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धार्मिक उन्मान एवं शान्ति व्यवस्था विगाड़ने की सम्भावना पर गिरफ्तारी गलत : अमोदकंठ

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क्रासर- इंचार्ज मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने किया रिमांड निरस्त, विवेचक से मांगा स्पष्टीकरण

रायबरेली : इंचार्ज मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अमोदकंठ ने बछरावां थाना क्षेत्र के टेला बरौला गांव में धार्मिक चबूतरे को तोड़ने व धार्मिक उन्मान फैलाने के आरोपियों की पुलिस रिमाण्ड की याचना को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि अभिरक्षा में मौजूद तीनों आरोपियों को रिहा भी कर दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मात्र धार्मिक उन्मान एवं शान्ति व्यवस्था बिगाड़ने की सम्भावना के आधार पर पुलिस लोगों को गिरफ्तार करना शुरू कर देगी तो वह किसी भी व्यक्ति को बिना किसी पर्याप्त आधार तथा बिना उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का पालनें किये दण्ड प्रक्रिया संहिता के नियमों की अवहेलना करते हुए गिरफ्तारी किये जाने का बिना कोई कारण दशति हुए हिरासत में ले लगी। जिससे संविधान में प्रतिपादित अनुच्छेद-21 के अधिकार नागरिकों को नहीं प्राप्त हो सकेंगे। अदालत ने कहा कि अभियुक्त महफुजुलहक, सनी खां उर्फ मजहरूलहक तथा मजम्मिल खां की अपराध संख्या-283/2024 धारा-147, 295 व 506 में गिरफ्तारी स्वीकार करने का आधार पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा अदालत ने अभियुक्तों के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेन्द्र सिंह भदौरिया की इस दलील को स्वीकार किया कि पुलिस ने धारा-41ए, दप्रसं की नोटिस का तामीला नहीं कराया है, जो आवश्यक था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि उच्चतम न्यायालय की विधि व्यवस्था अरनेश कुमार-बनाम-बिहार राज्य एवं अन्य क्रि.अ.सं.-127/2014 में यह विधि व्यवस्था दी गयी है कि सभी मामले जिनमें सजा 7 वर्ष से कम है ऐसे मामले में धारा-141ए, दं.प्र.सं. का नोटिस दिया जाना अनिवार्य है, साथ ही मजिस्ट्रेट पर यह दायित्व है कि ऐसे मामले में सामान्य तथा मैकेनिकल रूप में रिमांड स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए। अदालत का मानना था कि पुलिस ने केस डायरी में ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया है कि अभियुक्त ने विवेचना में सहायता अथवा भागने का कोई प्रयास किया तथा जांच में सहयोग न करने का कोई कोई कथन किया हो। इसके अलावां अभियुक्तों को जिन धाराओं में हिरासत में लिया गया है वे अपराध जमानतीय प्रकृति के हैं। न्यायाधीश ने मामले की विवेचना कर रहे विवेचक सुमन कुमार कुशवाहा से एक सप्ताह के अंदर स्पष्टीकरण मांगा है कि क्यों न माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने के कारण प्रक्रीर्ण वाद दर्ज कर कार्यवाही की जाय। बहरहाल जिस तरह से इस मामले को लोगों ने तूल पकड़ाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेकनी चाही उसकी अदालत में पोल खुल गई।

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