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केंदुआ : मनसा पूजा की मान्यता और विश्वास, जिसे श्रद्धालु मानते हैं कुछ खास

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सांपो की देवी माँ मनसा की पूजा झारखण्ड के अधिकतर गांवों में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। जिसे प्रत्येक वर्ष 17 अगस्त को गांवों में जगह जगह प्रतिमा स्थापित कर धूमधाम से माँ मनसा की पूजा की जाती है। लोग कई दिनों पूर्व से ही इसकी तैयारी में जुट जाते है। प्रतिमा बनाने का दौर 15 से 20 दिन पहले से शुरू हो जाता है। गांवों में माँ मनसा की पूजा पुरे भक्तिभाव से मनाने के पीछे भी कुछ मान्यताएं है। दरअसल कृषि बहुल क्षेत्र होने के कारण अधिकतर ग्रामीणों व् किसानों का नाता सांप बिछुओं के खतरे वाले स्थलों तालाब, पोखर, नदी, नाला, खेत, खलिहान आदि से बना रहता है। ऐसी मान्यता है कि माँ मनसा की पूजा अर्चना से सांप बिछुओं की खतरों से उन्हें सुरक्षा मिलती है। इसी कारण गावँ के लोग माँ मनसा की आराधना पुरे भक्तिभाव से करते है। पूजा की रात बकरा और बतख की बलि देने की परंपरा है। अगले दिन पारन के मौके पर इसे प्रसाद के रूप में लोगों के बीच वितरण किया जाता है। वैसे माँ मनसा की पूजा पुरे एक महीने तक होती है। छोटानागपुर व् संथाल परगना में कुड़मी समुदाय के लोग इसे बारी पूजा के रूप में मनाते है। इनके अनुसार यह कृषि प्रधान पर्व है। धान की खेती कार्य समाप्त होने के बाद इसे मनाने के पीछे अपना तर्क है और कुछ कुछ वैज्ञानिक आधार भी कुड़मी समुदाय का मानना है कि इस पूजा के दिन शाम को किसी जलाशय से कलश में पानी लेकर कृषक अपनी अच्छी फसल पैदावार के लिए मनसा वाणी मन की इच्छा के अनुरूप पानी बरसने की कामना करते है।

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