरकारों दोनों को हिला दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण अब कैंसर जितना जानलेवा खतरा बन चुका है। हर साल लाखों लोगों की मौत का असली कारण यही है— वो भी बिना किसी शोर के, बिना किसी चेतावनी के। लेकिन इस ‘साइलेंट किलर’ (Silent Killer) ने कितनी बड़ी तबाही मचाई है? और भारत इस खतरे की जद में कितना है? आइए जानते हैं।

वायु प्रदूषण: मौत का नया सबसे बड़ा कारण/Toxic Air Kills 79 Lakh

‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2023’ (State of Global Air 2023) रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में वायु प्रदूषण (Air Pollution) से दुनियाभर में 79 लाख लोगों की मौत हुई, जिनमें से 20 लाख मौतें अकेले भारत में दर्ज की गईं। यह आंकड़ा बताता है कि भारत में अब वायु प्रदूषण मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है— जिसने हाई ब्लड प्रेशर और अस्वास्थ्यकर खानपान जैसे कारणों को पीछे छोड़ दिया है। जहरीली हवा से दिल, फेफड़ों की बीमारियां, डायबिटीज़ और डिमेंशिया जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। तुलना करें तो 2022 में कैंसर से 97 लाख मौतें हुई थीं, यानी वायु प्रदूषण अब कैंसर के बराबर जानलेवा बन चुका है। हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (HEI) की यह रिपोर्ट सरकारों के लिए चेतावनी है — हवा में घुला यह जहर अब सिर्फ सांसों में नहीं, बल्कि ज़िंदगी में उतर चुका है।

भारत में चार में से तीन लोग सांस ले रहे जहरीली हवा में

रिपोर्ट बताती है कि भारत के हर चार में से तीन लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां हवा में मौजूद PM2.5 कणों का स्तर WHO के मानक से कहीं अधिक है। भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली कुल मौतों में 89% मौतें गैर-संचारी रोगों (NCDs) — जैसे हार्ट अटैक, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज़ और डिमेंशिया — के कारण होती हैं। पहले जहां घरेलू प्रदूषण (लकड़ी या कोयले से खाना पकाने का धुआं) बड़ी समस्या था, वहीं अब बाहरी हवा यानी एंबिएंट एयर पॉल्यूशन सबसे बड़ा खतरा बन गया है। सरकार की स्वच्छ ऊर्जा योजनाओं से घरेलू प्रदूषण घटा है, लेकिन सड़कों, वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलता धुआं अब सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। यह स्थिति सिर्फ पर्यावरणीय नहीं, बल्कि मानवीय और नीतिगत संकट की ओर इशारा करती है।

बढ़ता खतरा: हवा से बढ़ रही याददाश्त खोने की बीमारी

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, HEI की वैज्ञानिक डॉ. पल्लवी पंत ने बताया कि असुरक्षित पानी से होने वाली बीमारियां कम हुई हैं, लेकिन अब खराब हवा से नई बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। 2000 से 2023 के बीच PM2.5 और ओज़ोन गैस के स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रिपोर्ट कहती है कि वायु प्रदूषण के कारण अब डिमेंशिया (याददाश्त खोने की बीमारी) जैसी स्थितियों में भी इज़ाफ़ा हो रहा है। साल 2023 में ही करीब 6.25 लाख मौतें इससे जुड़ी बताई गई हैं, जबकि 1.2 करोड़ लोगों के स्वस्थ जीवन के वर्ष प्रभावित हुए। डॉ. पंत के मुताबिक, “खराब हवा का असर अब अरबों लोगों की सेहत पर पड़ रहा है, खासकर एशिया और अफ्रीका में।” यह स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण अब सिर्फ सांसों का नहीं, बल्कि दिमाग का भी दुश्मन बन गया है।

संयुक्त राष्ट्र और WHO की चेतावनी: अब वक्त है सख्त कदमों का

संयुक्त राष्ट्र (United Nation) ने पहले ही वायु प्रदूषण को उन पांच बड़े खतरों में शामिल किया है जो दिल और फेफड़ों की बीमारियों को बढ़ाते हैं — जिनमें तंबाकू, खराब खानपान, व्यायाम की कमी और शराब का सेवन भी शामिल हैं। WHO ने भी इसे अपनी स्वास्थ्य नीतियों में प्राथमिकता दी है। NCD एलायंस की नीति निदेशक एलिसन कॉक्स के अनुसार, “वायु प्रदूषण और गंभीर बीमारियों से निपटने के लिए संयुक्त रणनीति ही एकमात्र रास्ता है, जिससे स्वास्थ्य, जलवायु और अर्थव्यवस्था — तीनों को फायदा होगा।” रिपोर्ट के आंकड़े सैटेलाइट, ग्राउंड सेंसर और WHO सर्वेक्षणों पर आधारित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकारें तुरंत ठोस कदम नहीं उठातीं, तो आने वाले दशक में सांस लेना इंसान के लिए सबसे बड़ा जोखिम बन जाएगा। यह ‘साइलेंट किलर’ अब सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि जीवन का सबसे बड़ा सवाल बन चुका है।

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