रिपोर्ट : नासिफ खान
2024 के आखिरी सात दिनों में इंदौर की सुर्खियों में खुलेआम चाकूओं से गोदकर हत्या, डॉक्टर की गोली मारकर हत्या, बंधक बनाकर लूट, नशे की लत में उलझे 15 साल के किशोर की आत्महत्या, नगर निगम कर्मचारियों को खुलेआम पुलिस के सामने पीटना, डिजिटल अरेस्ट जैसी घटनाओं के साथ ही केस दर्ज नहीं करने पर हाईकोर्ट की फटकार… इस तरह की खबरें रहीं। देश के ह्रदय मध्यप्रदेश की धडकऩ माने जाने वाले इंदौर में ये सब हुआ है। इंदौर में बीते कुछ समय में अपराध करने वाले पूरी तरह से बैखोफ हुए हैं। इंदौर में पहले पुलिस अफसर कम थे, लेकिन उनके जमीर जिंदा थे। इंदौर में तैनाती के लिए पहले उन अफसरों को चुना जाता था जो कि क्राइम से निपटने के सभी तरीके जानते थे। अब पुलिस कमिश्नरी लागू है, जिसमें इंदौर में अफसरों की भरमार हो गई है, लेकिन उनके पास क्राइम को रोकने के लिए जमीनी पकड़ नहीं है। पुलिस वालों के चेहरे तो इंदौर में बढ़ गए, लेकिन उनके पास क्राइम को रोकने के लिए न दिमाग है, न ही उनके पास इसकी जमीनी सलाहियत है। थानों में नशे के सौदागरों पर कार्रवाई, हथियारों की खरीद फरोख्त पर कार्रवाई, क्राइम कंट्रोल के बजाए संपत्ति विवाद के मेटर निपटाने, वहां के स्थानिय नेताओं को खुश करने में पुलिसवालों का ज्यादा ध्यान रहता है और यदि क्राइम रोकने की बात आती है तो पुलिस चौराहों पर चैकिंग का दिखावा करती है। कभी साइलेंसर, कभी शराबियों को पकडऩे में जुट जाती है। नशे के कई बड़े कारोबारियों को तो भाईयों का वरदस्त इस तरह से है कि उन्हें बचाने के लिए नीचे के खिलाड़ी पूरा केस ही बदल देते हैं। केस हकीकत कम और फसाना ज्यादा हो जाता है। जिन पर कार्रवाई कर इस सबको रोका जा सकता है वो इंदौर में खुलेआम होर्डिंग्स पर टंगकर शहर के लोगों को बधाईयां देते दिखते हैं। ऐसे में क्राइम में कमी बताने के लिए केस दर्ज ही मत करो वाला फार्मूला तो है ही। ये सब तब है जब प्रदेश के मुखिया, गृह मंत्रालय की कमान संभालने और इंदौर के प्रभारी तीनों मुख्य पद एक ही व्यक्ति डॉ. मोहन यादव के पास है।
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सीएम के प्रभार के जिले में लगातार अपराध बढ़ रहे हैं। इंदौर अव्यवस्थित हो रहा है, विकास के नाम पर गड्ढ़ों, धूल का शहर इंदौर होता जा रहा है। कई प्रमुख चौराहों का विकास काम सालों से पूरा नहीं हो पा रहा है। जनता को रंगदारी, अवैध कब्जों, व्यापार ठप होने जैसी परेशानियां हो भी रही हैं तो उनकी सुनवाई करने वाला कौन है? क्योंकि जिनसे शिकायत की जा सकती है उनको तो क्राइम बढ़ाने वाले सालभर होर्डिंग के जरिए बधाईयां देते नजर आते हैं। ऐसे में जनता भी कानून से कम और इन पहलवानों से दोस्ती रखना ज्यादा ठीक समझने लगी है। इंदौर में जनता को बैखोफ कर, अपराधियों पर सख्ती की जरूरत है, लेकिन इसे करेगा कौन? क्राइम की काली बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? इसकी कभी जो आस भी अब तो इंदौर वाले वो भी खोते जा रहे हैं। क्योंकि जब भी कोई बदलाव होता है, तो इंदौरियों की उम्मीद तो बढ़ती है, लेकिन वो पूरी कभी नहीं होती। कभी संवेदनाओं का शहर अब संवेदनशील शहरों की लिस्ट में शुमार होता जा रहा है। जनता ने जिन्हें जिम्मेदारी सौंपी है वो फोटो खिंचाने में, पोस्ट करने, नाम रखने-बदलवाने में मस्त हैं, लेकिन इंदौर की बिगड़ती तस्वीर को संवारने वाला कोई नजर नहीं आता है। कब तक इंदौर खुद पर आंसु बहाता रहेगा ये भी तो कोई ज्योतिषाचार्य नहीं बता रहा है, इंदौर को इस दर्द से निजात दिलाने वाला कोई डॉक्टर, वैद्य, हकीम है भी या नहीं। किसी के पास जवाब हो तो बता दें…।