US Tariffs Turn Into Blessing: जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने भारत से आने वाले उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया, तो कई अर्थशास्त्रियों ने चेताया था कि इससे भारत के निर्यात को झटका लगेगा। लेकिन हकीकत इससे उलट निकली। अमेरिका पर निर्भरता घटाकर भारत ने खाड़ी देशों, दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप में अपने लिए नए दरवाज़े खोल लिए हैं। अब वही सेक्टर- जेम्स-एंड-ज्वेलरी, टेक्सटाइल और सी-फूड—जो सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले माने जा रहे थे, भारत की नई सफलता की कहानी लिख रहे हैं। ताज़ा आंकड़े दिखाते हैं कि भारतीय एक्सपोर्ट (Indian Export) अब पहले से कहीं ज़्यादा विविध, लचीला और मज़बूत हुआ है। आइए जानते हैं, कैसे अमेरिकी टैरिफ (American Tariff) के बाद भी भारत ने दुनिया के नए बाज़ारों में अपनी पहचान बनाई।
व्यापारिक रुख में बड़ा बदलाव- अब बहु-क्षेत्रीय हुआ भारतीय निर्यात/US Tariffs Turn Into Blessing
अमेरिकी टैरिफ नीति (US Tariff Policy) के बाद भारत ने तेजी से अपने व्यापारिक रुख को बदला और नए देशों की ओर कदम बढ़ाए। जहां कभी भारत का लगभग 25% निर्यात अमेरिका पर निर्भर था, वहीं अब इसका बड़ा हिस्सा यूएई, वियतनाम, बेल्जियम (Beljium), सऊदी अरब (Soudi Arabia), थाईलैंड (Thailand) और दक्षिण कोरिया (South Korea) जैसे देशों की ओर जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव भारत की एक्सपोर्ट डाइवर्सिफिकेशन स्ट्रैटेजी की सफलता को दर्शाता है। वाणिज्य मंत्रालय (Ministry Of Commerce) के आंकड़े बताते हैं कि 2025 के पहले नौ महीनों में भारत के समुद्री उत्पाद, कपड़ा और आभूषण निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। यह वृद्धि सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि इस बात की गवाही है कि भारत ने टैरिफ के दबाव को अवसर में बदल दिया है। अब भारत का फोकस सिर्फ पश्चिमी देशों पर नहीं, बल्कि एशिया, अफ्रीका और खाड़ी क्षेत्रों पर भी बराबर है।

सी-फूड निर्यात में उछाल— वियतनाम और बेल्जियम बने नए केंद्र
भारत के समुद्री उत्पादों के निर्यात ने 2025 में नई ऊंचाइयों को छुआ। जनवरी से सितंबर 2025 के बीच इसमें 15.6% की वृद्धि दर्ज की गई, जिससे कुल निर्यात 4.83 अरब डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि अमेरिका अब भी सबसे बड़ा आयातक है, लेकिन वियतनाम में मांग 100%, बेल्जियम में 73% और थाईलैंड में 54% बढ़ी है। मलेशिया (Malesia), जापान (Japan) और चीन (China) में भी भारतीय झींगे, फिश फिले और स्क्विड की डिमांड में उछाल देखा गया। इस ग्रोथ के पीछे प्रमुख कारण हैं— भारतीय मरीन फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में तकनीकी सुधार, गुणवत्ता नियंत्रण में मजबूती और शुद्ध उत्पादों की विश्वसनीयता। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की सी-फूड इंडस्ट्री अब वियतनाम और बेल्जियम जैसे देशों के लिए विश्वसनीय वैकल्पिक सोर्स बन चुकी है, जिससे भविष्य में निर्यात और तेज़ी से बढ़ने की संभावना है।
टेक्सटाइल और ज्वेलरी सेक्टर में नयी चमक
भारत का टेक्सटाइल (Indian Textiles) और ज्वेलरी सेक्टर भी टैरिफ के दबाव में झुका नहीं, बल्कि और मज़बूत हुआ है। 2025 में टेक्सटाइल निर्यात 28.05 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें अफ्रीका, यूरोप और खाड़ी देशों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। मिस्र, पेरू, नाइजीरिया और यूएई अब भारतीय फैब्रिक्स और रेडीमेड गारमेंट्स के नए खरीदार बने हैं। वहीं जेम्स-एंड-ज्वेलरी निर्यात में 1.24% की वृद्धि के साथ आंकड़ा 22.73 अरब डॉलर तक पहुंचा। यूएई में 37% की बढ़त के साथ भारत ने अपनी बादशाहत कायम रखी, जबकि दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब और कनाडा में भी मांग में भारी इज़ाफा हुआ। विशेषज्ञ बताते हैं कि लेब-ग्रोउन डायमंड्स, गोल्ड ज्वेलरी और पॉलिश किए गए हीरों की मांग में वृद्धि भारत की कारीगरी और भरोसेमंद सप्लाई का प्रमाण है। यह सेक्टर अब “सस्टेनेबल एक्सपोर्ट ग्रोथ” का नया चेहरा बन चुका है।
क्यों नहीं पड़ा टैरिफ का असर- भारत की रणनीतिक जीत
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिकी टैरिफ नीति का भारत पर सीमित असर पड़ने के पीछे चार बड़े कारण हैं- पहला, भारत ने मल्टी-मार्केट एक्सेस पर फोकस किया और अपने उत्पादों को एशिया व अफ्रीका के नए बाजारों में पहुंचाया। दूसरा, FTA और ट्रेड पार्टनरशिप्स जैसे यूएई के CEPA और ऑस्ट्रेलिया के ECTA समझौते से निर्यातकों को राहत मिली। तीसरा, मेक इन इंडिया और PLI स्कीम्स ने उत्पादन लागत घटाकर प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाई और चौथा, भारत ने चीन पर निर्भरता घटाकर खुद को “सप्लाई चेन रेजिलिएंस” का केंद्र बना लिया। अब खाड़ी देश, दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप भारतीय उत्पादों के नए गंतव्य बन चुके हैं। ये आंकड़े सिर्फ आर्थिक सफलता नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक सूझबूझ का सबूत हैं- जिसने चुनौतियों को अवसर में बदलने की मिसाल पेश की।










