रिपोर्ट : शिवा मौर्य
रायबरेली में बीते कुछ माह में लोकसभा चुनाव 2024 के चलते कई पार्टी के नेताओं ने आकर भाजपा की शरण ले ली, कोई सपा से आया है, तो कोई कांग्रेस से, देखने के लिए कुनबा बढ़ा इसमे कोई शक नहीं। लेकिन क्या इन आयातित लोगों के आने से प्रत्याशी को फायदा होगा या नहीं यह तो 4 जून को ही तय हो पाएगा। कोई मुकदमे से बचने के लिए तो कोई अपनी ठेके पट्टी बचाने के लिए, तो कोई अपने बिजनेस को बचाने के लिए आया है। फिलहाल जो भी आया है।भाजपा में कोई ना कोई मकसद से ही एक न एक कारण बताकर भाजपा में शामिल हुआ है। लेकिन इस बार जहां कांग्रेस से राहुल गांधी अपनी मां के संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जिसके लिए लगातार प्रियंका गांधी प्रचार प्रसार कर रहे है। वही भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के बाद जिस प्रत्याशी को एक बार फिर से लोकसभा 36 से उम्मीदवार बनाया है। क्या हुआ 2024 में झंडा गाढ़ पाएंगे या नहीं। इस प्रत्याशी को 2019 में भी टिकट दिया गया था, लेकिन कांग्रेस की सोनिया गांधी ने भारी मतों से जीत कर संसद पहुंची थी और भाजपा के प्रत्याशी को हार का मुख देखना पड़ा था। लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का कुनबा बढ़ा है। नए तजुर्बा साथ दिनेश प्रताप सिंह फिर से मैदान में उतरे हैं, तो क्या वोट परसेंट भी बढ़ेगा या नहीं लेकिन लगातार इस पार्टी में चल रही अंतह कलह के चलते भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह की मुश्किलें आसान नहीं दिख रही है। इस बार बीजेपी ने उत्तर प्रदेश सरकार के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री उद्यान दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है, लेकिन चुनावी सभा में गांव की गलियों में अक्सर अकेले ही देखे जाते हैं, ना तो इस प्रचार प्रसार के दौरान भाजपा के संपर्क में रहने वाले समाजवादी पार्टी के बागी ऊंचाहार विधायक दिखाई दे रहे हैं और ना ही सदर की विधायक अदिति सिंह, भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह की जो होल्डिंग बैनर या और भेजो प्रचार प्रसार में लगता है। उसमें कहीं विधायकों का नाम नहीं दिखाई देता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि कुनबा बढ़ाने के बाद भी क्या दिनेश प्रताप सिंह अकेले ही चुनाव जीत लेंगे या नहीं यह तो 4 जून का समय ही तय करेगा, लेकिन जिस तरह से अंदर खाने में भाजपा के पदाधिकारी व नेताओं के बीच मनमुटाव और नाराजगी बनी हुई है।

उससे तो साफ पता चलता है कि कहीं ना कहीं भाजपा प्रत्याशी के लिए परेशानियों का सबब बन सकता है। हालांकि जो गांव में भाजपा प्रत्याशी द्वारा प्रचार प्रसार किया जाता है। वहां पर ना तो यह दोनों विधायक और ना ही भाजपा के जिला अध्यक्ष ना उनका कोई जानने वाला दिखाई देता हैं। चुनाव में मात खाने का दूसरा कारण भी कुछ ग्राम प्रधान बन सकते हैं, क्योंकि प्रधानों का कहना है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जिन प्रधानों से यह वादा करके उनसे वोट लिया गया था वह वादा अभी तक वादे पर ही टल रहा है। जिससे यहां के प्रधान भी नाराज है। अब देखना यह है कि जिस तरह से कुनबा बड़ा है उसे तरह से मंत्री जी की ओर से बढ़ेगी या नहीं बढ़ेगी यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन भाजपा के अंदर खाने में जो चल रही है उठापटक उससे कहीं ना कहीं भाजपा के प्रत्याशी को नुकसान होना तय है।