रायबरेली की रहने वाली पारुल यादव ने जीवन के संघर्षों को लेकर कुछ ऐसी कविताओं को संजोया है।कि अगर आप एक बार भी पढ़ेंगे तो इस पर विचार जरूर करेंगे। क्योकि कला कभी किसी की मोहताज नहीं होती है।
(1)
सपनों के घर टूटे, हाँथ अपनों के छूटे।
तिनका- तिनका बिखर गये हम
जब बरसों बाद गाँव वाले घर पहुँचे
बरगद के पेड़ के नीचे की चौपाल
गर्मी की छुट्टियों की वो चाँदनी रात
बड़ा शोर होता था इस घर में
अब तो है बस यादों की बारात
इन दीवारों में सन्नाटा- सा छा गया
जानते हो क्यों?
आधा परिवार शहर में जो आ गया
आँगन ,द्वार, तुलसी सब रोज सपने में बुलाते
सोचा चलो पुरानी हवाओं से मिलकर है आते
दोबारा यहाँ आने का मन नहीं कर रहा
अपना यहाँ कुछ अपना- सा लग ही नहीं रहा
खुश रहना सब अपने संसार में करना आराम
अब मैं अपनी कलम को रख कर यहीं देती हूँ अपने शब्दों को पूर्ण विराम।।
( 2)
मंज़िलों की ओर जा रहे हैं मन के भाव अब दबा रहे हैं अश्क जितने बहने थे बहे चुके अब खुद पर प्रेम लूटा रहे हैं जो तलाश थी वो खत्म हुई अपनेपन के लिबाज़ से ज़रा मिलने में हम कतरा रहे हैं मोह माया से दूरी बना मियाजओ को अपना रहे हैं भटक गये थे चाकाचौध में अब खुद को सही दिशा दिखा रहे हैं सुकून का मक्का मिला अकेले में सच पूछों तो सच में मुस्कुरा रहे हैं।।
(3)
सालों से पाला एक सपने को
पल भर में मिटाने का सोचा
ज़िम्मदरियों की चौखट पे खड़े
खुद को मिटाने का सोचा
मन पर जब ध्यान गया
मन बड़ा ही उदास हुआ
अश्क बहे नहीं बस
पर आँखों ने रो लिया
जहेन पर जब ज़ोर पड़ा
अंतर मन ने कहा ये क्या किया
करने चलोगे कुछ और
तो उसमें भी हिम्मत चाहिए
छोटी -सी कोशिश से कुछ नहीं होगा
उसके लिए भी धैर्य और जुनून चाहिए
तो जो कर सकते हो बहेतर से बहतरीन
तो क्यों कर रहे हो बिना मन के मनमानी
उठो हिम्मत और जुनून जगाओ खुद में
देखना खत्म हो जायेंगी सारी परेशानी।।