Jitiya Vrat : जीवित्पुत्रिका व्रत को पुत्रवती माताएं अपने संतान की लंबी आयु की कामना के हेतु तीन दिनों में पूरी करती हैं। प्रथम दिन नहाय- खाय तथा दूसरे दिन 24 घंटे का अखंड निर्जल उपवास करती हैं और तीसरे दिन सूर्योदय से कुछ समय होने के बाद व्रत का पारण करती हैं l लेकिन इसके बाद भी इस व्रत के कुछ नियम है l
काशी के पंचांग के अनुसार कब है जिवित्पुत्रिका व्रत ?
काशी के पंचांग के अनुसार इस वर्ष जिवित्पुत्रिका व्रत का उपवास अनूदई अष्टमी तिथि में 14 सितंबर 2025 रविवार को होगा l नहाय खाय 13 सितंबर 2025 शनिवार को दिन में 11 बजे के बाद सप्तमी तिथि में होगा l व्रत का पारण 15 सितंबर 2025 सोमवार को प्रातः 06.26 बजे के बाद नवमी तिथि में होगा l
जिवित्पुत्रिका व्रत में किसकी होती है पूजा ?
जिवित्पुत्रिका व्रत में राजा जीमूत वाहन की होती है पूजा तथा इन्हीं की कथा के साथ साथ चिल्ही और श्रीगाली की कथा का भी श्रवण किया जाता है।
जिवित्पुत्रिका व्रत की विधि
नहाए खाए 13 सितंबर 2025 शनिवार को होगा। इस दिन माताएं प्रातः उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने पूर्वजों के स्नान के निमित्त खली तथा तेल का दान करती है, उनके भोजनार्थ कच्चे खाद्य पदार्थों का दान करती है। संध्या समय में रात्री भोजन के बाद मध्य रात्रि के कुछ समय बाद ब्रह्म बेला में उठकर अपने पूर्वजों के भोजनार्थ चूड़ा दही पुड़ी इत्यादि अपने-अपने लोक परंपरा अनुसार उन्हें चढ़ती हैं। इस वर्ष 14सितंबर 2025 रविवार को पूरे दिन अखंड निर्जल उपवास रहेगी संध्या समय में सूर्यास्त से 2 घंटे पहले स्नान करने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा का श्रवण करना तथा किसी वृक्ष के बेल में गांठ डालना एक लोक परंपरा है। इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत में तीसरे दिन 15 सितंबर सोमवार जिस दिन व्रत का पारण होगा उस दिन सुबह उठकर केराई, चूड़ा, दूध, शक्कर, ( खण्डसारी), तिल का पुष्प इत्यादि डालकर प्रथम बार व्रत को तोड़ती हैं तथा पारण करती है। लेकिन व्रत तोड़ने के पूर्व जीवित्पुत्रिका व्रत के प्रमाण स्वरूप एक तीन या चार धागे का जितिया गले में धारण करती हैं। जिसमें जितनी संताने होती हैं उतनी गांठे डाली जाती हैं। उन गांठों के अलावा राजा जीमूत वाहन जी के निमित्त एक गांठ और होती हैं। अर्थात अगर दो सन्तान हैं तो वह माता अपने जितिया में तीन गांठ लगाकर उसकी पूजा कर अपने पहले अपने पुत्र के गले में धारण करने के बाद माताएं जितिया धारण करती हैं। तत्पश्चात व्रत को तोड़ती है और व्रत तोड़ने के बाद पारण करती है। यह कई जगहों पर अपने लोक परंपरा के अनुसार लोग भिन्न-भिन्न विधि से मनाते हैं।