रायबरेली :- पड़री गणेशपुर गांव में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा अमृत उत्सव में द्वितीय दिवस में कथा व्यास पंडित आशुतोष जी महाराज ने कहा कि जो शेष से वही अनंत है, जो अनंत है, वही भगवान है। वही पूरी सृष्टि को चला रहे हैं। कुछ न रहने पर भी कुछ है क्योंकि कुछ बना है। कोई रचना हुई है। यह निश्चित है कि रचनाकार जरूर है। इसलिए हमने उसको माना और स्वीकार किया। देखा नहीं है परंतु माना है। उसी को हमारे ऋषि मुनियों ने कहा है निराकार ब्रह्म।
उन्होंने कहा कि निराकार ब्रह्म यह संकल्प लेता है, एक हूं और एक से बहुत हो जाऊं। यहीं से सृष्टि का क्रम प्रारंभ होता है। इसी क्रम में आगे सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण उत्पन्न होता है। फिर इसी क्रम में आगे शेष शैया पर भगवान नारायण का प्राकट्य होता है। भगवान नारायण की नाभि से कमल और कमल के ऊपर चतुर्मुखी ब्रह्मा जी का प्राकट्य हुआ। ब्रह्मा ने भगवान नारायण के आदेश पर मानसिक सृष्टि के द्वारा सनकादिक ऋषियों को उत्पन्न किया। पंडित आशुतोष ने कहा कि सनकादिक ऋषियों ने वरदान मांगा हमारी अवस्था सदैव 5 वर्ष के बालक की जैसी बनी रहे। माया, ममता हमारे निकट न आवें और भगवान की भक्ति में हम लीन रहें। यह वरदान देने से ब्रह्मा की योजना बिगड़ गई। वह सृष्टि का विस्तार करना चाहते थे। जब सदैव पांच ही वर्ष के बने रहेंगे तो इनके द्वारा सृष्टि कैसे होगी। ब्रह्मा को क्रोध आया, क्रोध आने पर दोनों भृकुटियों के बीच रूदन करते हुए एक बालक का प्राकट्य हुआ। रुदन करता हुआ शिशु प्रकट हुआ जो नील लोहित वर्ण का है। रूदन कर रहे थे, इसलिए इनका नाम रूद्र ही रखा गया। कथा उत्सव में महाराज जी ने कई रोचक प्रसंग सुनाए। कार्यक्रम में प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष राजेश शुक्ला, चंद्रमणि वाजपेई, पूर्व ब्लाक प्रमुख मुन्नी देवी मिश्रा, राजदुलारी मिश्रा, आशुतोष मिश्रा, पुत्तीलाल तिवारी, रचना त्रिपाठी, उर्मिला मिश्रा उपस्थित रहे। जजमान राकेश मोहन मिश्रा और चंद्रेश मिश्रा रहीं।